ताजमहल की दीवार को बनते देखा तो फोड़ दी आंखें? इस कहानी पर भरोसा करते हैं तो असल बात जान लीजिए
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आगरा में यमुना नदी के किनारे खड़ा ताजमहल न केवल भारत का गौरव है. बल्कि विश्व भर में प्यार और रोमांस का प्रतीक माना जाता है. इसकी बेजोड़ खूबसूरती और शिल्पकला को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है.

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मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में 1632 में इस स्मारक का निर्माण शुरू करवाया था जो 1653 में पूरा हुआ. इसे बनाने में करीब 22 साल लगे और हजारों कारीगरों ने दिन-रात मेहनत की.

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यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल यह स्मारक अपनी भव्यता और इतिहास के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके साथ कुछ मिथक भी जुड़े हैं, जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं. आइए, आज हम ताजमहल से जुड़े उन मिथकों की सैर करें और जानें कि इनमें कितनी सच्चाई है.

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ताजमहल के बारे में सबसे प्रचलित मिथक यह है कि शाहजहां ने इसके निर्माण में लगे सभी मजदूरों के हाथ कटवा दिए थे, ताकि वे दोबारा ऐसा कोई स्मारक न बना सकें. यह कहानी हर गाइड की जुबान पर होती है और पर्यटकों को रोमांचित करने के लिए सुनाई जाती है.

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लेकिन क्या यह सच है? इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, इस कहानी का कोई ठोस सबूत नहीं है. न तो मुगलकालीन दस्तावेजों में और न ही समकालीन लेखकों, जैसे फ्रांसीसी यात्री जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर के विवरण में, इस घटना का जिक्र मिलता है.

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एक और प्रचलित कहानी यह है कि ताजमहल के निर्माण के दौरान. अगर कोई बाहरी व्यक्ति दीवार के बाहर से इसे बनते हुए देख लेता था, तो उसकी आंखें फोड़ दी जाती थीं. यह कहानी ताजमहल की गोपनीयता और शाहजहां की सनक को दर्शाने के लिए सुनाई जाती है.

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लेकिन इस कहानी का भी कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है. ताजमहल का निर्माण एक बड़े क्षेत्र में हुआ था, और इसे बनाते समय हजारों मजदूर, व्यापारी और स्थानीय लोग वहाँ मौजूद रहते थे. ऐसे में निर्माण को पूरी तरह छिपाना असंभव था.

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इतिहासकार मानते हैं कि ताजमहल का निर्माण मुगल साम्राज्य की शक्ति और समृद्धि का प्रदर्शन था. इसे बनवाने का मकसद न केवल मुमताज की याद को अमर करना था, बल्कि दुनिया को मुगल कला और वास्तुकला की श्रेष्ठता दिखाना भी था. इसलिए, इसे गुप्त रखने की कोई वजह नहीं थी.