महाकुंभ में पुरुषों के साथ महिलाएं भी बन रहीं नागा साधु, दीक्षा लेने की इनकी प्रक्रिया जानकर चौंक जाएंगे

Mahakumbh 2025:  प्रयागराज महाकुंभ में इस बार नागा पुरुषों के साथ नागा महिलाओं का भी दीक्षा संस्कार होगा. बता दें कि महाकुंभ में महिलाओं ने भी अखाड़ों से जुड़ने में गहरी रुचि दिखाई है.

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समर्थ श्रीवास्तव

19 Jan 2025 (अपडेटेड: 19 Jan 2025, 11:51 PM)

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Prayagraj Mahakumbh:  प्रयागराज महाकुंभ में इस बार नागा पुरुषों के साथ नागा महिलाओं का भी दीक्षा संस्कार होगा. बता दें कि महाकुंभ में मातृ शक्ति ने भी अखाड़ों से जुड़ने में गहरी रुचि दिखाई है. ऐसे में प्रयागराज महाकुंभ में अब तक सबसे अधिक महिला संन्यासी दीक्षा लेने जा रही हैं. इस मामले में प्रयागराज महाकुंभ एक नया इतिहास भी लिखने जा रहा है.

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संयासिनी श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की महिला संत दिव्या गिरी बताती हैं कि इस बार महाकुंभ में अकेले श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतर्गत 200 से अधिक महिलाओं की संन्यास दीक्षा होगी. सभी अखाड़ों को अगर शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या एक हजार का आंकड़ा पार कर जाएगी.

महिला ऐसे बनती हैं नागा साधु

बता दें कि महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन है. इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है. गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है. महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी करना होता है.

महिला संन्यासियों की दीक्षा प्रक्रिया शुरू

गंगा के तट पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा दीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो गई. आपको ये भी बता दें कि संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है. यहां नागा संन्यासियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. 

जूना अखाड़े के पास हैं 5.3 लाख नागा साधु

भगवान शिव के दिगम्बर भक्त नागा संन्यासी महाकुंभ और कुंभ में हमेशा ध्यान खींचते हैं. प्रयागराज महाकुंभ में भी सबसे अधिक भीड़ सबसे ज्यादा नागा साधु वाले जूना अखाड़े के शिविर में ही देखने को मिल रही है. अब शनिवार को नागा दीक्षा शुरू हुई है. बता दें कि जूना अखाड़े के पास  5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं. दूसरी तरफ निरंजनी अखाड़े में भी 5 लाख के ऊपर नागा संन्यासी हैं.

ऐसे बनते हैं नागा साधु

सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी नियमों का पालन करना पड़ता है. उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करने और धर्म-कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है. इसी दौरान उससे ब्रह्मचर्य की परीक्षा भी ली जाती है. अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह तय कर लेता है कि संन्यासी  दीक्षा देने लायक हो चुका है, तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है.

यह प्रकिया महाकुंभ में होती है. उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष फिर अवधूत बनाया जाता है. महाकुंभ में गंगा किनारे उसका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार महाकुंभ की नदी में डुबकी लगानी होती है. आखिर में उसे स्वयं का पिंडदान और दण्डी संस्कार करना होता है. इसके बाद अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं.

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