मधुमिता-अमरमणि की कहानी: तीसरी बार प्रेगनेंट होते ही प्रेम का हुआ The End फिर किया गया मर्डर!

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Uttar Pradesh News : मई 2003 में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए एक हत्याकांड ने तत्कालीन सरकार को हिला कर रख दिया. हत्या हुई युवा कवयित्री मधुमिता शुक्ला की, इसमें नाम आया बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी (Amarmani Tripathi) और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी का. बाद में हाई कोर्ट ने पति-पत्नी समेत अन्य को इस मामले में उम्र कैद की सजा सुना दी. अब जब मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के दोषी अमरमणि और मधुमणि रिहा किए जा रहे हैं. इस रिहाई के खिलाफ मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से आठ हफ्तों में जवाब मांगा है.

इस हत्याकांड को इतना वक्त बीत गया कि शायद नई पीढ़ी को प्यार, धोखा और मर्डर वाली ये हाईप्रोफाइल कहानी नहीं पता. शायद लोगों को नहीं पता कि कैसे एक रसूखदार तत्कालीन मंत्री और उनकी पत्नी ने ऐसी साजिश रची कि पूरा सिस्टम हिल गया. आइए आज आपको बताते हैं मधुमिता शुक्ला और अमरमणि त्रिपाठी के बीच की वो कहानी, जिसका अंत युवा कवयित्री की हत्या से हुआ.

कौन थी मधुमिता शुक्ला?

9 मई 2003 को जब मधुमिता शुक्ला की हत्या की गई, तो उनकी उम्र महज 24 साल थी. सवाल यह है कि आखिर मधुमिता शुक्ला कौन थी? यह उस वक्त की चर्चित उभरती हुई कवयित्री का नाम था, जो कविता के मंचों की शोभा हुआ करती थीं. अखबारों में उनकी कविताओं के चर्चे थे और कहा जाता है कि कविता के जरिए ही मधुमिता की जिंदगी में अमरमणि की एंट्री हुई. मधुमिता शुक्ला लखीमपुर खीरी की रहने वाली थीं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुधमिता और अमरमणि की पहली मुलाकात गुनगुनी ठंड के मौसम में नवंबर 1999 में हुई थी. इसके बाद दोनों के बीच करीबी बढ़ी. अमरमणि का तब भौकाल तगड़ा था. वह नौतनवा से विधायक थे और कल्याण सिंह तक की सरकार में मंत्री रह चुके थे. उनकी पहचान पूर्वांचल के बाहुबली की हो चुकी थी और होती भी क्यों नहीं, वह हरिशंकर तिवारी के शिष्य जो थे.

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मधुमिता का विक्टर, डायरी और आखिरी चिट्ठी वाला किस्सा

कहते हैं कि मधुमिता अपनी डायरी में अपने और अमरमणि के प्रेम के बारे में लिखा करती थीं. वह उन्हें शायद विक्टर पुकारती थीं. हत्याकांड के वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स में उनकी डायरी के अलावा उस आखिरी खत का भी किस्सा मिलता है. इस खत में मधुमिता ने लिखा था, ‘हम तो बर्बाद हो ही गए हैं, लेकिन सोचते हैं कि अपने भाइयों की जिंदगी बना दें.’ उस खत से यह पता चला था कि मधुमिता प्रेगनेंट थी और पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार. इस खत में मधुमिता ने यह भी लिखा था कि अमरमणि ने उनके भाई को नौकरी दिलाई थी, तो परिवार को उनपर भरोसा हो गया था, लेकिन सरकार गिरते ही भाई की नौकरी चली गई.

तीसरी प्रेगनेंसी को अबॉर्ट नहीं कराने की वजह से हुई हत्या!

मधुमिता शुक्ला और अमरमणि के केस में प्रॉसिक्यूशन ने कोर्ट को जो पूरी कहानी बताई वो चौंकाऊ थी. इसके मुताबिक अमरमणि के साथ संबंध के बाद मधुमिता तीसरी बार प्रेगनेंट थीं. पहले दो बार वह अबॉर्शन करा चुकी थी, लेकिन तीसरी बार इसके लिए तैयार नहीं थी. पोस्टमॉर्टम के मुताबिक मधुमिता के पेट में पल रहा बच्चा 6 महीने का हो चुका था. बाद में डीएनए रिपोर्ट से यह साबित हुआ कि बच्चा अमरमणि का ही था.

