सात समंदर पार से आए रशियन ‘इवगिनी’ ने काशी में करवाया श्राद्ध, सनातन धर्म पर कह दी बड़ी बात

रोशन जायसवाल

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

Varanasi News : अपने पितरों को तारने यानी अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए पितृपक्ष (Pitru Paksha 2023) के पखवाड़े में सनातनी श्राद्ध और तर्पण करते है. धर्म और आध्यात्मिक नगरी काशी में ऐसा नजारा गंगा घाटों के किनारे इन दोनों दिखना आम बात है. लेकिन तमाम आस्थावानों में से एक विदेशी सरजमीं रशिया के ‘इवगिनी’ जिनका सनातनी नाम ‘मोक्षन’ है. वे भी इन दिनों महालय श्राद्ध और पितरो के तर्पण में व्यस्त दिखाई पड़ते है. 40 वर्षीय ज्योतिष विद्या के जानकार मोक्षन ने श्राद्ध और तर्पण की शुरुआत सबसे पहले अपने पिता की मौत के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए शुरू किया था और फिर अब ऐसा अपने नजदीकी और संबंधियों के लिए हर साल करने के वास्ते काशी आते हैं.

 ‘इवगिनी’ ने काशी में करवाया श्राद्ध

किसी आम आस्थावान की तरह ही जब कोई विदेशी गंगा घाट किनारे पितृपक्ष के इस पखवाड़े में अपने लोगों के पूर्वजों के लिए तर्पण और श्राद्ध करें तो हैरानी होना स्वाभाविक है. मंत्रोच्चार के साथ विधि विधान से पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण की तैयारी से लेकर पूरी पूजा को संपन्न कराने वाले कोई और नहीं, बल्कि रशिया की राजधानी मास्को में रहने वाले 40 वर्षीय ‘इवगिनी’ जिनका सनातनी नाम ‘मोक्षन’ है. मोक्षन बताते हैं कि बचपन से ही उन्हें आध्यात्म की तरफ रुचि थी, लेकिन उन्होंने LLB और एमबीए की पढ़ाई रशिया से की. इसके बाद उन्होंने अपने गुरु से ज्योतिष विद्या सीखी. उनके पिता की मौत वर्ष 2018 में हो गई थी. इसके बाद उन्होंने अपने पिता का पूरे रीति रिवाज और विधि विधान से के साथ श्राद्ध और तर्पण पितृपक्ष में भारत आकर किया.

सनातन धर्म पर कह दी बड़ी बात

अब हर साल हुए श्राद्ध और तर्पण के लिए वे भारत आते हैं और अपने सगे संबंधियों और जजमान के पितरों के लिए गंगा घाट किनारे रोज श्रद्धा और तर्पण करते हैं. वे बताते है कि वे पिछले 5 वर्षों से हर साल 30-40 लोगों के लिए श्राद्धा और तर्पण करने काशी आते हैं. वे बताते हैं कि भले ही वे अलग संस्कृति और धर्म से जुड़े थे, लेकिन सबकी जड़ और मूल में सनातन धर्म ही है. चाहे वे धर्म सिख हो, मुस्लिम हो, ईसास ही हो या तो फिर बौद्ध धर्म सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म ही है. वे पूछते भी है कि आखिर सभी धर्म के पहले कौन सा धर्म था? और खुद जवाब भी देते हैं कि सनातन धर्म ही सबसे प्राचीन धर्म है. उन्होंने आगे बताया कि बहुत सारे ऐसे शब्द हैं और पांडुलिपियों हैं जो अभी-अभी रशिया में देखी जा सकती हैं जो संस्कृत में है. बहुत सारे स्थानों और नदियों के नाम संस्कृत में है. इसका मतलब यह होता है कि 2 हजार साल पहले रशिया में भी सनातन धर्म था. लेकिन अब हम उसे खो चुके हैं.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

पिछले 5 सालों से आ रहे वाराणसी

श्राद्ध पूजा में रशियन नागरिक इवगिनी यानी मोक्षन का साथ देने वाले स्थानीय पुरोहित श्रीकांत पाठक बताते है कि, ‘मोक्षन पिछले 5-6 वर्षों से काशी में पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने आ रहें हैं. वे बताते हैं कि इवगिनी महाराष्ट्र और कर्नाटक भी जाकर हिंदू धर्म के बारे में काफी अध्ययन किया है.’ उन्होंने बताया कि पितृपक्ष यानी महालय में श्राद्ध और पिंडदान से पितरों को शांति मिलती है. ऐसा करने से सुख, समृद्धि और शांति में बढोतरी होती है और पितरों को आनंद की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि इवगिनी अपने पिता, दादा और परदादा के अलावा अपने निकटतम सगे, संबंधियों के लिए भी हर साल काशी आकर पिंडदान करते हैं.

    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT