UP MLC उपचुनाव: बीजेपी-सपा के प्रत्याशियों का नामांकन जातियों को अपने पाले में करने का खेल

शिल्पी सेन

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यूपी में विधान परिषद के लिए निर्वाचित कोटे की 2 सीटों पर उपचुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख पर 3 नामांकन हुए. 11 अगस्त को इन दोनों सीटों के लिए चुनाव होगा. बीजेपी से धर्मेंद्र सिंह सैंथवार और निर्मला पासवान ने नामांकन किया, तो वहीं समाजवादी पार्टी से कीर्ति कोल ने नामांकन किया दाखिल किया. अगर देखा जाए तो ये दोनों सीटें बीजेपी की झोली में जाना तय है. ऐसे में बीजेपी जहां उत्साहित है, वहीं समाजवादी पार्टी ने जीत की कोई उम्मीद न होने पर भी ये तय कर दिया कि बीजेपी प्रत्याशियों का निर्विरोध निर्वाचन नहीं हो पाएगा.

यूपी में विधान परिषद में निर्वाचित कोटे की दो सीटें खाली हैं. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद हसन के निधन से एक सीट रिक्त हुई है, तो वहीं बीजेपी के ठाकुर जयवीर सिंह के इस्तीफा देने से दूसरी सीट खाली हुई है.

जयवीर सिंह को पार्टी ने विधान सभा चुनाव लड़ाया था. अब जय वीर सिंह विधायक हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं. इन्हीं दो खाली सीटों पर उपचुनाव होना है. उपचुनाव में विधायक वोट डालेंगे. ऐसे में सदस्य संख्या के हिसाब से बीजेपी का दोनों सीटों पर जीतना तय है. इसीलिए नामांकन के समय उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कहा कि ‘समाजवादी पार्टी हारने के लिए चुनाव लड़ रही है.’

उपचुनाव सिर्फ दो सीटों पर है. ऐसे में ये चर्चा है कि इसका वर्तमान सियासी माहौल पर क्या असर पड़ेगा. वो भी ऐसे में जब इन दोनों सीटों पर जीत-हार तय है. दरअसल, इन दोनों सीटों पर प्रत्याशियों के घोषित नामों को देखते हुए ये तय है कि सत्तारूढ़ बीजेपी ने जहां अपने संगठन में जातीय समीकरण को मजबूत करने की कोशिश की है, तो वहीं अपने पुराने कैडर के कार्यकर्ताओं को मौका दिया है.

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वहीं समाजवादी पार्टी ने कोई प्रत्यक्ष कारण न होने के बावजूद कीर्ति कोल जैसी कार्यकर्ता को चुनाव में उतारकर दलित और खास तौर पर कोल जैसी अनुसूचित जनजाति को मौका देकर दलित और आदिवासी वर्ग को संदेश दिया कि पार्टी इन वर्गों के साथ है. यानि जीत हार के इस खेल में जातियों का साथ पाने की पूरी कोशिश नजर आ रही है.

बीजेपी की विधान परिषद ने इन दो सीटों को जीतना तय है. सीटों के लिए बैठकों में ही तय हो गया था कि पार्टी संगठन के क्षेत्रीय अध्यक्षों में से किसी चेहरे को मौका दे सकती है. पार्टी ने गोरक्ष क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र सिंह सैंथवार को मौका दिया है. लम्बे समय से ये उम्मीद जतायी जा रही थी कि पार्टी धर्मेंद्र सिंह को उच्च सदन में भेज सकती है. गोरखपुर मुख्यमंत्री का क्षेत्र है और ऐसा माना जा रहा है कि धर्मेंद्र सिंह सैंथवार को उनकी पसंद के तौर पर भी मौका मिला है.

साथ ही संगठन के मूल कार्यकर्ता धर्मेंद्र सिंह विद्यार्थी परिषद से लेकर बीजेपी में कई ज़िम्मेदारी निभा चुके हैं. 2024 में इस क्षेत्र में प्रदर्शन में डॉ धर्मेंद्र सिंह सैंथवार की अहम भूमिका रहने वाली है. पर डॉ धर्मेंद्र सिंह सैंथवार के बहाने पार्टी ने ओबीसी वर्ग को भी संदेश दिया है कि पार्टी ओबीसी को उनके संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व देती है।सैंथवार कुर्मी की उपजाति है. पिछले कुछ समय से बीजेपी कुर्मी वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश लगातार करती रही है.

बीजेपी ने कुर्मी स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी में विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल की हो, वहीं गठबंधन के सहयोगी अपना दल को भी कुर्मी के पटेल वोट बैंक पर पकड़ की वजह से उन क्षेत्रों में बीजेपी की राह आसान हुई है. वहीं पार्टी ने चुनाव से पहले शामिल हुए राकेश सचान को न सिर्फ टिकट देकर बल्कि जीतने के बाद कैबिनेट मंत्री बनवाकर भी ओबीसी को संदेश दिया. जाहिर जहां पार्टी करीब 11 प्रतिशत कुर्मी जाति को अपने पाले में रखना चाहती थी वहीं पूर्वांचल में अपने कैडर के कार्यकर्ता को भी समायोजित करना चाहती थी.

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बीजेपी ने निर्मला पासवान को भी उच्च सदन में भेजने का फैसला किया. निर्मला पासवान दलित हैं और बीजेपी की गैर जाटव दलितों को जोड़ने के लिहाज से अहम कड़ी साबित हो सकती हैं. क्षेत्र में लम्बे समय से सक्रिय निर्मला पासवान 2012 में सोरांव विधानसभा से चुनाव भी लड़ चुकी हैं. महिला नेता होने के नाते उनसे आगे 2024 में महिलाओं को जोड़ने की भी अपेक्षा होगी.

यूपी में दलित समुदाय में 66 उप जातियां हैं. इसमें से जाटव की संख्या सबसे ज़्यादा (क़रीब 50प्रतिशत) है. शेष जातियों में वाल्मीकी, पासी,खटिक, कोरी, जैसी जातियां हैं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती खुद जाटव हैं इसलिए जाटव को बीएसपी का कोर वोटर माना जाता रहा है.

ऐसे में बीजेपी रणनीति बनाकर दूसरी दलित जातियों को जोड़ने की कोशिश लगातार कर रही है. निर्मला पासवान को उच्च सदन भेजना इसी रणनीति का हिस्सा है. बीजेपी इन दोनों सीटों को आसानी से जीत लेगी. ऐसे में पार्टी ने ओबीसी+दलित समीकरण को मजबूत करने की कोशिश की है.

बीजेपी ने इस उपचुनाव के बहाने पार्टी में जातीय गणित को मजबूत कर लिया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने भी दलित वर्ग को संदेश दिया है. कीर्ति कोल अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं. इस बात की चर्चा है कि एक आदिवासी महिला उम्मीदवार को राष्ट्रपति के तौर पर समर्थन न देने से इन वर्गों को जो संदेश गया था अखिलेश यादव उसको बदलना चाहते थे. हालांकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी कीर्ति कोल को चुनाव में उतारने से बीजेपी प्रत्याशियों का निर्विरोध निर्वाचन सम्भव नहीं हो पाएगा, लेकिन बीजेपी प्रत्याशियों का विधानपरिषद जाना तय है.

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