UP Weather : क्या यूपी में जल्द शुरू हो जाएगी कड़ाके की ठंड? ला-नीना के असर को समझिए
Uttar Pradesh Weather Updates : सिंतबर की महीने की शुरुआत हो चुकी है और इसके साथ ही बारिश का मौसम अपने अंतिम दौर में है. वहीं मॉनसून के खत्म होते ही सर्दियों का मौसम आने को हैं.
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Uttar Pradesh Weather Updates : सिंतबर की महीने की शुरुआत हो चुकी है और इसके साथ ही बारिश का मौसम अपने अंतिम दौर में है. वहीं मॉनसून के खत्म होते ही सर्दियों का मौसम आने को हैं. इस साल जहां गर्मी के मौसम ने लोगों रुलाया तो मॉनसून ने जमकर भिगोया, वहीं अब सर्दियां सारे रिकॉर्ड तोड़ सकती है. भारतीय मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि इस साल ठंड अपने चरम पर रहेगी. भारतीय मौसम विभाग (IMD) का अनुमान है कि सितंबर के दौरान ला नीना घटना सक्रिय होने की उम्मीद है. मॉनसून के मौसम के अंत में होने वाली यह घटना संभावित रूप से चरम सर्दियों की स्थिति के लिए चेतावनी के रूप में काम कर सकती है.
ला-नीना का पड़ेगा असर
ला नीना के प्रभाव का प्रभाव उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में देखने को मिल सकता है. ला नीना के प्रभाव का प्रभाव विशेष रूप से गंभीर बताया जा रहा है. मौसम वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि ला नीना का सीधा असर आने वाले ठंड के मौसम पर पड़ेगा. बंगाल की खाड़ी से आने वाले तूफानों का भी सहयोग रहेगा, जो उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में और ज्यादा ठंड लाने की संभावना बढ़ा रहा है. मौसम विभाग की मानें तो ला-नीना परिस्थितियां अब मॉनसून के आखिरी हफ्ते या इसके खत्म होने पर ही विकसित होंगी. यानी ला-नीना से मॉनसून तो बेअसर रहा लेकिन अगर सर्दियों की शुरुआत से ठीक पहले ला-नीना परिस्थितियां बनीं तो दिसंबर के मध्य से जनवरी तक कड़ाके की सर्दी रहने वाली है. मौसम विभाग का अनुमान है कि ला-नीना के सितंबर से नवंबर के दौरान बनने की 66 प्रतिशत संभावना है. सर्दी में नवंबर से जनवरी 2025 तक इसके उत्तरी गोलार्ध में बने रहने के आसार 75 प्रतिशत से भी अधिक हैं.
आमतौर पर देश से मॉनसून 15 अक्टूबर तक विदा हो जाता है. ऐसे में इसके दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून पर असर डालने की संभावना नहीं है. अब यह सितंबर से नवंबर के बीच विकसित हो सकती है. अक्टूबर के आखिर से दक्षिण भारत में उत्तर-पूर्व मॉनसून आता है, उस पर ला-नीना का असर हो सकता है.
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ला नीना और अल नीनो दोनों ही समुद्री और वायुमंडलीय घटनाएं हैं, जो आमतौर पर अप्रैल और जून के बीच शुरू होती हैं और अक्टूबर और फरवरी तक गति पकड़ लेती हैं. हालांकि, ये जलवायु घटनाएं आमतौर पर 9-12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कभी-कभी ये दो साल तक भी जारी रह सकती हैं. सामान्य परिस्थितियों में व्यापारिक हवाएं भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम की ओर बहती हैं, जो दक्षिण अमेरिका से एशिया की तरफ गर्म पानी ले जाती हैं। गर्म पानी के विस्थापन से समुद्र की गहराई से ठंडा पानी ऊपर उठता है, जिससे संतुलन बना रहता है.
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