सुप्रीम कोर्ट में की गई ज्ञानवापी के GPS सर्वे की गुहार, ‘शिवलिंग’ को लेकर हुई ये मांग
अब एक वकील, एक प्रोफेसर और पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित सात महिला याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है कि ज्ञानवापी (Gyanvapi Controversy) परिसर…
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अब एक वकील, एक प्रोफेसर और पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित सात महिला याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है कि ज्ञानवापी (Gyanvapi Controversy) परिसर की पड़ताल के लिए जीपीएस यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार सिस्टम के जरिए भूमिगत परिस्थिति का पता लगाने का आदेश दिया जाए. साथ ही वहां से मिले कथित शिवलिंग (Shivling In Gyanvapi) की कार्बन डेटिंग कराई जाए, जिससे उसकी प्राचीनता का पता चल सके.
याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन (Vishnu Shankar Jain) के मुताबिक, “जीपीएस इस पूरे परिसर को इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रडार के जरिए जांचने का सबसे सुरक्षित, सटीक और वैज्ञानिक तरीका है. जिसमें बिना किसी चीज से छेड़छाड़ किए तथ्य जुटाए जा सकते हैं.”
सुप्रीम कोर्ट से ये भी गुहार लगाई गई है कि सनातन धर्मियों की भावनाओं के मद्देनजर कोर्ट ज्ञानवापी से मिले आदि विश्वेश्वर शिवलिंग को विश्वनाथ मंदिर के पास स्थापित करने और उसकी पूजा अर्चना उपासना करने की इजाजत काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को दे. क्योंकि काशी में विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर पांच कोस यानी लगभग 15 किलोमीटर तक का दायरा काशी के अधिष्ठाता देव विश्वेश्वर का क्षेत्र है. यूपी श्री काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट 1983 के मुताबिक भी श्रद्धालुओं के अपने आराध्य की उपासना के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के लिए ट्रस्ट को ये अधिकार देना चाहिए.
उसे मस्जिद न मानने के तर्क देते हुए जैन की दलील है, “ये मंदिर के कुछ हिस्से को ढहा कर उसे मस्जिद में बदलने की कवायद तो हुई, लेकिन मस्जिद घोषित करने का मूल काम नहीं हुआ. उसे मस्जिद घोषित करने से पहले इसे वक्फ घोषित नहीं किया गया. क्योंकि विश्वनाथ जी के अलावा इस पर किसी का मालिकाना हक नहीं था. इससे इस जमीन और संपत्ति पर देवता का अधिकार बरकरार है. क्योंकि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इस बात की तस्दीक करता है कि देवता ज्यूरिस्ट पर्सन हैं.
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