गोरखपुर आने से पहले CM योगी को था ‘चमकदार कपड़े और गॉगल्स का शौक’, जानिए उनके अनसुने किस्से
कहां एक तरफ मां चाहती थी की बेटा भी अपने पिता की तरह सरकारी नौकरी करे, लेकिन बेटे ने गोरखपुर जाकर संन्यास ले लिया. हम…
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कहां एक तरफ मां चाहती थी की बेटा भी अपने पिता की तरह सरकारी नौकरी करे, लेकिन बेटे ने गोरखपुर जाकर संन्यास ले लिया. हम…
कहां एक तरफ मां चाहती थी की बेटा भी अपने पिता की तरह सरकारी नौकरी करे, लेकिन बेटे ने गोरखपुर जाकर संन्यास ले लिया. हम बात कर रहे हैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट की. आपको बता दें कि आज सीएम योगी अपना 50वां जन्मदिन मन रहे हैं.
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20 साल के अजय सिंह बिष्ट ने तब न सांसद बनने का सोचा था और न ही मुख्यमंत्री. वैसे भी मां और पिता चाहते थे कि बेटा B.Sc के बाद M.Sc करके नौकरी करे. कॉलेज टाइम में बहनोई चाहते थे कि उनके साले साहब ‘वामपंथी बनें.’ मगर अजय को गुरु अवैद्यनाथ मिले और यहां से उनका जीवन बदल गया. सवाल यहां ये उठता है की आखिर यहां तक का रास्ता उन्होंने तय कैसे किया. कैसे एक साधारण परिवार से आने वाला अजय बिष्ट, योगी आदित्यनाथ बना और फिर भगवा धरण करते ही सूबे की सियासत का चमकता सितारा बन गया?
आपको बता दें कि महंत बनने से पहले योगी आदित्यनाथ का नाम अजय बिष्ट था. 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गड़वाल जिले के पंचूर गांव में अजय बिष्ट का जन्म हुआ. 8वीं तक की पढ़ाई पास के ठांगर के प्राइमरी स्कूल से की. 9वीं की पढ़ाई के लिए चमकोटखाल के जनता इंटर कॉलेज को चुना. इंटर की पढ़ाई के लिए वह ऋषिकेश गए.
‘यदा यदा हि योगी’ नाम से योगी आदित्यनाथ की जीवनी लिखने वाले विजय त्रिवेदी के मुताबिक अजय को कॉलेज के दिनों में ‘फैशनेबल, चमकदार, टाइट कपड़े और आंखों पर काले गॉगल्स’ पहनने का शौक था. 1994 में दीक्षा लेने के बाद वे आदित्यनाथ योगी बन गए.
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बचपन में शाखा में जाने वाले बिष्ट, कॉलेज में छात्रसंघ का चुनाव लड़ना चाहते थे पर RSS से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उन्हें टिकट नहीं दिया. वे निर्दलीय लड़े, लेकिन हार गए. अजय बिष्ट ने BSc की पढ़ाई गढ़वाल के श्रीनगर स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा यूनिवर्सिटी से पूरी की है.
विजय त्रिवेदी लिखते हैं कि ‘हार के कुछ महीनों बाद जनवरी 1992 में बिष्ट के कमरे में चोरी हो गई जिसमें MSc के दाखिले के लिए जरूरी कई कागजात भी चले गए. दाखिले के सिलसिले में मदद मांगने के लिए ही बिष्ट पहली बार महंत अवैद्यनाथ से मिले और दो वर्षों के भीतर ही उन्होंने न सिर्फ दीक्षा ली बल्कि उत्तराधिकारी भी बन गए.’
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ये बातें तो पढ़ाई लिखाई की थीं, अब शुरू होती है असली कहानी!
‘योगीगाथा’ में शांतनु गुप्ता लिखते हैं, ‘अजय बिष्ट ऋषिकेश में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रति व्यक्तिगत झुकाव के कारण अपनी शिक्षा को किनारे रखा और…1993 में अजय गोरखपुर के गोरखधाम मंदिर में आए और महंत अवैद्यनाथ से मिले. महंत ने अजय की पूरी कहानी सुनी और कहा, ‘तुम एक जन्मजात योगी हो, एकदिन तुम्हारा यहां आना निश्चित है. हालांकि महंत इसके पहले 1990 में भी योगी से मिल चुके थे. मई 1993 में अजय एक बार फिर से महंत अवैद्यनाथ से मिले. एक हफ्ते तक गोरखपुर में रहे. जब लौट रहे थे तो महंत ने कहा, ‘पूर्णकालिक शिष्य के रूप में गोरखधाम मंदिर में शामिल हो जाइए.’ अजय बिना कुछ बोले मन में हजारों सवाल लेकर वापस चले गए.
जुलाई 1993 में महंत अवैद्यनाथ बीमार हो गए. उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया गया. अजय को जानकारी मिली तो वे भी उन्हें देखने दिल्ली पहुंचे. इस बार महंत ने अजय पर दबाव बनाया और कहा, “मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती. मुझे एक योग्य शिष्य चाहिए, जिसे मैं अपना उत्तराधिकारी घोषित करूं. अगर ऐसा नहीं कर पाया तो हिंदू समुदाय मुझे गलत समझेगा.”
इसके बाद नवबंर 1993 में अजय घर पर बिना किसी को बताए गोरखपुर चले आए. उधर घर वाले परेशान थे, इधर अजय की कठिन तपस्या शुरू हो गई थी. 15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के मौके पर महंत अवैद्यनाथ ने अजय बिष्ट को नाथ पंथ की दीक्षा दी और गोरखनाथ मठ का उत्तराधिकारी घोषित किया. उसी 15 फरवरी से अजय बिष्ट का नाम योगी आदित्यनाथ कर दिया गया.
12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ की मृत्यु के बाद एक पारंपरिक औपचारिक समारोह के बाद योगी आदित्यनाथ को गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश यानी मुख्य पुजारी घोषित किया गया. अजय बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बनने के बाद मठ की जिम्मेदारी संभाली. संन्यास के चार साल बाद राजनीतिक जिम्मेदारी भी संभाल ली और 1998 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ गए.
1998 में वे गोरखपुर से पहली बार सांसद बने. 1999 में दोबारा चुनाव हुआ तो फिर विजयी हुए. 2002 में योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी नाम का संगठन बनाया. हिन्दू रक्षा के नाम पर इस संगठन का विस्तार पूरे प्रदेश में किया गया. 2004 में तीसरी बार, 2009 में चौथी और 2014 में पांचवीं बार उसी गोरखपुर सीट से योगी सांसद बने. 2017 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला, तो पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के चेहरे को चुना और सीएम बना दिया. योगी ने लोकसभा से इस्तीफा दिया और विधान परिषद की सदस्यता ली. 2022 में योगी आदित्यनाथ ने यूपी में दोबारा कमल खिलाया और यूपी की सत्ता के शीर्ष पर बैठ गए.
2022 के विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ के सामने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और उसके साथ सत्ता-विरोधी लहर के रूप में 2 चुनौती थी. सारी चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने दूसरे कार्यकाल की ऐतिहासिक जीत दर्ज की पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद सत्ता में आने वाले यूपी के एकमात्र सीएम बन गए. अक्सर ये चर्चा चलती है कि क्या योगी इतने ताकतवर नेता बन गए हैं कि उन्हें आने वाले सालों में प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाए? लेकिन इस बात पर सोशल मीडिया समेत हर प्लेटफॉर्म पर कई अलग-अलग तरह की बातें की जातीं हैं. खैर आज उनका 50 वां जन्मदिन है. हम सभी उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई देते हैं.
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