क्या था 1995 का गेस्ट हाउस कांड, जिसका जिक्र करते हुए मायावती ने एक बार फिर सपा पर हमला बोला
यूपी की सियासी गलियारों में एक बार गेस्ट हाउस कांड की चर्चा तेज हो गई है. आइए देश की राजनीति की किताब में एक बुरे अध्याय के रूप में दर्ज गेस्ट हाउस कांड की पूरी कहानी जानते हैं.
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आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर यूपी की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रमुखों के बीच जुबानी जंग जारी है. सोमवार को बसपा चीफ मायावती ने जून 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड का जिक्र करते एक बार फिर सपा पर जमकर हमला बोला है. ऐसे में यूपी की सियासी गलियारों में एक बार गेस्ट हाउस कांड की चर्चा तेज हो गई है. आइए देश की राजनीति की किताब में एक बुरे अध्याय के रूप में दर्ज गेस्ट हाउस कांड की पूरी कहानी जानते हैं.
इस कहानी को सिलसिलेवार समझने के लिए हमें घटना वाले दिन से दो साल पीछे लौटना होगा. साल 1993 में सपा और बसपा ने मिलकर यूपी का विधानसभा चुनाव लड़ा था और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में साझा सरकार बनाई थी. कुछ महीनों तक सपा-बसपा का गठबंधन अच्छी तरह चला. मगर धीरे-धीरे वो मुद्दे उभरने लगे, जिनको लेकर सपा और बसपा की राहें अलग-अलग थीं. ऐसा ही एक मुद्दा महात्मा गांधी से जुड़ा था.
अजय बोस अपनी किताब ‘बहनजी’ में लिखा है कि मायावती ने मार्च 1994 के पहले हफ्ते में मीडिया से बात करते हुए महात्मा गांधी को लेकर कहा कि उनके कामों ने हमारी प्रगति को धीमा कर दिया है. मायावती ने तब महात्मा गांधी द्वारा दलितों को हरिजन कहने को लेकर भी आपत्ति जताते हुए कहा था कि अगर दलित भगवान की संतान हैं, तो क्या बाकी लोग शैतान की संतान हैं? अगर गांधी को यह शब्द इतना पसंद था तो उन्होंने खुद को हरिजन क्यों नहीं कहा? मायावती के इस बयान पर बवाल हो गया.
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हालांकि, तब मुलायम ने मायावती की कोई सार्वजनिक आलोचना नहीं की, बस इतना कह पल्ला झाड़ा की वह खुद महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक हैं. मगर साल 1994 जबतक आधा गुजरता, इन दोनों दलों के संबंध काफी बिगड़ गए. दलितों पर हिंसक अत्याचार के मामलों को लेकर मुलायम सरकार घिर गई. कांशीराम के साथ कभी-कभार होने वाली बैठकों ने इस समस्या के हल के बजाय इसे और बढ़ाया.
दरअसल, होने यह लगा था कि कांशीराम खुद मुख्यमंत्री से मिलने की बजाय उन्हें गेस्ट हाउस बुलाने लगे. रिसेप्शन लॉबी में उन्हें इंतजार कराने लगे. फिर मिलते भी तो अस्त-व्यस्त हालत में, बनिया और लुंगी पहने. ये तस्वीरें जब पब्लिक हुईं तो मुलायम सरकार के लिए शर्मिंदगी की वजह बनीं.
बसपा विधायकों के संपर्क में थे मुलायम
मुलायम सरकार पर संकट को भांप रहे थे. उन्होंने इसके लिए सियासी प्लान बनाया. साल 1995 के मध्य तक वह बसपा के एक दर्जन विधायकों के संपर्क में थे. ऐसा माना जा रहा था कि बसपा के शीर्ष नेता बस मुलायम के इशारे के इंतजार में थे. मुलायम का अपना आकलन था कि महात्मा गांधी की निंदा के बाद बसपा को समर्थन नहीं मिलेगा, लेकिन उन्हें कांशीराम और बीजेपी के तबके सबसे मजबूत नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कमेस्टिरी का अंदाजा नहीं था.
उस वक्त बीजेपी नेतृत्व बसपा के साथ गठबंधन कर कांशीराम को नया सीएम बनाने के लिए तैयार था, लेकिन उनकी कमजोर शारीरिक स्थिति इसके अनुकूल नहीं थी. मई के अंत तक कांशीराम के पास खबर पहुंची कि मुलायम सिंह बीएसपी को तोड़ने वाले हैं. कांशीराम ने मायावती को अपने अस्पताल बुलाया और अपनी योजनाओं के बारे में बताया. मायावती ने बिल्कुल देर नहीं की और यूपी के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मिल बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. जून के पहले दिन जब यह बात मुलायम सिंह के पास पहुंची कि मायावती ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया, तो वह गुस्से से भर गए, मायावती और कांशीराम के प्रति ही नहीं, बल्कि बसपा के खिलाफ अपनी योजना को लागू करने में देरी के लिए खुद के प्रति भी.
