UP सरकार के 100 दिन: कई चुनौतियां, अखिलेश की मौजूदगी, सबसे पार पाते दिखे CM योगी आदित्यनाथ

कुमार अभिषेक

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

साल 2022 के विधानसभा चुनावों में जब दो तिहाई बहुमत के साथ योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की सरकार दोबारा सत्ता में लौटी तो लगा मानो अब योगी आदित्यनाथ बेहद ही आसानी से सरकार चला लेंगे. ऐसा माना जाने लगा कि 5 साल का उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें सबसे आसान मुख्यमंत्रित्व काल देने जा रहा है. हालांकि सीएम योगी का दूसरा कार्यकाल 2.0 उनके लिए कांटों भरे ताज जैसा भले न हो लेकिन जिस तरह की नई चुनौतियां सरकार बनते ही दिखीं, उनसे यह तय हो गया कि योगी 2.0 का सफर इतना आसान नहीं रहने वाला है.

चुनौतियों की शुरुआत मंत्रिमंडल गठन से शुरू हुई. माना गया कि सीएम योगी के मंत्रिमंडल में ही योगी की नहीं चली और अपवादों को छोड़कर ये मंत्रिमंडल, बीजेपी का संगठन और केंद्र ने अपने पसंद का बनाया. दोनों उपमुख्यमंत्री संगठन की पसंद और केंद्र की सहमति से बने. दिनेश शर्मा और महेंद्र सिंह जैसे नाम मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए. सीएम योगी के लिए ये शुरुआती झटका इसलिए था क्योंकि दोनों ही उनके खास माने जाते थे. केशव मौर्य (Keshav Prasad Maurya) को हारने के बावजूद डिप्टी सीएम बनाया जाना और दिनेश शर्मा को हटाकर ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) को डिप्टी सीएम बनाना भी सीएम योगी के लिए सुखद संकेत नहीं था.

हालांकि सीएम योगी ने इसे चुपचाप स्वीकार कर लिया. पिछले तीन महीनों में एक भी मौका ऐसा नहीं आया जब सीएम की मंत्रिमंडल को लेकर कोई शिकायत आई हो. मंत्रिमंडल के शपथ के तुरंत बाद सीएम ने अपनी पहली अनौपचारिक कैबिनेट बैठक में ये साफ कर दिया था कि भले ही मंत्री चुनने में उनकी कम चली हो लेकिन मंत्रियों को हटाने का अधिकार उनके ही पास है. अगर कोई गड़बड़ हुई तो अपने उस अधिकार का इस्तेमाल करने में वो कतई नहीं हिचकेंगे.

सरकार बनते ही एक के बाद कई चुनौतियां सामने आती गईं. राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती सदन में योगी के सामने अखिलेश यादव का होना है. विधानसभा में अबतक सीएम योगी एकमात्र और एकछत्र नेता थे. पिछली सरकार में विपक्ष का कोई नेता उस कद का नहीं था जो उनके सामने टिक पाता. पूरे पांच साल योगी आदित्यनाथ सदन में छक्के दर छक्के लगाते रहे और विपक्ष धार विहीन दिखाई दिया. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने संसद से इस्तीफा देकर सदन में उनके लिए चुनौती खड़ी कर दी. अब चाहे सदन में सवाल-जवाब हों या पक्ष- विपक्ष की बहस, अखिलेश यादव एक चुनौती के तौर पर उभरे हैं.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

चाहे केशव मौर्य पर अखिलेश यादव का बिफरना हो या पल्लवी पटेल (Pallavi Patel) का हमला, सदन के भीतर 124 सदस्यों वाले सपा गठबंधन ने दिखा दिया कि बेशक वो सत्ता में नहीं आ पाए लेकिन सदन में उन्हें आसानी से काबू में नहीं किया जा सकता.

इन सौ दिनों में काशी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Controversy) में कथित शिवलिंग का मिलना और इसपर दोनों पक्षों की भावनाओं को काबू में करना भी आसान नहीं था. जब ऐसा लगा कि अदालत के आदेश के बावजूद ज्ञानवापी का सर्वे नहीं हो पाएगा और मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद में सर्वे नहीं होने देने की ठान ली है, तब प्रशासन के हाथ पांव फूल गए. प्रस्तावित सर्वे के एक दिन पहले सीएम योगी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का रूख किया और तब जाकर प्रशासन को विश्वास आया और फिर जाकर ये सर्वे हो पाया.