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पति के अफेयर से खफा थी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी

अमरमणि त्रिपाठी और मधुमिता का अफेयर तब कोई ढंकी-छिपी बात नहीं रह गई थी. इसका पता अमरमणि की पत्नी और इस हत्याकांड की साझीदार मधुमणि त्रिपाठी को लग चुका था. उन्होंने मधुमिता और उनके परिवार को धमकाने की पूरी कोशिश की. बाद में मधुमणि ने मधुमिता को पाठ पढ़ाने के लिए अमरमणि के परिवार के सदस्य रोहित चतुर्वेदी का सहारा लिया. रोहित ने उन्हें संतोष राय से मिलवाया और इन्हें मधुमिता को रास्ते से हटाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

रोहित ने अमरमणि को दी थी पूरे प्लान की जानकारी

रोहित चतुर्वेदी ने मधुमणि के इस पूरे प्लान की जानकारी अमरमणि को दी थी. तब अमरमणि की चिंता सिर्फ इतनी थी कि उनका नाम नहीं आना चाहिए. अभियोजन पक्ष के मुताबिक उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि वह मंत्री हैं और उन्हें बचा भी लेंगे. फिर 9 मई 2003 को संतोष राय प्रकाश पांडेय नाम के शख्स के साथ लखनऊ के पेपर मिल कॉलोनी स्थित मधुमिता के घर पहुंचा. उन्होंने कट्टे से सटाकर ऐसी गोली मारी कि मधुमिता की जान चली गई.

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मधुमिता हत्याकांड से थर्रा गया था यूपी

जिस वक्त मधुमिता की हत्या हुई अमरमणि मंत्री थे. मधुमिता के नौकर ने क्राइम स्पॉट पर ही कवयित्री और मंत्री के रिश्ते सार्वजनिक कर दिए. बाद में मुख्यमंत्री मायावती ने इसकी जांच सीबीसीआईडी को सौंपी. अमरमणि ने शुरुआत में मधुमिता के साथ अपने सारे रिश्ते नकार दिए. जब मधुमिता के भ्रूण का डीएनए टेस्ट हुआ, तो पता चला कि बच्चा तो अमरमणि का ही है. विपक्ष हमलावर हुआ तो मायावती सरकार को इसकी जांच सीबीआई को सौंपनी पड़ी.

देहरादून की एक कोर्ट ने अक्टूबर 2007 में अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. बाद में नैनीताल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की सजा को बरकरार रखा था. बाद में अमरमणि की राजनीतिक विरासात को उनके बेटे अमनमणि ने आगे बढ़ाया और 2017 में नौतनवा से निर्दलीय विधायक बने. हालांकि अमनमणि पर भी अपनी पहली पत्नी सारा सिंह की हत्या का आरोप है.

अमरमणि को किया जा रहा रिहा

अब अमरमणि और मधुमणि को रिहा किया जा रहा है. दलील यह है कि जेल में उनका आचरण ठीक है और उन्होंने 20 साल जेल में बिताए हैं. लेकिन आप मधुमिता की बहन निधि शुक्ला को सुनेंगे, तो वो कह रही हैं कि अमरमणि और उनकी पत्नी तो 16 साल से अस्पताल में हैं, उन्होंने जेल की सजा कब काटी. उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई. इसपर सुनवाई भी हुई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की रिहाई पर रोक नहीं लगाई है.

अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने मधुमिता की बहन की याचिका पर नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से आठ हफ्तों में जवाब मांगा है. मधुमिता की बहन और याचिकाकर्ता निधि शुक्ला की वकील कामिनी जायसवाल की रिहाई पर रोक लगाने की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा- कि सरकार का जवाब आने दें. अगर आपकी दलीलों से हम सहमत होंगे तो वापस जेल भेज देंगे.

बहरहाल, जो भी हो, आज मधुमिता शुक्ला और अमरमणि त्रिपाठी का यह प्रकरण फिर जिंदा हो गया है. विपक्ष योगी सरकार को घेर रहा है कि आखिर महिला सुरक्षा के दावों का क्या हुआ. अब देखना यह है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्या जवाब देती है और अमरमणि के साथ आगे क्या होता है.

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