क्या था गेस्ट हाउस कांड?
उधर, मायावती ने 2 जून की दोपहर को लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बीएसपी विधायकों की एक बैठक बुलाई. बैठक खत्म होने के बाद, मायावती आगे की चर्चा के लिए पार्टी विधायकों के एक चुनिंदा समूह के साथ अपने सुइट में चली गईं. बाकी विधायक कॉमन हॉल में ही थे. शाम 4 बजे के कुछ ही देर बाद करीब 200 लोगों की भीड़ ने गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया. कहा जाता है कि भीड़ में समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थक शामिल थे.
भीड़ में शामिल लोग बसपा विधायकों और उनके परिवारों को अपंग करने और मारने की धमकी देने वाले नारों के साथ-साथ ‘च$& पागल हो गए हैं, हमें उन्हें सबक सिखाना होगा’ जैसे जातिवादी नारे भी लगा रहे थे. भीड़ को देखकर कॉमन हॉल में मौजूद विधायकों ने आनन-फानन में मुख्य दरवाजे को बंद कर दिया था, लेकिन उन्मादी भीड़ ने उसे तोड़ दिया. फिर इस भीड़ ने बसपा विधायकों के साथ मारपीट की.
अजय बोस ने अपनी किताब में लिखा है कि बसपा के कम से कम पांच विधायकों को गेस्ट हाउस से जबरन घसीटा गया और कारों में डाल दिया गया जो उन्हें मुख्यमंत्री आवास तक ले गईं. वहां उन्हें राज बहादुर के नेतृत्व वाले बसपा के बागी गुट में शामिल होने और मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने के लिए एक कागज के टुकड़े पर हस्ताक्षर तक कराए गए. देर रात तक विधायक वहीं कैद रहे.
उधर, दो पुलिस अधिकारियों, विजय भूषण, स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ), हजरतगंज और सुभाष सिंह बधेल, एसएचओ, (वीआईपी) के साहस की वजह से मायावती सुरक्षित रहीं. ये दोनों अधिकारी कुछ कॉन्स्टेबलों के साथ काफी मुश्किल का सामना करते हुए भीड़ को थोड़ा पीछे हटाने में कामयाब रहे. हालांकि, इस बीच, गुस्साई भीड़ ने मायावती को सुइट से बाहर खींचने की धमकी देते हुए, नारेबाजी और गालियां देना जारी रखा. लखनऊ के जिलाधिकारी राजीव खेर के आगमन के बाद व्यवस्था थोड़ी बहाल हुई, जिन्होंने भीड़ के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया.
देर शाम तक गेस्ट हाउस के अंदर की स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने लगी क्योंकि राज्यपाल कार्यालय, केंद्र सरकार और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के दखल के बाद बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को मौके पर भेज दिया गया.
इसके बाद 3 जून 1995 को बीजेपी, कांग्रेस, जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी के 282 विधायकों के समर्थन से मायावती ने आखिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. देश में पहली दलित महिला मुख्यमंत्री.
गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती ने क्या कहा?
गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती और मुलायम के बीच एक ‘राजनीतिक दुश्मनी’ बढ़ती गई.मायावती ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफरनामा’ में लिखा, “मुलायम सिंह का आपराधिक चरित्र उस समय सामने आया, जब उन्होंने स्टेट गेस्ट हाउस में मुझे मरवाने की कोशिश करवाई. उन्होंने अपने बाहुबल का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ हमारे विधायकों का अपहरण करने की कोशिश की, बल्कि मुझे मारने का भी प्रयास किया.”
जांच में क्या सामने आया?
गेस्ट हाउस कांड की जांच के लिए रमेश चंद्र कमेटी बनाई गई. इस कमेटी ने अपनी 89 पेज की रिपोर्ट में गेस्ट हाउस कांड की साजिश के लिए मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया.
मायावती ने वापस लिए केस
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 24 साल बाद 19 अप्रैल, 2019 को पहली बार मुलायम सिंह यादव और मायावती मैनपुरी में एक साथ मंच पर नजर आए. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों ने एक बार गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. हालांकि, ये गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चला और लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही टूट गया. 2019 में गठबंधन से ठीक पहले मायावती ने मुलायम सिंह यादव के ऊपर लगे गेस्ट हाउस कांड वाले केस वापस ले लिए. खुद मायावती ने इसकी जानकारी ट्वीट कर दी थी.
दिनांक 2 जून 1995 का लखनऊ गेस्ट हाऊस केस बी.एस.पी. व सपा गठबन्धन के उपरान्त तथा लोकसभा आमचुनाव के दौरान ही सपा के विशेष आग्रह पर दिनांक 26.02.2019 को मा. सुप्रीम कोर्ट से वापस लिया गया था न की अभी, जैसाकि कुछ मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है।
— Mayawati (@Mayawati) November 8, 2019