बड़ी चुनौती का एक स्वरूप नूपुर शर्मा के विवादित टिप्पणी के बाद भी देखने को मिला. तब प्रदेश भर में जुम्मे की नमाज़ के बाद कई जिलों में पत्थरबाजी की घटनाएं हो गईं. कानपुर प्रयागराज और अमरोहा में हालात काबू से बाहर होते नज़र आए तो योगी सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया. चुनौती कानपुर में इसलिए ज्यादा थी क्योंकि जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति कानपुर में थे उसी दिन कानपुर में पत्थरबाजी से दंगे जैसे हालात बन गए. कानपुर से लेकर प्रयागराज तक योगी ने सख्त तेवर अपना लिए.

ADVERTISEMENT

कानपुर में चंद्रेश्वर हाता पर पत्थरबाजी और प्रयागराज (Prayagraj Violence) में पुलिस पर हमला ,पुलिस वैन जलाए जाने के बाद योगी सरकार ने ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां की. हिंसा के मुख्य आरोपी जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप के दो मंजिला घर को तीन बुलडोज़र लगाकर ढहा दिया. प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने हालांकि जावेद पम्प के घर को ढहाने की घटना को जायज़ ठहराते हुए कहा कि जावेद पंप का घर नाजायज तौर पर बिना किसी नक्शा पास कराए बनाया गया था, . तर्क दिया गया कि इसका हिंसा से कोई ताल्लुक नहीं है लेकिन जावेद पम्प की जेएनयू में पढ़ने वाली बेटी आफरीन ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बना दिया. सरकार को अपनी बात सिद्ध करने में मुश्किल हो रही है. हालांकि सीएए और एनआरसी की तर्ज पर योगी प्रशासन ने इस विरोध को भी लगभग कुचल दिया. पीडीए ने भी जावेद पंप के घर को अदालत में अवैध घोषित कर दिया.

इधर, आजम खान (Azam Khan) का जेल से बाहर आना योगी सरकार के लिए चुनौती से कही ज्यादा उनके लिए मुफीद साबित हुआ. जेल से बाहर आकर आज़म खान ने योगी सरकार से कहीं ज्यादा अखिलेश के लिए मुश्किलें बढ़ाईं. आज़म योगी पर तो चुप रहे लेकिन अखिलेश और मुलायम पर निशाना साधते रहे. इसी का नतीजा था कि राज्यसभा, एमएलसी चुनाव और आजमगढ़ और रामपुर चुनाव में अखिलेश योगी के लिए ज्यादा मुसीबत नहीं बन सके. योगी आदित्यनाथ ने आसानी से सपा को इन चुनावों में निबटा दिया.

हालिया राज्यसभा चुनावों में आजम खान ने 3 में से 2 सीटें हथिया लीं, जो अखिलेश यादव को भारी पड़ा. कपिल सिब्बल जिन्होंने आज़म खान को बेल दिलाई उन्हें अखिलेश यादव ने राज्यसभा भेजा, जबकि आज़म के ही एक और करीबी जावेद अली को भी सपा ने राज्यसभा भेजा. इन दोनों पर आजम खान का टैग था लेकिन जैसे ही तीसरी सीट के लिए डिंपल यादव का नाम आया जयंत चौधरी ने दबाव बना दिया. अखिलेश यादव डिंपल को राज्यसभा भेजना चाहते थे. उनके पर्चे खरीदकर तैयार् किये जा चुके थे लेकिन जयंत चौधरी ने आखिरी वक्त में जो दबाव बनाया उसने अखिलेश को डिंपल यादव का पर्चा वापस लेने को मजबूर कर दिया.

