काशी में गंगा घाट पर पूर्वजों के लिए जलाए जाते हैं ‘आकाश दीप’, जानें इस अद्भुत परंपरा को

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तीन लोकों से न्यारी काशी की अद्भुत परंपराएं हमेशा से दुनिया का ध्यान खींचती रही हैं. महादेव की इस नगरी में मोक्ष की कामना में भी लोग आते हैं. जीवन और मृत्यु से जुड़ी कई परंपराएं यहां ऐसी हैं, जो और कहीं देखने को नहीं मिलतीं. काशी की ऐसी ही एक परंपरा है आकाश दीप जलाने की. यह परंपरा मृत आत्माओं को शांति देने और उनकी सद्गति के लिए हर साल काशी में निभाई जाती है.

काशी की ये परंपरा अब वैश्विक स्तर पर पहचान बना रही है. काशी के जगमग घाट लोगों की चहल-पहल से गुलजार रहते हैं. संध्या के समय जब गंगा आरती का वक्त होता है, घाटों का नजारा मंत्रमुग्ध करने वाला होता है. अगर आप ध्यान से देखें, तो बांस पर टोकरी में कुछ दीये जलते मिलेंगे. लोग खामोशी से आकर दीये जलाते हैं. इसके लिए बांस की टोकरी में दीया रखकर उसको ऊंचे बांस के सहारे लटकाया जाता है.

बनारस के घाटों पर गंगा में दीपदान और अन्य अवसर पर जहां दीये गंगा और घाटों पर जलते हैं, वहीं ये दीये काफी ऊंचाई पर आसमान की ओर दिखाए जाते हैं. दरअसल ये दीये मृत आत्माओं के निमित्त जलाए जाते हैं.

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हिंदू धर्म में मान्यताओं के अनुसार, पवित्र आत्माएं देव लोक में निवास करती हैं. देव लोक तक उनका मार्ग प्रशस्त रहे इसलिए कार्तिक के पवित्र महीने में ऊंचाई पर ये दीये जलाने की परंपरा है. लोगों को विश्वास है कि अगर मोक्ष की नगरी काशी में मृत आत्माओं के नाम कर दीये जलेंगे, तो उनका मार्ग आलोकित होगा.

शहीदों ने नाम पर भी जले थे आकाश दीप

काशी में आकाश दीप की परंपरा पुरानी है, पर ये तब चर्चा में आई जब कारगिल शहीदों ने नाम पर आकाश दीप जलाए गए. गंगा सेवा निधि के कोषाध्यक्ष आशीष तिवारी कहते हैं, “इस परंपरा ने लोगों का ध्यान तब खींचा जब कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के नाम पर काशी वासियों और गंगा सेवा निधि ने सामूहिक रूप से आकाश दीप जलाए. आज भी कार्तिक माह शुरू होने के दिन से कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक शहीदों के नाम पर आकाश दीप जलाए जाते हैं.”

अब इस कार्यक्रम को कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होने वाली देव दीपावली का एक खास आयोजन माना जाता है. धर्म और आध्यात्म को राष्ट्रवाद से जोड़ने की ये कोशिश काशी वासियों ने शुरू की है. दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं. इसी दिन सेना भी यहां शहीदों को गार्ड ऑफ ऑनर देती है.

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. राम नारायण द्विवेदी कहते हैं, “इसका कोई शास्त्रीय कारण नहीं है. पर काशी की परम्परा में ये है. शास्त्रों में लिखा है कि पवित्र आत्माएं देव लोक में होती हैं, अपने पूर्वजों और राष्ट्र के लिए खुद को समर्पित करने वालों को ईश्वर के श्रीचरणों में स्थान मिले, इसके लिए ये आकाश दीप जलाए जाते हैं.” बता दें कि कारगिल के शहीदों के लिए आकाश दीप शुरू करने में भी प्रो. राम नारायण द्विवेदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

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काशी की इस परंपरा से जुड़ते गए लोग

काशी की हर परंपरा की तरह इसके शुरू होने की भी एक कहानी है. बात महाभारत से जुड़ी है. कहते हैं कि महाभारत का युद्ध धर्मयुद्ध था. उसमें वीरगति प्राप्त हुए योद्धाओं को काशी में आकाश दीप जलाकर श्रद्धांजलि दी गई. काशी के लोग इस परंपरा से परिचित हैं. पर पिछले कुछ समय से आकाश दीप के बारे में बाहर भी लोगों को पता चला है. लोग यहां आकर अपने पूर्वजों के नाम पर आकाश दीप जलाने लगे हैं. अब लोग देश और दुनिया में कहीं भी बैठे हों, अपने पूर्वजों के नाम पर आकाश दीप जलाने के लिए स्थानीय लोगों से संपर्क कर रहे हैं.

मुंबई में रहने वाले अपने पारिवारिक मित्र के अनुरोध पर उनके पिता के नाम पर आकाश दीप जलाने वाले स्थानीय निवासी राजेश राय कहते हैं, “मैं अपने पूर्वजों के लिए आकाश दीप जलाता था. मेरे मित्र ने एक बार कार्तिक में काशी आने पर इसको देखा. अब वो हर साल मुझे इसको अपने पिता के नाम पर जलाने के लिए कहते हैं.” राजेश राय का मानना है कि ऐसे में काशी के धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है, क्योंकि लोग अब अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं.

काशी में आनंद है, तो वैराग्य भी. जन्म है तो मोक्ष भी. माना जाता है कि यहां शरीर छोड़ने पर महादेव स्वयं तारक मंत्र से व्यक्ति को मोक्ष देते हैं. ये परंपरा काशी के इस आध्यात्मिक महत्व की एक प्रतीक है. परंपरा और आस्था का ये अनूठा रूप दुनिया में और कहीं नहीं है. ऐसा कहते हैं कि कार्तिक के पवित्र महीने में आकाश दीप अपने पूर्वजों से जुड़ने का एक माध्यम है.

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