2022 की तरह 2024 चुनाव में भी टूटी चंद्रशेखर-अखिलेश की सियासी दोस्ती, आखिर क्यों बिगड़ी बात?

आयुष अग्रवाल

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चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव
Bhim Army chief Chandrashekhar Azad-SP chief Akhilesh Yadav
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Up Politics: सियासी दोस्ती का समय कोई भी राजनीतिक पंडित नहीं बता सकता. सियासी दोस्ती कब बन जाए और कब टूट जाए, ये शायद खुद सियासतदानों को भी नहीं मालूम हो. कुछ ऐसी ही दोस्ती है उत्तर प्रदेश के दो युवा नेताओं की. दरअसल हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और भीम आर्मी प्रमुख-आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar) की. पिछले कुछ सालों में इन दोनों की सियासी दोस्ती काफी चर्चाओं में रही हैं. ये दोस्ती कभी बन जाती है तो कभी टूट जाती है. कभी ये दोनों एक-साथ नजर आते हैं तो कभी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं.

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि पिछले कुछ सालों से ऐसा ही हो रहा है. साल 2022 का विधानसभा चुनाव याद कीजिए. ऐसा लग रहा था कि अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आजाद के बीच गठबंधन हो चुका है. सिर्फ सीटों का ऐलान होना बाकी है. दोनों नेताओं के बीच बैठक चल रही थी. दोनों साथ नजर आ रहे थे. मगर फिर अचानक चंद्रशेखर ने प्रेस वार्ता की और अखिलेश यादव को दलित विरोधी बता दिया. इसी के साथ गठबंधन भी खत्म हुआ और ये सियासी दोस्ती भी खत्म हो गई.   

खतौली-रामपुर उपचुनाव में फिर आए साथ

फिर उत्तर प्रदेश की खतौली-रामपुर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. इन उपचुनावों में एक बार फिर अखिलेश यादव और चंद्रशेखर की सियासी दोस्ती और जोड़ी बन गई. खतौली में दोनों ने जयंत चौधरी की पार्टी रालोद के उम्मीदवार को समर्थन दिया, चुनाव प्रचार किया और भाजपा उम्मीदवार को हराने में अहम भूमिका अदा की. 

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तो वही रामपुर में भी चंद्रशेखर ने सपा उम्मीदवार को समर्थन दिया और चुनाव प्रचार में भी भाग लिया. मगर यहां भाजपा ने सपा उम्मीदवार को हरा दिया. तभी से माना जा रहा था कि अब चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव का गठबंधन तय हो गया है. फिर जब विपक्ष का I.N.D.I.A गठबंधन बना, तब भी ये तय माना जा रहा था कि चंद्रशेखर आजाद तो इस गठबंधन का हिस्सा बनेंगे ही. मगर साल 2022 में जो हुआ, वह साल 2024 में भी हो गया. आखिर वक्त में चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव अलग-अलग हो गए और विपक्षी गठबंधन में भी चंद्रशेखर को जगह नहीं मिल पाई.  

आखिर कहां बिगड़ी बात

साल 2022 में अखिलेश और चंद्रशेखर के बीच सीटों को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी. इंडिया टुडे के कुमार कुनाल और अभिषेक मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रशेखर ने अखिलेश यादव से 2 दर्जन सीटें मांगी थी. मगर सपा ने इतनी सीट देने से मना कर दिया. फिर 10 सीटों को लेकर बात की गई. मगर सपा ने साफ कर दिया कि वह 4 से अधिक सीट नहीं दे पाएंगे. 4 सीटों पर चंद्रशेखर आजाद राजी नहीं हुए और सपा-चंद्रशेखर की पार्टी का गठबंधन नहीं हो पाया. फिर चंद्रशेखर ने प्रेस वार्ता में अखिलेश यादव को दलित विरोधी तक कह डाला.

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सियासी गलियारों और राजनीतिक पंडितों में इस बात की चर्चाएं हैं कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आजाद की बात सीटों को लेकर ही बिगड़ी है. माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे. मगर अखिलेश इसके लिए राजी नहीं थे. दरअसल अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है. अखिलेश ने कांग्रेस को 17 लोकसभा सीट दी हैं. सपा का मानना है कि यूपी में उसकी स्थिति कांग्रेस-बसपा से भी मजबूत है और वह भाजपा को सीधी टक्कर दे सकती है. 

माना जा रहा है कि ऐसे में सपा, चंद्रशेखर को उनकी मांग के मुताबिक लोकसभा सीट देकर कोई सियासी रिस्क नहीं लेना चाहती थी. चंद्रशेखर को अधिक सीट देने का मतलब ये भी था कि उन सीटों पर पहले से ही सपा के टिकट की दावेदारी कर रहे सपा नेताओं की भी नाराजगी पार्टी को झेलनी पड़ती. दरअसल भीम आर्मी प्रमुख का मानना है कि पश्चिम यूपी में उनकी काफी सियायी मजबूती है. मगर पश्चिम यूपी में सपा भी काफी मजबूत है. ऐसे में शायद इस बार भी सीटों को लेकर अखिलेश और चंद्रशेखर के बीच बात नहीं बनी और साल 2022 की तरह इस बार भी चुनाव से पहले ये सियासी दोस्ती टूट गई.

 

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बता दें कि अब चंद्रशेखर ने नगीना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. सपा ने भी नगीना में चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है. देखा जाए तो जिस सपा और चंद्रशेखर के लोकसभा चुनाव साथ लड़ने की उम्मीद थी, वह अब एक-दूसरे के खिलाफ सियासी मैदान में लड़ते हुए नजर आएंगे.

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