चुनाव से पहले सहयोगी निषाद ने बढ़ाई BJP की टेंशन, 9 नवंबर से प्रदर्शन की धमकी, पर क्यों?

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यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले हर पल चुनावी शह-मात और राजनीतिक दांव पेंच के अलग-अलग रूप देखने को मिल रहे हैं. रविवार का दिन यूपी में सियासत के सुपर संडे की तरह बीतता नजर आ रहा है. एक तरफ अखिलेश यादव ने बीएसपी के दो दिग्गजों, लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को अपने पाले में कर जातिवार गोलबंदी का बड़ा गेम खेला है, तो दूसरी तरफ एक सहयोगी दल के नेता ने ही बीजेपी को बड़ी टेंशन दे ही. सहयोगी दल का नाम है निषाद पार्टी और नेता हैं संजय निषाद.

एएनआई के मुताबिक संजय निषाद ने कहा है कि उनके समुदाय (निषाद) के लोग आरक्षण मिलने तक वोट नहीं करेंगे. उन्होंने बीजेपी को सीधे शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा है कि अब यह बीजेपी का दायित्व है कि वह अपने वादों को पूरा करे. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर बीजेपी अपने वादों को पूरा नहीं करती, तो गठबंधन पर इसका असर पड़ेगा.’

राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के चीफ संजय निषाद ने कहा है कि उनकी मांगें नहीं पूरी की गईं तो 9 नवंबर से यूपी के हर जिले में प्रदर्शन होगा.

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सितंबर महीने में साथ आए निषाद के सुर बागी क्यों?

आपको बता दें कि अभी 24 सितंबर को ही बीजेपी ने यूपी चुनावों के लिए निषाद पार्टी के साथ अपने गठबंधन का ऐलान किया था. बीजेपी के यूपी चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तब कहा था कि सहयोगियों को सम्मानजनक सीटें दी जाएंगी. हालांकि तब से लेकर अबतक निषाद पार्टी या बीजेपी की यूपी में दूसरी सहयोगी अपना दल के साथ सीट बंटवारे को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है.

पिछले दिनों यह भी खबर आई थी कि योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट विस्तार में एक नाम संजय निषाद का होगा. लेकिन जब कैबिनेट विस्तार हुआ तो संजय निषाद का नाम लिस्ट में नहीं आया. हालांकि तब संजय निषाद ने दावा किया था कि वह पद-प्रतिष्ठा के लिए नहीं बल्कि सामाजिक मुद्दों के हल के लिए काम कर रहे हैं. तब उन्होंने बीजेपी के साथ मजबूती दिखाते हुए कहा था कि समय आने दीजिए बीजेपी कुछ भी कर सकती है.

पर अब संजय निषाद का रुख बदला-बदला सा नजर आ रहा है. अब जबकि यूपी में चुनाव को ज्यादा वक्त नहीं रह गया है, एक अहम सहयोगी का ऐसा रुख बीजेपी के लिए चिंता का सबब जरूर है. बीजेपी के लिए यह मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि गैर यादव पिछड़ी जातियों के वोट के लिए संजय निषाद और अपना दल जैसे सहयोगियों की भूमिका अहम है. ऐसे में आने वाले वक्त में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी संजय निषाद की नाराजगी को कैसे दूर करती है.

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