ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में 31 साल बाद हुई पूजा की पहली तस्वीर देखिए, कैसा था नजारा

रोशन जायसवाल

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ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में 31 साल बाद हुई पूजा की पहली तस्वीर देखिए, कैसा था नजारा
ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में 31 साल बाद हुई पूजा की पहली तस्वीर देखिए, कैसा था नजारा
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Gyanvapi Vyas Tahkhana Update: वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में 31 सालों के बाद नजारा बदला हुआ है. मस्जिद परिसर से जुड़े व्यास जी तहखाने में 31 साल बाद बुधवार देर रात पूजा-पाठ की गई. ज्ञानवापी को लेकर चर्चाओं का बाजार जबर्दस्त गर्म है. ऐसे में अफवाहों से सांप्रदायिक सौहार्द न बिगड़े इसके लिए भी उपाय किए गए हैं. जिला प्रशासन ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष, दोनों के वकीलों और याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वे अनावश्यक बयानबाजी से बचें, ताकि काशी का माहौल खराब न हो. इस बीच व्यास जी तहखाने में हुई पूजा की पहली तस्वीर भी सामने आ गई है. 

इस तस्वीर में पुलिस के जवानों को भी देखा जा सकता है. इसके अलावा लाल चुनरी भी टंगी नजर आ रही है. यहां पुजारी व्यास जी तहखाने में पूजा करते नजर आ रहे हैं. आपको बता दें कि वाराणसी की जिला अदालत ने बुधवार को हिंदू याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले के तहत व्यास जी तहखाने में पूजा-पाठ के पुराने अधिकार को बहाल किया गया. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने की घटना के बाद 1993 से व्यास जी तहखाने में पूजा-पाठ पर रोक लगा दी गई थी. 

 

 

11 घंटे के भीतर प्रशासन ने लागू करवा दिया फैसला

वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने अपने फैसले में जिलाधिकारी को कहा था कि वादी शैलेन्द्र व्यास और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट द्वारा तय किए गए पुजारी से व्यास जी के तहखाने में स्थित मूर्तियों की पूजा और राग-भोग कराए जाने की व्यवस्था 7 दिन के भीतर कराएं. पर प्रशासन उम्मीद से कुछ ज्यादा सक्रिय नजर आया. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बुधवार को ही रात करीब साढ़े 9 बजे काशी-विश्वनाथ ट्रस्ट के सदस्यों को बुलाकर नंदी महाराज के सामने लगी बैरिकेडिंग को हटाकर रास्ता खुलवा दिया. यह भी जानना जरूरी है कि ये तहखाना ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद है. 

मुस्लिम पक्ष ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है. उससे पहले ही स्थानीय अदालत के फैसले को लागू करा दिया गया है. काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेंद्र पांडेय ने जानकारी दी है कि बुधवार रात को करीब साढ़े 10 बजे 31 साल बाद व्यास जी का तहखाना पूजा-पाठ के लिए खोला गया और उसकी साफ-सफाई कराई गई. 

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अफवाहों से बचने की सलाह

ज्ञानवापी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस भी अलर्ट मोड में है. यूपी पुलिस के सीनियर अफसरों समेत पुलिस को फुट पेट्रोलिंग के निर्देश दिए गए हैं. सोशल मीडिया पर अफवाहों,आपत्तिजनक पोस्ट का खंडन कर तेजी से कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं. 

 

 

1996 की अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट आई हिंदू पक्ष के काम

ज्ञानवापी के व्यास जी तहखाने मामले के फैसले में हिंदू याचिकाकर्ता के फेवर में 30 जुलाई 1996 की अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट ने अहम रोल निभाया है. व्यास परिवार की तरफ से शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास लगातार तहखाना के अधिकार और उसमें पूजा पाठ की कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. 31 जनवरी को दिए अपने फैसले में जज ए.के विश्वेस ने पहले एडवोकेट कमिशन की रिपोर्ट में दर्ज एक घटना को स्वीकार किया है. तब तहखाना के दक्षिणी द्वार पर दो ताले लगे थे. एक व्यास परिवार का और दूसरा प्रशासन का ताला था. जब 30 जुलाई 1996 को तत्कालीन कमीशन इसके सर्वे को पहुंची थी तो व्यास परिवार ने अपना ताला तो खोल दिया था लेकिन प्रशासन ने अपना तलाक खोलने से मना कर दिया था. इससे कमीशन तहखाना के भीतर नहीं जा सका था. 

व्यास परिवार का शुरू से यह तर्क था कि 1993 के पहले तक व्यास परिवार यहां पूजा पाठ करता था आता जाता था. 1993 में जब चारों तरफ से लोहे के बाड़ लगाए गए तो तहखाना का रास्ता बंद कर दिया गया था और इसी को खुलवाने की कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही थी. व्यास परिवार और उसके वादी शैलेंद्र कुमार पाठक की तरफ से यह भी बताया गया कि पहले यहां दरवाजा हुआ करता था जिसमें हिंदू धर्म से जुड़ी प्राचीन मूर्तियां और प्रतीक चिन्ह पहले से मौजूद थे लेकिन प्रशासन ने बाद में वह दरवाजा हटा दिया था. 

 

उधर अंजुमन इंतजामि या मसाजिद कमिटी ने कहा है कि व्यास परिवार के किसी सदस्य ने तहखाना में कभी पूजा नहीं किया है. इसलिए 1993 में पूजा रोकने का कोई सवाल ही नहीं था. मस्जिद कमेटी का यह भी कहना है कि इस तहखाना में कभी कोई मूर्ति थी ही नहीं नहीं व्यास परिवार के लोग तहखाना पर काबिज थे. मस्जिद कमेटी का यह भी दावा है कि यह पूरा तहखाना कमेटी के कब्जे में ही रहा है जहां किसी देवी देवता की मूर्ति कभी नहीं रही. 

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अपने दलील में जज के सामने मसाजिद कमेटी ने 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कितने खाने पर सुनवाई की ही नहीं जा सकती. यह मस्जिद का हिस्सा है.

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