ADVERTISEMENT

कुछ ऐसा ही विधानपरिषद चुनाव में भी हुआ जब 4 में से 2 सीटें आजम खान के कोटे में चली गईं. आजम खान जेल से आने के बाद योगी के लिए मुसीबत बनने के बजाय अखिलेश यादव के लिए ही सिरदर्द बन गए. इन सब चीजों ने योगी को नई ऊर्जा दे दी. रही सही कसर आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों ने निकाल दी. आजमगढ़ से निरहुआ का चुनाव जीतना योगी आदित्यनाथ की निजी जीत और अखिलेश यादव की निजी हार के तौर पर देखा जा रहा है. निरहुआ के सामने अखिलेश यादव ने अपने सबसे विश्वस्त चेहरे और भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा था. उधर दिनेश लाल यादव निरहुआ योगी की पसंद थे, जिन्हें जीत दिलाकर सीएम योगी ने साबित कर दिया कि संगठन कौशल में भी उन्हें महारत है और उनके अंदर संगठन से इतर अपने उम्मीदवार को जिताने का कौशल भी है.

जब योगी सरकार के 100 दिन पूरे होने वाले थे तभी देशभर में अग्निवीर योजना के ख़िलाफ़ सेना के अभ्यर्थियों का अभियान जोर पकड़ गया. बिहार. यूपी और आंध्रप्रदेश में ट्रेनों में आगजनी तोड़फोड़ और देशव्यापी बंद का सिलसिला जोर पकड़ने लगा. ऐसा लगा मानों ये आंदोलन पूरे देश को अपने चपेट में ले लेगा. बिहार से सटे बलिया और जौनपुर में ट्रेन और बसों में आग की घटनाएं अचानक ही योगी सरकार के लिए चुनौती बनकर उभरीं. जलती ट्रेन और बसों के दृश्य डराने वाले थे, लेकिन यहां भी योगी आदित्यनाथ सरकार ने बखूबी इस चुनौती का सामना किया.

कुछ सख्ती और पुलिस अधिकारियों को फील्ड पर उतारने की रणनीति काम आई. पुलिस अधिकारी समझाते ज्यादा और डराते कम नज़र आए. गिरफ्तारी में भी संवेदनशीलता बरती गई. सेना के अभ्यर्थियों को जो किसी पार्टी से जुड़े नहीं थे उन्हें पुलिस ने समझाने पर जोर दिया और पुलिसिया कार्यवाई से उन्हें अलग रखा. धीरे-धीरे योगी का ये फार्मूला काम आया नाराज़गी के बावजूद सेना के अभ्यर्थियों ने आंदोलन से दूरी बना ली.

कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ के लिए ये 100 दिन चुनौतियों भरे जरूर रहे, लेकिन इन सबके बीच योगी की नई तस्वीर सामने आई, जो कहीं ज्यादा समावेशी है. धार्मिकस्थलों से लाउडस्पीकर हटाने में योगी की देशभर में तारीफ हुई, क्योंकि मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर हाथ लगाने के पहले योगी ने गोरखपुर के अपने मठ गोरक्षनाथ पीठ के लाउडस्पीकर को हटाया. फिर मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि के लाउडस्पीकर को हटाया गया. इसके बाद पूरे प्रदेश की मस्जिदों और मंदिरों से लाउडस्पीकर हटाना आसान हो गया और महज कुछ दिनों के अभियान से ही 55 हजार लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों से उतार लिए गए.

योगी आदित्यनाथ की तारीफ मौलाना तौकीर रजा ने ने भी अपने जलसे में तब की जब सरकार के खिलाफ गुस्सा चरम पर था. ये तारीफ अयोध्या में उस कांड के खुलासे पर था जिसमें एक हिन्दू संगठन ने अयोध्या मस्जिदों में आपत्तिजनक सामग्री फेंकी थी. दो दिनों के भीतर न सिर्फ इसका खुलासा हुआ बल्कि मुसलमानों के खिलाफ पनप रहे इस नए हिन्दूवादी संगठन को योगी सरकार ने बेरहमी से कुचल दिया.

योगी के 100 दिन की जब रिपोर्ट कार्ड रखी जाएगी तो शायद इन चीजों का ज़िक्र न हो. हालांकि ऐसा जरूर कहा जा सकता है कि इन 100 दिनों में एक नए योगी का उदय जरूर दिखाई दिया.

सरकार के 100 दिन पूरे होने पर CM योगी ने पेश किया रिपोर्ट कार्ड, अखिलेश ने यूं कसा तंज

    Main news
    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT