बागपत की बबिता राणा को 44 साल की उम्र में मिली सरकारी नौकरी! उनसे जानिए कैसे बन गईं मुख्य सेविका
बागपत की किसान बेटी बबीता राणा ने 44 साल की उम्र में यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा पास कर मुख्य सेविका की नौकरी हासिल की. शादी, बच्चों और गृहस्थी की जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और साबित कर दिया कि हौसला मजबूत हो तो उम्र सपनों की राह में बाधा नहीं बनती.
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Baghpat News: कहावत है कि सपनों की कोई उम्र नहीं होती, बस चाह और हिम्मत होनी चाहिए. बागपत की किसान बेटी बबीता राणा ने इसी बात को सच कर दिखाया है. शादी, बच्चों और गृहस्थी की जिम्मेदारियों के बीच भी उन्होंने पढ़ाई का मन नहीं छोड़ा और 44 साल की उम्र में यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूपीएसएससी) की परीक्षा पास कर मुख्य सेविका का पद हासिल किया. उनकी कहानी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो उम्र और परिस्थितियों को अपनी राह की बाधा मान बैठती हैं.
किसान बेटी से मुख्य सेविका तक का सफर
बागपत के कंडेरा गांव की रहने वाली बबीता राणा एयरफोर्स में सेवा कर चुके प्रदीप राणा की पत्नी हैं. शादी के बाद बच्चों की परवरिश और घर की जिम्मेदारियों में उनकी पढ़ाई बीच में छूट गई. लेकिन उनके अंदर छिपा सपना जिंदा रहा. जब उनके बड़े बेटे ने 10वीं की परीक्षा दी तब बबीता ने फिर से पढ़ाई शुरू की. कई बार असफल होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और 2022 में यूपीएसएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की.
हौसले ने बनाई राह आसान
बबीता कहती हैं, "अगर हौसला मजबूत हो तो उम्र और परिस्थितियां भी सपनों के रास्ते में बाधा नहीं बन सकतीं." उन्होंने अपने संघर्ष से साबित कर दिया कि अगर नीयत पक्की हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती.
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परिवार और समाज के लिए मिसाल
बबीता आज न केवल अपने दोनों बेटों के लिए बल्कि हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं. उन्होंने यह दिखाया है कि शादी, बच्चे और गृहस्थी की जिम्मेदारियां सफलता की राह में बाधा नहीं बल्कि चुनौती हैं, जिन्हें पार किया जा सकता है.
संघर्षों भरी राह
आपको बता दें कि बबीता ने 2002 में शादी के बाद बेंगलुरु में पति के साथ रहकर बीएड किया, लेकिन बच्चों के जन्म और परवरिश के चलते उनकी पढ़ाई बीच में छूट गई. इसके बाद उन्होंने 2017 से फिर से पढ़ाई शुरू की. बबीता यूपीटेट और टीजीटी परीक्षाओं में कई बार असफल रहीं, लेकिन 2022 में यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा में सफलता हासिल कर अपनी मेहनत का फल पाया.
बबीता राणा की यह सफलता साबित करती है कि हिम्मत और जिद के आगे उम्र जैसी कोई सीमा नहीं होती. उनकी कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को उम्र, परिवार या परिस्थितियों के नाम पर अधूरा छोड़ना चाहती है.
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