PM मोदी ने नामामि गंगे परियोजना से गंगा को राष्ट्रीय नदी के रूप में दी मान्यता: CM योगी

आनंद कुमार

• 01:33 PM • 17 Apr 2022

लखनऊ में गंगा और सहायक नदियों की अविरलता और स्वच्छता के लिए काम कर रहे संगठन ‘गंगा समग्र’ की तरफ से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय…

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लखनऊ में गंगा और सहायक नदियों की अविरलता और स्वच्छता के लिए काम कर रहे संगठन ‘गंगा समग्र’ की तरफ से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन समारोह 17 अप्रैल को हुआ. इस अधिवेशन के दूसरे और आखिरी दिन यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ शामिल हुए.

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सीएम योगी ने गंगा नदी की स्वच्छता के लिए चलाए जा रहे नामामि गंगा परियोजना का जिक्र कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की.

उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया के अंदर जब नदी संस्कृति की बात होती है तब अकेले गंगा एक ऐसी नदी है, जिसने 10 लाख किलोमीटर से अधिक भूभाग को दुनिया का सबसे उर्वरा भूभाग बनाया है. जिस क्षेत्र में हम सबको रहने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, इस पूरे क्षेत्र की उर्वरता के पीछे अगर कोई महत्वपूर्ण कारक है तो वह है मां गंगा.”

सीएम योगी ने कहा, “हमारे अधिकतर लोग तीर्थ गंगा के तटीय क्षेत्र में ही स्थित है. गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक के तीर्थों का अवलोकन करेंगे तो हम सब देख सकते हैं कि गंगा के प्रति हमारी आस्था किस रूप में रही है.”

उन्होंने कहा कि गंगा के आध्यात्मिक, समाजिक और आर्थिक महत्वों को देखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में नामामि गंगे परियोजना का शुभारंभ किया और गंगा को राष्ट्रीय नदी के रूप में मान्यता दी.

सीएम ने कहा,

“मां गंगा के बारे में योजनाएं पहले भी बनती थीं. 1986 में गंगा एक्शन प्लान बना था. कार्य प्रारंभ भी हुए थे. केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर इस पूरे कार्यक्रम के साथ जोड़ना था. पांच राज्य- यूपी, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल इस अभियान के साथ जुड़ें.”

सीएम योगी

उन्होंने कहा, “जब नामामि गंगा परियोजना से पहले इन सभी कार्यक्रमों का मूल्यांकन हुआ तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि गंगा पहले से ज्यादा प्रदूषित हुई है. नामामि गंगा परियोजना पीएम मोदी की अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजना है, जिसमें आजादी के बाद भारत की नदी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का एक महत्वूर्ण कार्य प्रारंभ किया.”

अधिवेशन में गंगा से जुड़े 5 राज्यों के करीब 600 कार्यकर्ता रहे हैं. उनको गंगा को स्वच्छ रखने के लिए प्रशिक्षित भी किया गया.

अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसके तहत नदियों, तालाबों जैसे जल स्त्रोतों को जीवित प्राणी के रूप में मान्य करने, भू-अभिलेखों में उनका उल्लेख करने और किसी भी नदी में न्यूनतम कितना जल होना चाहिए, समिति बनाकर इसको तय करने और उस न्यूनतम जल की व्यवस्था सुनिश्चित करने की बात कही गई है.

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