बांदा आएं तो इन प्रसिद्ध मंदिरों और किलों को घूमने जरूर जाएं, यादगार रहेगा सफर

सिद्धार्थ गुप्ता

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उत्तर प्रदेश का बांदा जिला किलों के लिए काफी फेमस है. यहां के किले तमाम युद्धों के गवाह हैं. अगर आप पुराने किलों की हैरतंगेज कहानियां जानना चाहते हैं तो बांदा के किले जरूर घूमें. जैसे भूरागढ़ का किला, कालिंजर का किला. साथ ही बांदा की जीवनदायिनी नदी ‘केन’ में पाए जाने का विश्व ख्याति प्राप्त पत्थर ‘शजर’ को लेना न भूलें. शजर की एक अपनी अलग पहचान है, जिसकी प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है. बांदा जिले में कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं.

यूपी की राजधानी लखनऊ से 250 किलोमीटर दूर स्थित बांदा जिला जो चित्रकूट से 70 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां आने के लिए ट्रेन के साथ-साथ बसें भी उपलब्ध हैं. बांदा आने के बाद आप इन किलों में घूमने के लिए जरूर जाएं.

कालिंजर का किला

जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर कालिंजर का किला स्थित है. कालिंजर दुर्ग का अजेय किला है. बताया जाता है कि चंदेलों द्वारा बनाया गया है. यह किला भव्यता का उदाहरण है. इस किले के अंदर कई मंदिर और पुराने राजाओं के भवन हैं. किला भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, जहां अनोखा नीलकंठ भगवान राजा शिव विराजमान हैं. कहते हैं कि कई बार इस किले का नाम भी बदला गया. इसने सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलयुग में कालिंजर नाम से ख्याति पाई है.

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कहते हैं कि कालिंजर का अपराजेय किला प्राचिन काल में जेजाकभुक्ति साम्रज्य के अधीन था. जब चंदेल शासक आए तो इस पर महमूद गजनबी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा, पर कामयाबी हासिल नहीं हुई. अंत मे अकबर ने 1569 ई. में यह किला जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दिया था. बीरबल के बाद यह किला राजा छत्रसाल के कब्जे में आ गया. इसके बाद पन्ना के राजा शाह का कब्जा हो गया और 1812 ई. में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया.

कालिंजर में इन दिनों आकर्षण का केंद्र नीलकंठ मंदिर है, जिसे चंदेल शासक में परमादित्य देव ने बनवाया था. मंदिर में 18 भुजाओं वाली मूर्ति के अलावा शिवलिंग नीले पत्थर का है. कहते हैं कि यहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन के बाद निकले विष का पान किया था. शिवलिंग की खासियत यह है कि आज भी वहां से पानी रिसता है. इसके अलावा सीता सेज, पाताल गंगा, पांडव कुंड, भगवान सेज, भैरव कुंड, मृगधार, कोटितीर्थ, चौबे महल, जुझौतिया बस्ती, शाही मस्जिद, मूर्ति संग्रहालय, वाऊचोप मकबरा, रामकटोरा ताल, भरचाचर, मजार ताल, राठौर महल, रनिवास, ठा. मतोला सिंह संग्रहालय, बेलाताल, सगरा बांध, शेरशाह सूरी का मकबरा और हुमायूं की छावनी आदि हैं.

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भूरागढ़ किला

जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर की दूर पर भूरागढ़ किला स्थित है. स्वतंत्रता संग्राम के समय यह किला महत्वपूर्ण था. यहां एक मेला लगता है जिसे ‘लटबली का मेला’ कहते हैं. भूरागढ़ किले का ऐतिहासिक महत्व महाराजा छत्रसाल के पुत्रों बुंदेला शासनकाल और हृदय शाह और जगत राय से जुड़ा है. जगत राय के पुत्र कीरत सिंह ने 1746 में भूरागढ़ किले की मरम्मत की थी. अर्जुन सिंह किले के देखभालकर्ता थे.

