ज्ञानवापी: बीएचयू के केमिकल इंजीनियर ने माना कि प्रथम दृष्टया ये फव्वारा नहीं शिवलिंग है
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के बाद मिले कथित शिवलिंग के फव्वारा होने का भी दावा किया गया है. ऐसे में यूपी तक ने बीएचयू के…
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ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के बाद मिले कथित शिवलिंग के फव्वारा होने का भी दावा किया गया है. ऐसे में यूपी तक ने बीएचयू के केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर आरएस सिंह से इस मामले में बात की. आरएस सिंह का कहना है कि यह शिवलिंग है, लेकिन कुछ लोग इसे अगर फव्वारा कह रहे हैं तो उसकी वजह है कि इस शिवलिंग के ऊपर एक फवारानुमा आकृति बनी हुई है.
आरएस सिंह ने आगे बताया कि नीचे और ऊपर के कलर में ऊपर का रंग सफेद है. जैसे बाद में कुछ रखकर फव्वारे का स्वरूप दिया गया है. अगर इसे फव्वारा माना जाए तो पुराने जमाने में बिजली होती नहीं थी और उस फव्वारे को चलाने के लिए पानी को काफी ऊपर से गिराया जाता था. वह दबाव की वजह से फव्वारे का आकार लेता था. ज्ञानवापी परिसर में या विश्वनाथ मंदिर में ऐसा कोई सिस्टम फव्वारे का कभी नहीं दिखा.
आरएस सिंह ने कहा कि शिवलिंग के ऊपर यह मुझे कुछ सीमेंट जैसा लग रहा है. यह ऊपर ह्वाइट सीमेंट जैसा रखा हुआ है, जिसे बाद में लगाया गया. उस पत्थर का कोई केमिकल एनालिसिस नहीं हुआ है, इसलिए यह पन्ना है या नहीं है इस पर शर्तिया कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसके रंग से यह लग रहा है कि यह काफी पुराना है और काफी समय से पानी में है, लेकिन यह पत्थर कौन सा है यह कहना मुश्किल है.
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अगर हम इसे फव्वारा मानें तो इसमें पानी को काफी ऊपर से गिराने का कोई टेक्नोलॉजी होगा तभी यह फव्वारा हो सकता है. कम से कम 50 या 100 फुट से पानी गिराना पड़ेगा क्योंकि बिना बिजली का फव्वारा बिना ऊपर से पानी गिराये नहीं हो सकता.
अगर फव्वारा होगा तो नीचे उस पत्थर में कोई छेद होना चाहिए. पाइपनुमा कोई चीज होनी चाहिए तभी वह फव्वारा बन सकता है, लेकिन अभी इसमें ऐसा कोई चीज सामने नहीं आया है. जिसमें इस पत्थर में कोई छेद दिखाई दे. आरएस सिंह ने कहा कि यह फव्वारा हो सकता है, लेकिन इतने रेडियस का फव्वारा होना असंभव है. अगर यह फव्वारा होगा तो इसके नीचे कोई सिस्टम होगा. इसका पूरा मेकैनिज्म होगा. यह रिसर्च का विषय है कि यहां पानी की सप्लाई कैसे होगी.
आरएस सिंह के मुताबिक इस तस्वीर में यह दोनों अलग-अलग दिख रहा है. दोनों में कोई साम्य नहीं है नीचे. नीचे वाला पत्थर गोलाई लिए हुए शिवलिंग जैसा है जबकि ऊपरवाला बिल्कुल अलग है. दरअसल वजू का जो यह सरोवर है जिसमें पानी भर जाता है तो अगर इसे फव्वारे की तरह इस्तेमाल करना है तो भरे हुए पानी को ऊपर ले जाना होगा, लेकिन इस सिस्टम में कहीं भी पानी ऊपर जाता हुआ नहीं दिखता है तो नीचे से यह फव्वारा कैसे काम करेगा. पानी कलेक्शन के लिए तो यह वजू हो सकता है, लेकिन फव्वारे के लिए यह पानी इस्तेमाल होने का कोई टेक्नोलॉजी हमें तो नहीं दिखता.
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देखिए इस बारे में आज तक किसी ने सुना नहीं ना ही कभी किसी ने देखा. अगर कोई दावा कर रहा है कि यह फव्वारा है तो इसे ऑपरेशनल किया जा सकता है. इसे चला कर देखा जा सकता है. या जो लोग इसे फव्वारा कह रहे हैं वहीं इसे चला कर दिखा दें तो मान लेंगे कि यह फव्वारा है और अगर यह फव्वारा नहीं है तो यह शिवलिंग है. अगर बगैर बिजली के पुराने आर्किटेक्ट के मैकेनिज्म से इस फव्वारे को चलाया जा सकता है तभी माना जाएगा कि यह फव्वारा है.
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