उत्तर प्रदेश में इस वक्त फतेहपुर के मशहूर अब्दुल समद के मकबरे से जुड़ा विवाद छाया हुआ है. फतेहपुर जिला बीजेपी अध्यक्ष मुखलाल पाल के आह्वान पर हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने फतेहपुर के मशहूर मकबरे को मंदिर बताकर सोमवार को यहां तोड़फोड़ की. यह मामला सियासी तूल पकड़ चुका है और यूपी विधानसभा में समाजवादी पार्टी ने इसे लेकर हंगामा किया है. पुलिस ने फिलहाल 10 लोगों को नामजद और 150 अन्य अज्ञात को आरोपी बनाया है. पर अब तक गिरफ्तारी की कोई ठोस कार्रवाई नहीं है. इस बीच यूपी Tak की टीम ग्राउंड जीरो पर मौजूद है और इस पूरे विवाद की जड़ तक जाने की कोशिश कर रही है. आइए आपको आज फतेहपुर के इस मकबरे की जमीन की कहानी शुरू से बताते हैं. इस रिपोर्ट आप ये भी जानेंगे कि आखिर हिंदू राजपूत जमींदारों की ये जमीन कैसे मुस्लिम पक्ष के पास गई.
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आपको बता दें कि फतेहपुर में मकबरे को मंदिर मानकर पूजा अर्चना के बाद बवाल खड़ा हो गया. हिंदू पक्ष कहता है यह जमीन हिंदुओं की है भगवान कृष्ण और शिव मंदिर है. मुस्लिम पक्ष कहता है कि यह औरंगजेब के फौजदार अब्दुल समद और उसके बेटे अबू बकर का मकबरा है. अब यूपी Tak की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट आपको बताएगी कि आखिर पूरा सच क्या है.
इसके लिए आपको ब्रिटिश हुकूमत के समय काल में जाना होगा
बात ब्रिटिश हुकूमत के दौरान की है. साल 1927-28 में फतेहपुर की कुल 28 बीघा जमींदारी को लेकर दो जमींदार परिवारों, लाल गिरधारी लाल रस्तोगी और मानसिंह के बीच बंटवारे एक वाद दायर हुआ. 14 अगस्त 1928 को तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की कोर्ट से गाटा संख्या 751/ 752/754 लाल गिरधारी लाल रस्तोगी को दिया गया और गाटा संख्या 753 मानसिंह परिवार को दिया गया.
गाटा संख्या 753 का कुल क्षेत्रफल 1.7650 हेक्टेयर था. यानी 1लाख 89983 स्क्वायर फीट. 30 दिसंबर 1970 को मानसिंह परिवार के वंशज नरेश्वर मानसिंह की पत्नी शकुंतला मानसिंह ने यह 753 गाटा संख्या रामनरेश सिंह को बेच दी. रामनरेश सिंह ने इस जमीन पर प्लॉटिंग कर दी. 10 जुलाई 2014 को एसडीम फतेहपुर की जांच रिपोर्ट के अनुसार रामनरेश सिंह ने 1.5890 हेक्टर जमीन प्लाटिंग कर लोगों को बेच दी.
अब यहां हुई मुस्लिम पक्ष की एंट्री
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह औरंगजेब के फौजदार अब्दुल समद और उसके बेटे अबू बकर का मकबरा है. मुस्लिम पक्ष ने एसडीएम कोर्ट में साल 2007 में एक वाद दायर किया. मुस्लिम पक्ष की ओर से मोहम्मद अनीस ने वाद संख्या 26 /2007 रामनरेश सिंह पर दायर किया था. इसपर सुनवाई करते हुए 20 अप्रैल 2012 को रामनरेश सिंह का नाम जमीन पर से निरस्त करते हुए इस पर मंगी मकबरा राष्ट्रीय संपत्ति मुतवल्ली मोहम्मद अनीस निवासी अबू नगर का नाम दर्ज हुआ.
