SC-ST में कोटा में कोटा: SC के फैसले पर चंद्रशेखर आजाद का पहला रिएक्शन, अलग ही सवाल उठा दिए
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से दिए एक फैसले में गुरुवार को कहा कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं. इस मामले पर अब चंद्रशेखर आजाद की प्रतिक्रिया सामने आई है.
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सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से दिए एक फैसले में गुरुवार को कहा कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं. भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए. इस मामले पर अब आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिक्रिया सामने आई है.
चंद्रशेखर ने कहा, "सवाल यह है कि कोटा कहां है? जिस तरह से लेटरल एंट्रियां बढ़ी हैं, ठेकेदारी सिस्टम बढ़ा है, संविदा पर लोग रखे जा रहे हैं, कहां है कोटा? मैं समझता हूं यह बड़ा फैसला है. बड़ा सवाल यही है जब आरक्षण बचेगा ही नहीं, निजीकरण आ जाएगा तो ये झुनझुना ही बन जाएगा."
नगीना सांसद ने कहा, "अखिलेश जी के सीएम बनने के बाद क्या ओबीसी का स्टेटस बदल गया? अखिलेश जी ने कहा था कि जिस मंदिर में मैं गया था उसे धोया गया. इसका मतलब यह है कि एससी-एसटी-ओबीसी का स्टेटस नहीं बदलता है. पता नहीं समाजवादियों ने क्यों इसका समर्थन कर दिया. इसको पढ़ना चाहिए ये जरूरी विषय है. मैं इस बात की स्टडी करूंगा कि इस फैसले को देने वाले जजों में कितने एससी-एसटी के थे, यहीं पता लग जाएगा कि एससी-एसटी के लोगों को कितना मौका मिला है."
विस्तार से जानिए पूरा केस
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे. पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है. सीजेआई ने अपने और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से फैसला लिखा. चार न्यायाधीशों ने सहमति वाले फैसले लिखे जबकि न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने असहमति वाला फैसला लिखा है.
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ईवी चिन्नैया मामले में पांच सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को पलटते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी और एसटी समुदाय के सदस्य व्यवस्थागत भेदभाव के कारण अक्सर आगे नहीं बढ़ पाते हैं. न्यायमूर्ति गवई ने एक अलग फैसले में कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करनी चाहिए तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए. असहमति वाला आदेश देते हुए न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जाति सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते.
न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि राज्यों की सकारात्मक कार्यवाही संविधान के दायरे के भीतर होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि आरक्षण प्रदान करने के राज्य के नेक इरादों से उठाए कदम को भी अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करके उच्चतम न्यायालय द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय ने आठ फरवरी को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें ई वी चिन्नैया फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया है.
शीर्ष अदालत ने 2004 में फैसला सुनाया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले एससी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता. अब उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया है. शीर्ष अदालत ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ मामले में 2004 के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में सुनवाई कर रही है, जिसमें यह कहा गया था कि एससी और एसटी सजातीय समूह हैं.
फैसले के मुताबिक, इसलिए, राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए एससी और एसटी के अंदर वर्गीकरण पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं.
(पीयूष मिश्रा और पीटीआई के इनपुट्स के साथ)