सहारनपुर: J&K आतंकी हमले में मारे गए सगीर का बेटा बोला- ‘अब परिवार का गुजारा कैसे करूंगा?’
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में फर्नीचर आदि बनाने का काम करने वाले 28 साल के जहांगीर के सामने अब परिवार का गुजारा करने का संकट…
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उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में फर्नीचर आदि बनाने का काम करने वाले 28 साल के जहांगीर के सामने अब परिवार का गुजारा करने का संकट खड़ा हो गया है, जिनके पिता को पिछले शनिवार को दक्षिण कश्मीर में आतंकवादियों ने मार डाला. इस घटना के बाद इलाके से प्रवासी कामगारों का पलायन शुरू हो गया है.
जहांगीर ने सहारनपुर से फोन पर कहा, ‘‘हम अब्बा के साथ मिलकर घर चलाते थे. अब मैं सोच रहा हूं कि क्या करूंगा क्योंकि यहां ज्यादा काम नहीं है और मैं कश्मीर में उनका काम करने के बारे में सोच नहीं सकता.’’
जहांगीर के पिता सगीर की आतंकवादियों ने शनिवार को दक्षिण कश्मीर के लितेर गांव में गोली मारकर हत्या कर दी थी. वहां वह एक स्थानीय प्रतिष्ठान के साथ कारपेंटर के रूप में काम कर रहे थे.
सगीर के छोटे भाई नसीर ने कहा, ‘‘हमें फोन आया कि सगीर भाई नहीं रहे और हमें जम्मू से उनका शव लाने को कहा गया. हम उसी समय निकल गए और उनके शव को घर लाए.’’
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उन्होंने साफ किया कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शव को भेजने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया था, इसलिए उन्हें जम्मू से सहारनपुर तक उसे लेकर आना पड़ा.
जहांगीर शादीशुदा हैं और एक बच्ची के पिता हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने पिता के साथ हर महीने करीब 15 हजार रुपये कमा लेता था, लेकिन अब उनकी मौत के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा कि परिवार का गुजारा कैसे करूंगा.’’
अपने पिता से हुई बातचीत को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ‘अब्बा कश्मीर में काम करते हुए बहुत खुश थे.’
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हालांकि 16 अक्टूबर को पुलवामा में सगीर की मौत और 17 अक्टूबर को पास के कुलगाम में दूसरे राज्य के दो नागरिकों राजा रिषी देव और जोगिंदर रिषी देव की मौत से दक्षिण कश्मीर में काम कर रहे दूसरे राज्यों के लोगों के बीच दहशत का माहौल पैदा हो गया.
एक अधिकारी ने बताया कि बाहर से आए लोग सेब के बागान और गत्ता तथा क्रिकेट बल्लों के कारखानों में काम करते हैं, वे घाटी में छह महीने रहकर काम करते हैं और फिर घर चले जाते हैं.
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एक अन्य सुरक्षा अधिकारी के अनुसार, दक्षिण कश्मीर से करीब 600 लोग सुरक्षित स्थानों की ओर जा चुके हैं.
नाम जाहिर न करने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘‘किसी जानकार को मारने के बजाय अज्ञात की जान लेने से ज्यादा डर का माहौल पैदा होता है और मुझे फिक्र है कि आतंकवादी शायद इसमें कामयाब हो गए हैं.’’
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