कहानी काशी विश्वनाथ की, आक्रमण से बचाने को जब शिवलिंग लेकर ज्ञानवापी कूप में कूदे पुजारी

शिल्पी सेन

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तीन लोकों से न्यारी काशी. ऐसा कहा जाता है कि काशी स्वयं महादेव के ‘त्रिशूल’ पर टिकी है. मान्यता है कि काशी के स्वामी स्वयं महादेव हैं, पर महादेव की महिमा तो देखिए, खुद महादेव विश्वनाथ (विश्व के स्वामी) के रूप में यहां विराजमान हैं.

काशी कॉरिडोर के निर्माण पर पूरी दुनिया फिर वाराणसी की ओर देख रही है. पर क्या है उन विश्वनाथ की महिमा जो सिर्फ काशी ही नहीं पूरे संसार के स्वामी हैं? काशी विश्वनाथ की जितनी मान्यताएं हैं, उतनी ही कथाएं बाबा से जुड़ी हैं. कहीं शक्ति द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना की कथा कही जाती है, तो कहीं विष्णु द्वारा और कहीं स्वप्न में बाबा के दर्शन और काशी में बसने की इच्छा की बात भी सुनाई जाती है.

काशी विश्वनाथ बाबा का लोकप्रिय नाम है. बाबा का शास्त्रों में नाम विश्वेश्वरनाथ है. कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंगों में ‘विश्वेश्वर’ (विश्वनाथ) शिवलिंग अद्भुत है. मत्स्य पुराण में अविमुक्तेश्वर, विश्वेश्वर और ज्ञान वापी का जिक्र आया है. ये स्थान शिव और पार्वती का आदिस्थान है, इसलिए कई लोग अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम शिवलिंग भी मानते हैं. विश्वनाथ जी द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल हैं, जिनके स्वयंभू प्रकट होने की मान्यता भी है.

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Astro Physics की दृष्टि से इसकी विशद (विस्तारपूर्वक) व्याख्या है. इस विषय पर विस्तार से अध्ययन कर चुके काशी के मर्मज्ञ इतिहासकार राना पीबी सिंह बताते हैं,

“ब्रह्मांड की दृष्टि से इस शिवलिंग में तीनों रूप हैं. सबसे नीचे तीन लेयर (layer) में ‘सृष्टि रूप’ यानी ब्रह्मा, उसके ऊपर अष्टकोण (octagonal) में ‘स्थिति रूप’ यानी विष्णु, उसके ऊपर पिंड यानी गर्भ इसके बाद शिवलिंग यानी शिव. इसका धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व है.”

राना पीबी सिंह

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राना पीबी सिंह बताते हैं कि महाभारत के वन पर्व में भी विश्वनाथ का वर्णन है.

काशी में तथ्यों और मान्यताओं की समान धारा

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वाराणसी में अन्य सभी बातों की तरह ही काशी के अधिपति और संपूर्ण संसार के कण-कण में बसने वाले महादेव को लेकर जितने तथ्य हैं, उतनी ही मान्यताएं भी हैं. कोई एक बात या सर्वमान्य तथ्य नहीं दिखता. हालांकि, मंदिर के आक्रमण में क्षतिग्रस्त होने और रानी अहिल्या बाई की और से पुनर्निर्माण की बात स्पष्ट है, लेकिन शिवलिंग के बारे में कही-सुनी बातें हैं. कहते हैं कि आक्रमण से बचाने के लिए पुजारी शिवलिंग लेकर ज्ञानवापी कूप में कूद गए थे, लेकिन इसकी मान्यता वैसी ही रही. इसके पीछे ये तथ्य है कि रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीके के 11 रुद्रों के प्रतीक 11 अर्चकों के पूजा अर्चना द्वारा शिवलिंग को पूजित करवाया. मुख्य अर्चक के रूप में नारायण भट्ट की बात कुछ लोग कहते हैं, तो कुछ लोग उनकी पहचान गुप्त बताते हैं.

विश्वनाथ शिवलिंग के बारे में गंगा महासभा के महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं, “सभी ज्योतिर्लिंगों में भी काशी के विश्वेश्वरनाथ विशेष हैं, क्योंकि सिर्फ विश्वेश्वरनाथ ही मोक्ष प्रदान करते हैं. यही आख्यान मिलता है कि इनका प्राचीनतम वर्णन अविमुक्तेश्वर नाम से है, यानी जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर दें. इसीलिए काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है. यहां शरीर त्यागने पर महादेव स्वयं तारक मंत्र द्वारा व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करते हैं.”

काशी के ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी कहते हैं, “काशी में विश्वेश्वर शिवलिंग की स्थापना स्वयं विष्णु ने की थी. ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है, क्योंकि मोक्ष न पाने पर पुनः काशी में जन्मलेना पड़ता है…और मोक्ष विश्वेश्वर (विश्वनाथ) काशी में प्रदान करते हैं.” ऋषि द्विवेदी कहते हैं कि ये नर्मदेश्वर शिवलिंग है.

इन सब विषयों के बाद भी काशी विश्वनाथ यहां आने वालों के लिए सभी बंधनों से मुक्त करने वाले देव हैं. वर्तमान शिवलिंग का यही माहात्म्य स्थापित है. राना पीबी सिंह मत्स्य पुराण में वर्णित शिव के ‘आकाश रूपेण, चित्त मात्रेण’ रूप का जिक्र करते हैं. साथ ही कहते हैं ‘आपको न मंत्र आता हो, न धर्म के ज्ञाता हो. आपको प्रेम आना चाहिए. यही प्रेम भक्तों को विश्वनाथ से भी जोड़ता है. यही तो विश्वनाथ का वो रूप है जिसकी वजह से संसार के स्वामी होने पर भी वो भोलेनाथ कहे जाते हैं.

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