पूछताछ के नाम पर थाने बुला कानपुर में इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा को किया अरेस्ट! 300 करोड़ की जमीन वाली इनकी कहानी खतरनाक
कानपुर में 300 करोड़ रुपये की वक्फ जमीन पर कब्जे के विवाद में निलंबित इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा की गिरफ्तारी हुई है. आरोप है कि वे भूमाफिया गिरोह के साथ मिलकर जमीन पर फर्जीवाड़ा और धमकी का संचालन कर रहे थे. पीड़ित मोइनुद्दीन आसिफ जाह ने गंभीर आरोप लगाए हैं और SIT ने मामले की जांच शुरू कर दी है.
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Kanpur News: कानपुर में 300 करोड़ की जमीन पर कब्जे का विवाद और उसमें निलंबित इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा की गिरफ्तारी का मामला सुर्खियों में है. कानपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र में वक्फ की 300 करोड़ रुपये की जमीन कब्जा मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है. ग्वालटोली पुलिस ने शुक्रवार देर शाम निलंबित इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया. बताया गया कि उन्हें पूछताछ के नाम पर थाने बुलाया गया था, जहां से उनकी गिरफ्तारी की गई.
कानपुर सेंट्रल डीसीपी श्रवण कुमार ने इसकी पुष्टि की है. पुलिस के मुताबिक जमीन घोटाले के मामलों में सभाजीत प्रमुख भूमिका निभा रहे थे और उन्हें पूछताछ से जुड़े पुख्ता सबूतों के आधार पर हिरासत में लिया गया. सभाजीत शुक्ता पर कानपुर के भूमाफिया कहे जा रहे एडवोकेट अखिलेश दुबे के लिए काम करने का आरोप है.
जानिए उस करीब 300 करोड़ रुपये की कीमत वाली जमीन की कहानी और विवाद जिसमें हुई गिरफ्तारी
यह जमीन मूल रूप से नवाब मंसूर अली की थी, जिसे 1892 में शेख फखरुद्दीन हैदर ने खरीदा. संतान न होने पर उन्होंने इसे वक्फ में शामिल कर दिया और शर्त रखी कि इसकी देखरेख उनकी वंश परंपरा के लोग करेंगे. 1911 में उनके रिश्तेदार हाफिज हलीम को 99 साल का पट्टा दिया गया, जिसके बाद कई किरायेदार यहां रहने लगे. साल 2000 में यह पट्टा समाप्त हो गया तो फखरुद्दीन की पांचवीं पीढ़ी से ताल्लुक रखने वाले मोइनुद्दीन आसिफ जाह (नवाब इब्राहिम परिवार) ने जमीन वापस लेने के प्रयास शुरू किए. इसी दौरान विवाद गहराया और स्थानीय गिरोह सक्रिय हो गए.
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अखिलेश दुबे के गिरोह पर फर्जीवाड़े के आरोप
मोइनुद्दीन ने अदालत का सहारा लिया, लेकिन आरोप है कि इसी बीच अखिलेश दुबे और उनके सहयोगियों बेटी सौम्या, भाई सर्वेश, साथी जयप्रकाश, शिवांश सिंह उर्फ पप्पू और राजकुमार शुक्ला ने फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया. आरोप है कि उन्होंने किरायेदारों को धमकाकर और पैसों के लालच में पावर ऑफ अटॉर्नी अपने नाम करवा लिए. एक किरायेदार मुन्नी देवी की मौत के बाद उनके नाम से किसी दूसरी महिला द्वारा कागजात तैयार करवा लिए गए. कब्जाई गई इस जमीन पर गेस्ट हाउस और कार्यालय बनवाए गए और हिस्सों को किराये पर देकर हर महीने लाखों की आय शुरू कर दी गई.
इंस्पेक्टर पर आरोप, पीड़ित को ट्रक से कुचलवाने की कोशिश की
80 साल के मोइनुद्दीन आसिफ जाह ने वक्फ बोर्ड में शिकायत दर्ज कराई. उनका आरोप है कि अप्रैल 2024 में अखिलेश दुबे का सहयोगी शिवांश सिंह और इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा उनसे मिले और कहा कि वह पैरवी वापस ले लें. पांच लाख रुपये देने का दबाव बनाया गया. धमकी दी कि नहीं मानने पर उन पर झूठे मुकदमे दर्ज करा दिए जाएंगे. जब वे लखनऊ मुकदमे की सुनवाई के लिए गए थे तो ट्रक से उन्हें कुचलकर जान से मारने की कोशिश हुई.
इस घटना के बाद मोइनुद्दीन ने घर से बाहर निकलना सीमित कर दिया, लेकिन कानूनी लड़ाई जारी रखी.
SIT ने शुरू की जांच, जानिए अब आगे क्या
पीड़ित की शिकायत पर एसआईटी ने जांच शुरू की. विवेचना में धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई. इसके बाद 13 अगस्त को ग्वालटोली थाने में मामला दर्ज हुआ. एफआईआर में अखिलेश दुबे, उनकी भतीजी सौम्या, भाई सर्वेश, जयप्रकाश, शिवांश सिंह उर्फ पप्पू, राजकुमार शुक्ला और निलंबित इंस्पेक्टर सभाजीत मिश्रा के नाम शामिल किए गए. ग्वालटोली पुलिस का कहना है कि सभाजीत मिश्रा की भूमिका गंभीर है क्योंकि उन्होंने पीड़ित को दबाने और केस वापस लेने के लिए गिरोह का समर्थन किया. गिरफ्तारी के बाद अब मामले के अन्य आरोपियों की तलाश और गिरफ्तारी की प्रक्रिया तेज की जा रही है.
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