मौजूदा समय में फतेहपुर के भू राजस्व अभिलेखों में गाटा संख्या 753 पर मंगी मकबरा (राष्ट्रीय संपत्ति) मुतवली मोहम्मद अनीस का नाम दर्ज है. साल 2019 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में इस प्रॉपर्टी को वक्फ संपत्ति के तौर पर दर्ज कराया. इसे वक्फ, मकबरा अब्दुल समद और अबू मोहम्मद के नाम पर वक्फ नंबर 1635 जिला फतेहपुर के तौर पर दर्ज किया गया और इसका मुतवली मोहम्मद अनीस के बाद उसके बेटे अबू हुरैरा को बनाया गया.
दरअसल इस मामले में मोहम्मद अनीस की तरफ से 29 अगस्त 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका डाली गई थी. मोहम्मद अनीस ने हाई कोर्ट में याचिका डाली के गाटा संख्या 753 की जमीन पर कुछ लोग अवैध कब्जा कर रहे हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डिवाइस चंद्रचूड़ की ओर से फतेहपुर जिला प्रशासन को जांच अवैध कब्जे को रोकने का आदेश दिया गया. एसडीम फतेहपुर की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि केस से पहले गाटा संख्या 753 पर रामनरेश सिंह ने प्लाटिंग कर जमीनें बेच दी है. एसडीएम की जांच रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि -
- 753 गाटा संख्या की कुल जमीन 1.7650 हेक्टेयर है
- इसमें 0.5890 हेक्टेयर पर मकान बन चुके हैं
- 1.000 हेक्टेयर पर नींव खुदी है.
- 0.0600 हेक्टेयक पर मंगी मकबरा बना है.
- 0.1160 हेक्टर जमीन यानी लगभग 12486 sqft जमीन खाली पड़ी है. खाली जमीन पर मुतवली अनीस अहमद का कब्जा है.
फतेहपुर विवाद पर इतिहासकार क्या कहते हैं?
इतिहासकार सतीश द्विवेदी इस मकबरे को मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ा बताते हैं. उनके मुताबिक फतेहपुर के अबू नगर में बना यह मकबरा औरंगजेब के फौजदार अब्दुस समद का है. वह बताते हैं कि खजुआ के युद्ध में औरंगजेब ने भाई शुजा को हराया था. उस समय औरंगजेब की सेना ने फतेहपुर में ही डेरा डाला था. बाद में औरंगजेब इस सैन्य छावनी के रूप में डेवलप करने लगा. बाद में उसने अब्दुल समद को फतेहपुर में ही बसा दिया. 1699 में अब्दुल समद की मौत हो गई तो उसके बड़े बेटे अबू बकर ने यह मकबरा बनवाया. इसी मकबरे में अब्दुस समद के साथ अबू बकर की भी मजार है. अब्दुल समद के इसी बेटे अबू बकर के नाम पर अबू नगर भी बसा है.
इतिहासकार सतीश द्विवेदी साफ कहते हैं कि यह मकबरा है. जिस समय अबू बकर फतेहपुर का सूबेदार था उस समय फतेहपुर में दो ही मोहल्ले थे. एक अबू नगर और दूसरा खेलदार. सरकारी दस्तावेजों में 1850 के नक्शे में भी इस पूरे इलाके में सिर्फ यही दो मोहल्ले थे बाकि पूरा इलाका झील थी.
मकबरे पर बनाए गए कमल, कलश जैसे हिंदू चिन्हों पर इतिहासकार सतीश द्विवेदी का कहना है कि मकबरा भले ही अबू बकर ने अपने पिता अब्दुस समद के लिए बनवाया लेकिन बनाया उस समय के हिंदू कारीगरों ने ही होगा. इसकी वजह से कमल जैसे चिन्ह का मिलना आम बात है.
लंबे समय से फतेहपुर के इतिहास को समझने वाले सतीश द्विवेदी कहते हैं कि 1969 तक यह जमीन फतेहपुर के असोथर रहने वाले हिंदू राजपूत परिवार के नाम थी. बाद में 20 अप्रैल 2012 को सरकारी दस्तावेजों में गाटा संख्या 753 पर यह मकबरा मंगी राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज हुई, जिसका मुतवली मोहम्मद अनीस को बनाया गया.
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