Bharat bandh 21 august in UP: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण (सब कैटेगराइजेशन) पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ भारत बंद का आह्वान हुआ है. 21 अगस्त, बुधवार को भारत बंद के इस आह्वान का उत्तर प्रदेश में भी असर पड़ना तय माना जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के बाद भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के सांसद चंद्रशेखर आजाद भी इसके समर्थन में उतर आए हैं. इनके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी ऐलान किया है कि उनकी राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी भी इस भारत बंद का समर्थन करती है. उन्होंने अपने सारे कार्यकर्ताओं से भारत बंद के कार्यक्रम को सफल बनाने की अपील की है.
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यूपी के पड़ोसी राज्य राजस्थान ने भारत बंद को देखते हुए जयपुर, दौसा, भरतपुर, गंगापुर सिटी, डीग, बाड़मेर, झुंझुनू और सवाई माधोपुर जैसे कई जिलों में स्कूलों में छुट्टी का ऐलान कर दिया है. ऐसे में सबके मन में यह सवाल है कि क्या यूपी में भी भारत बंद को देखते हुए ऐसी कोई तैयारी है या नहीं?
यूपी में भारत बंद पर क्या होगा?
- - फिलहाल यूपी में किसी जिले में स्कूल, कॉलेज या अन्य प्रतिष्ठानों को बंद रखने का कोई आधिकारिक निर्देश जारी नहीं हुआ है.
- - सारी आपातकालीन सेवाएं जैसे अस्पताल, एंबुलेंस के अलावा सार्वजनिक परिवहन के साधन जैसे ट्रेन, बस सर्विस को लेकर भी कोई विभागीय अलर्ट जारी नहीं हुआ है.
- - आजाद समाज पार्टी और बसपा, दोनों ने ही अपने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वो शांतिपूर्ण तरीके से भारत बंद में सहयोग करें. ऐसे में कोई पुलिस अलर्ट भी जारी नहीं हुआ है.
- - हालांकि पश्चिमी यूपी में पुलिस कुछ ज्यादा सतर्क रह सकती है, क्योंकि इस इलाके में आंदोलन की तीव्रता जरूर तेज रह सकती है.
- - स्वतःस्फूर्त तरीके से कुछ बाजार बंद रह सकते हैं. ऐसे में अगर आपको जरूरत की सामग्री लेनी है, तो इस बात को ध्यान में रखे जाने की जरूरत है.
- यूपी में कैसा दिख सकता है भारत बंद?
- - भारत बंद के समर्थकों की रैली देखने को मिल सकती है. भीम आर्मी और बसपा के कार्यकर्ताओं ने जिला मुख्यालयों में शांतिपूर्ण रैली निकालने के बाद डीएम ऑफिस पहुंचकर ज्ञापन देने की योजना बनाई है.
क्यों किया गया है भारत बंद का ऐलान?
यह भारत बंद SC/ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ है. एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है कि राज्य सरकारों को SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है. ऐसा इसलिए ताकि इसमें उन जातियों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’’ मामले में अपने 2004 के फैसले को ही पलट दिया. तब पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं.
अब इसी फैसले का विरोध हो रहा है. दलित और आदिवासी संगठनों का आरोप है कि ये आरक्षण छीनने की कोशिश है. उनका तर्क है कि हजारों सालों की प्रताड़ना और छुआछूत को झेलने वाली इस कैटिगरी को एक समूह माना जाना चाहिए ना कि इनका उपवर्गीकरण होना चाहिए. मायावती ने ये भी मांग की है कि केंद्र सरकार इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाए और इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करे. संविधान की 9वीं अनुसूची में जो विषय शामिल हो जाते हैं, वो न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाते हैं.
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