1787 ई. में नवाब अली बहादुर ने बांदा डोमेन की देखभाल शुरू की. उन्होंने 1792 ई. में अर्जुन सिंह के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा. इसके बाद वह कुछ समय के लिए नवाब के शासन में आ गए, लेकिन राजाराम दउवा और लक्ष्मण दउवा ने इसे नवाबों से फिर से जीत लिया. अर्जुन सिंह की मृत्यु के बाद, नवाब अली बहादर ने भूरगढ़ किले पर अधिकार कर लिया. 1802 ई. में नवाब की मृत्यु हो गई और गौरीहार महाराज के बाद सरकार ने इसे अपने अधीन ले लिया.

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कहते हैं कि नट (जो खेल करतब दिखाते हैं) को यहां के राजा की बेटी से प्यार हो गया था. बताते हैं कि नट उससे शादी करना चाहता था, लेकिन राजा को नामंजूर था. फिर राजा ने एक शर्त रख दी कि अगर नट रस्सी के सहारे नदी पार कर लेता है तो उसकी शादी अपनी बेटी से कर दूंगा. नट ने प्रेम के आगे सब स्वीकार कर लिया. तैयारी हुई और नट नदी के उस पार से रस्सी के सहारे राजा के किले में आना शुरू किया. रस्सी के सहारे नट किला की तरफ बढ़ने लगा. जब नजदीक आ गया तो राजा ने देखा कि ये आ गया और मुझे इस करतब दिखाने वाले नट से अपनी बेटी की शादी करना पड़ेगी. उसी दौरान राजा ने अपनी सेना से कहकर रस्सी को कटवा दिया, जिससे नट की नदी में गिरकर मौत हो गई. जहां आज भी हर साल खिचड़ी में मेला लगता है, जहां हजारों लोग पहुँचते हैं.

‘शजर’ पत्थर लेना न भूलें

विश्व ख्याति प्राप्त ‘शजर’ पत्थर जो मुख्य रूप से केन नदीं में ही पाया जाता है. इसकी पहचान करना सब की बस की बात नहीं. सिर्फ जानकर लोग ही ‘शजर’ पत्थर की पहचान कर सकते हैं. शजर की प्राकृतिक सौंदर्यता अपने आप में अलग है, जो सूर्य या चंद्रमा की रोशनी से उसकी सौंदर्यता को बिखेरती है.

कहते हैं कि चांदनी रात में चंद्रमा की रोशनी में जो परछाई नदी के ऊपर से नीचे पहुंचती है, ‘शजर’ पत्थर में उसी की आकृति ढल जाती है. मोर, फूल पत्तियां, जीव जंतु, मनुष्य की परछाई ढल जाती है. बांदा में कई लोग इसका व्यापार भी करते हैं, जो कारीगरों के माध्यम से इसकी सुंदरता बनाकर इसको खरीदते और बेचते हैं.यह मुस्लिम देशों में काफी प्रयोग होता है.

ये हैं प्रसिद्ध मंदिर

बांदा के प्रसिद्ध मंदिरों में महेश्वरी देवी मंदिर बांदा, बाम्बेश्वर के पहाड़ में विराजमान भगवान शिव का मंदिर, खत्री पहाड़ मां विंध्यवासिनी मंदिर, शहर में स्थित काली माता मंदिर, संकट मोचन हनुमान जी बबेरू के सिमोनी में भगवान शिव और हनुमान मंदिर, जहां हर साल मेले में बड़े नेता भगवान के दर्शन करने को आते हैं. साथ ही अतर्रा के गौरा बाबा यानी शिव की मूर्ति विराजमान है, जहां दूर-दूर से भक्त आकर भगवान के दर्शन करते हैं.

पहले शहर का नाम था बामदा

बांदा शहर का नाम ऋषि बामदेव महाराज के नाम से जाना जाता है, जो पहले बामदा था बाद में बांदा नाम हो गया. ऋषि बामदेव शहर में स्थित एक पहाड़ में रहकर तपस्या एवं प्रभु भक्ति में लीन रहते थे, जो बांबेश्वर पहाड़ के नाम से जाना जाता है, जहां आज भगवान शिव का अनोखा मंदिर बना हुआ है.

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