जानें आजमगढ़ के बाहुबली रमाकांत यादव की कहानी, अब अखिलेश यादव को क्यों आई इनकी याद?

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आजमगढ़ की राजनीति की बात हो और रमाकांत यादव की चर्चा न हो ऐसा भला कैसे हो सकता है. आजमगढ़ की राजनीति में रमाकांत यादव ही एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जो सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी सभी पार्टियों में रहकर इनमें से तीन पार्टियों के टिकट पर विधायक और सांसद बने. रमाकांत यादव की गिनती पूर्वांचल के बाहुबलियों में होती है. 36 साल के राजनैतिक कॅरियर में रमाकांत 4 बार विधायक और 4 बार सांसद रहे हैं. फिलहाल एक मामले में रमाकांत यादव जेल में हैं. आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में अपनी सीट खो चुकी समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में राजनैतिक जमीन तलाशने के लिए जमीन पर उतर रही है. इसके तहत अखिलेश यादव सोमवार को सपा विधायक रमाकांत यादव से जेल में ही मिलने वाले हैं. राजनैतिक पटल पर इस मुलाकात को कई नजरिए से देखा जा रहा है.

आजमगढ़ की लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी की सीट मान बैठे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को उपचुनाव में मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद इनके सहयोगी दल सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने उन्हें एसी से निकलकर ग्राउंड पर उतरने की सलाह दी थी. ये सलाह इसलिए थी क्योंकि उपचुनाव में अखिलेश यादव एक बार भी प्रचार के लिए नहीं गए. इधर बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर ये सीट हथिया ली. अब सपा आजमगढ़ में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए बाहुबली नेता रमाकांत यादव का सहारा लेने की तैयारी में नजर आ रही है.

समाजवादी पार्टी ऐसा क्यों मानती है कि बाहुबली नेता रमाकांत यादव के जरिए एक बार फिर आजमगढ़ की सीट वापस पाई जा सकती है. वो इसलिए क्योंकि वो इसलिए भी क्योंकि आजमगढ़ की सीट सपा की है ये तमगा भी रमाकांत यादव ने ही दिलवाया था. इसे विस्तर से जानने के लिए रमाकांत यादव की राजनैतिक पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है.

सपा को रमाकांत की क्यों आई याद?

रमाकांत यादव फिलहाल आजमगढ़ के फूलपुर पवई विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. उनका नाम माहुल शराब कांड में आने के साथ ही उनपर सरायमीर थाने में एससी-एसटी का मुकदमा भी दर्ज है. शराब कांड में जमानत मिलने के बावजूद वे जेल में हैं और अखिलेश यादव उनसे जेल में ही मिलने वाले हैं. सपा में रहने के बाद भी रमाकांत यादव पर पहले पार्टी को भरोसा नहीं था, वो इसलिए कि वे राजनैतिक मौसम और मौका देख हमेशा पार्टियां बदलते रहे हैं. हालांकि आजमगढ़ उपचुनाव में सपा कैंडिडेट धर्मेंद्र यादव के हार जाने के बाद अब पार्टी को रमाकांत यादव के सिवाय कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है.

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आजमगढ़ ऐसे बना सपा की सुरक्षित सीट

रमाकांत यादव का राजनैतिक कॅरियर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शुरू हुआ. वे पहली बार वर्ष 1985 फूलपुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते भी. वर्ष 1989 के विधानसभा चुनाव तक आते-आते रमाकांत बीजेपी में शामिल हो गए और फिर फूलपुर से बीजेपी के बैनर तले जीत दर्ज की. हालांकि बीजेपी से ज्यादा दिनों तक इनकी बनी नहीं और ये जनता पार्टी में शामिल हो गए.

वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव करीब आया तो इन्होंने सपा का दामन थाम लिया. सपा के टिकट पर वे फिर फूलपुर विधानसभा से विधायक बने. इस दौरान तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से रमाकांत की नजदीकियां इतनी बढ़ गईं कि पार्टी ने उन्हें वर्ष 1996 में आजमगढ़ लोकसभा का टिकट दिया. हालांकि रमाकांत ने यहां भी अपनी जौहर दिखा दिया और जीत दर्ज की. वर्ष 1999 में फिर चुनाव हुए और रमाकांत ने फिर सपा के बैनर तले आजमगढ़ लोकसभा सीट पर कब्जा किया.

साइकिल छोड़ हाथी पर सवार हुए रमाकांत

सपा के टिकट पर लगातार फूलपुर से विधायक और आजमगढ़ से दो बार सांसद चुने जाने के बाद वर्ष 2004 के आमचुनाव से पहले वे बसपा में शामिल हो गए. बसपा के टिकट पर वे फिर आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए. हालांकि बसपा से ये रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं रह सका. भाई के साथ विश्वासघात होने से आहत रमाकांत ने बहुजन समाज पार्टी को तौबा कर दिया.

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आखिर मायावती ने क्या किया था?

रमाकांत के भाई उमाकांत यादव जौनपुर की खुटहन सीट से विधायक थे. उमाकांत के खिलाफ आजमगढ़ में एक घर पर जबरन कब्जा करने का आरोप था. 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया और धोखे से अपने आवास के बाहर गिरफ्तार करा दिया. इससे नाराज रमाकांत ने बसपा छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर वे फिर आजमगढ़ से सांसद चुने गए.

योगी आदित्यनाथ के करीबी बने और फिर…

बीजेपी में शामिल होने के बाद रमाकांत योगी आदित्यनाथ के करीबी हो गए. हालांकि ये संबंध भी बहुत दिनों तक राजनैतिक पटल पर नहीं टिक सका. वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ के प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव में हारने के बाद रमाकांत यादव ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इस हार के लिए उन्होंने सीएम योगी को जिम्मेदार बता दिया. तलवारें ऐसी खीचीं कि बयानबाजियां हुईं. मुख्यमंत्री योगी ने बयान दिया- ‘जिस गाड़ी में सपा का झंडा उसमें बैठा है कोई बड़ा गुंडा’ पर पलटवार करते हुए रमाकांत ने कहा- ‘जिस गाड़ी में भाजपा की झंडी, वह है देश का सबसे बड़ा पाखंडी.’

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कांग्रेस में शामिल हुए और हारे

रमाकांत यादव ने वर्ष 2018 में बीजेपी को छोड़ कांग्रेस से हाथ मिला लिया. वर्ष 2019 के आम चुनाव में वे कांग्रेस के टिकट पर भदोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और बुरी तरह से हारे. इसके बाद वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वे फिर सपा में वापस लौटे और अपनी पुरानी सीट फूलपुर से जीत दर्ज की. आजमगढ़ लोकसभा सीट से बीजेपी का खाता रमाकांत यादव ने ही खोला था. सपा की जमीन भी बाहुबली रमाकांत ने ही मजबूत की थी. हालांकि कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाना उनके लिए घाटे का सौदा रहा. वे चुनाव हार गए.

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