नरेंद्र गिरि केस: संदिग्ध मौतें और गुमशुदगी, 3 दशक से संतों पर विपदा भारी!
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद मठों, आश्रमों और मंदिरों की नगरी हरिद्वार-ऋषिकेश से जुड़े संतों…
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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद मठों, आश्रमों और मंदिरों की नगरी हरिद्वार-ऋषिकेश से जुड़े संतों की रहस्यमय मौतों या फिर लापता होने की घटनाएं भी चर्चा में आ गई हैं.
पिछले तीस सालों के पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि इस अवधि में कम से कम 25 संत या तो लापता हुए या फिर उनके शव रहस्यमय हालत में मिले. किसी को अब तक पता नहीं चला कि आखिर लापता संतों को धरती निगल गई या आसमान खा गया क्योंकि कुछ हाईप्रोफाइल मामलों में तो सीबीआई तक ने हाथ खड़े कर दिए.
ऐसे मामलों पर हरिद्वार और ऋषिकेश के पुलिस अधिकारियों के पास बस यही जवाब है कि जांच चल रही है, मामलों से जुड़े रिकॉर्ड्स और उपलब्ध साक्ष्यों को खंगाला जा रहा है.
चलिए, इनमें से कुछ मामलों पर एक नजर दौड़ा लेते हैं:
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पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, 25 अक्तूबर 1991 को मायापुरी क्षेत्र के रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य को स्कूटर सवार लोगों ने गोली मारी थी. वह आश्रम से निकलकर टहल रहे थे.
9 दिसंबर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही संत रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या हो गई.
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1 फरवरी 2000 को मोक्षधाम ट्रस्ट से जुड़े रमेश को एक जीप ने अचानक टक्कर मार दी. उनकी मौत मौके पर ही हो गई.
फिर संत चेतनदास कुटिया में अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में हत्या हो गई.
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इसके सवा साल बाद 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेंद्र बंगाली की हत्या हुई.
इस घटना के दो महीने बाद ही 6 जून 2001 को हर की पैड़ी के पास बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या हुई.
इसी महीने में 26 जून 2001 को बाबा ब्रह्मानंद की हत्या हो गई.
इसी साल कुछ दिनों बाद 2001 में पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली मार दी गई.
इसी दौरान अगले साल 17 अगस्त 2002 को बाबा हरियानंद और शिष्य की हत्या हो गई.
इसी साल संत नरेंद्र दास की हत्या हो गई.
6 अगस्त 2003 को संगमपुरी आश्रम के प्रख्यात संत प्रेमानंद अचानक लापता हो गए.
28 दिसंबर 2004 को संत योगानंद की हत्या हो गई.
2006 में 15 मई को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या हुई.
इसी साल 25 नवंबर 2006 को बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
अगले साल जुलाई 2007 में बाबा रामदेव के गुरु स्वामी शंकर देव लापता हो गए. अपने जबरदस्त रसूख के बावजूद न बाबा रामदेव को उनका पता चल पाया ना ही सरकार को और ना ही सीबीआई को.
फरवरी 2008 में निरंजनी अखाड़े के सात साधुओं को जहर दिया गया.
14 अप्रैल 2012 मेष संक्रांति और वैसाखी पर्व के दौरान ही निर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरि की हत्या हो गई.
26 जून 2012 लक्सर में हनुमान मंदिर में तीन संतों की हत्या हुई.
इसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं है. लापता होने वाले संतों में से कुछ की ही खबर पुलिस तक पहुंच पाती है. ज्यादातर मामलों में लाश भी दबा दी जाती है और मामला भी. जो मामले पुलिस तक पहुंचे भी उनमें सजा दिलाए जाने की दर बेहद कम है.
हरिद्वार-ऋषिकेश में ऐसी घटनाओं ने संत समाज को हिला रखा हुआ है. यूं तो सार्वजनिक तौर पर सभी कुछ भी साफ-साफ कहने से बच रहे हैं लेकिन अंदर से सबके पास कहने को बहुत कुछ है. यानी आश्रमों में बढ़ती व्यावसायिक गतिविधियां, संपत्ति का कमर्शियलाइजेशन और धन-पद के लिए आपसी कलह जैसे वजहें ही इन घटनाओं की जड़ मानी जाती हैं.
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