दशहरा पर कानपुर में होती है रावण की पूजा, इस मंदिर के कपाट खुलते हैं साल में एक बार... ये है 100 साल पुरानी कहानी

दशहरे पर कानपुर में होती है रावण की पूजा. दशानन मंदिर की अनोखी परंपरा के अनुसार साल में एक बार खुलते हैं मंदिर के कपाट. भक्त शक्ति के प्रतीक के रूप में करते हैं रावण की आराधना.

Kanpur News

रंजय सिंह

02 Oct 2025 (अपडेटेड: 02 Oct 2025, 12:41 PM)

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Kanpur News: एक तरफ जहां पूरा देश बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न में रावण दहन करके खुशियां मनाएगा, वहीं इस मौके पर उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अलग ही परंपरा निभाई जाती है. कानपुर के शिवाला क्षेत्र में स्थित दशानन मंदिर में दशहरा के दिन रावण को जलाने की बजाए, उसकी विशेष आराधना की जाती है. यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए विख्यात है. यहां श्रद्धालु रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजते हैं. 

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साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट

इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसके कपाट साल में केवल एक बार विजयादशमी (दशहरा) के दिन ही खोले जाते हैं. आज सुबह 9 बजे मंदिर के कपाट खुलते ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. दिन की शुरुआत रावण की प्रतिमा के विशेष साज-श्रृंगार और आरती के साथ हुई. सुबह से ही भक्त यहां पहुंचकर तेल के दीये जलाते हैं और मन्नतें मांगते हैं. शाम होते ही इस मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए फिर से बंद कर दिए जाएंगे.

रावण को क्यों पूजते हैं यहां? जानिए 100 साल पुरानी कहानी

यह अद्भुत मंदिर लगभग सौ साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने बनवाया था. इस मंदिर को भगवान शिव के कैलाश मंदिर परिसर में स्थापित किया गया है. यहां रावण को शक्ति के प्रहरी के रूप में देखा जाता है. इसके पीछे की मान्यता यह है कि रावण न केवल एक प्रकांड पंडित था, बल्कि वह भगवान शिव का परम भक्त भी था. वह शिव को प्रसन्न करने के लिए देवी की आराधना भी करता था. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे यह वरदान दिया था कि उसकी की गई पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की भी पूजा करेंगे.

प्रहरी के रूप में स्थापित है रावण की प्रतिमा

दरअसल, इस परिसर में रावण की करीब पांच फिट ऊंची मूर्ति उसकी प्रहरी (गार्ड) के रूप में स्थापित है. यह मूर्ति लगभग 206 साल पुरानी है, जिसे संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका के मंदिर के साथ बनवाया था. विजयदशमी के दिन मां छिन्नमस्तिका की पूजा संपन्न होने के बाद रावण की आरती उतारी जाती है. श्रद्धालु विशेष रूप से रावण को सरसों के दीपक और पीले फूल अर्पित करते हैं. 

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