गोरखपुर: जापानी इंसेफेलाइटिस का बदला स्वरूप, मरीजों में नहीं मिल रहे लक्षण

विनित पाण्डेय

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Gorakhpur News: गोरखपुर और आस पास के जिलों में दशको से जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis) यानी जेई नामक बिमारी से सैकड़ो बच्चे काल के गाल में समा गए या उससे पीड़ित शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गए. आज तक इस रहस्यमय बिमारी का कोई सटीक इलाज डाक्टर और वैज्ञानिक खोज नहीं पाए है. इसी बीच एक शोध में जेई के बिना लक्षण वाले मामले सामने आने से डाक्टरों को इलाज करने में समस्या आ रही है.

गोरखपुर में जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) का बदला स्वरूप मरीजों और उनके परिजनों के लिए खतरनाक है. जेई के मरीजों में ऐसे लक्षण नहीं मिल रहे हैं, जो यह संकेत दे सके कि मरीजों में जेई के लक्षण हैं. छह माह के अंदर नौ ऐसे मरीज मिले हैं, जिनमें जेई के लक्षण नहीं थे. जबकि, डॉक्टरों ने आशंका पर जांच कराई तो जेई की पुष्टि हुई. विशेषज्ञों का कहना है कि यह चिंता का विषय है. अगर लोगों में लक्षण नहीं पता चलेंगे तो इलाज में देरी होगी, जो मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.

बिना लक्षण के मिले मरीज

जिले में छह माह के अंदर जेई और एक्यूट इंसेफेलाइटिस के सिंड्रोम (एईएस) के कुल नौ ऐसे मरीज मिले हैं, जिनमें जेई के कोई भी लक्षण नहीं मिले हैं. वेक्टर बोर्न डिजीज के प्रभारी एसीएमओ डॉ. एके चौधरी ने बताया कि जेई के नए लक्षणों ने परेशानी बढ़ा दी है. इस बार जो भी जेई के मरीज मिले हैं, उन्हें झटका आने की शिकायत हुई है. वह भी खेलने के दौरान. ऐसी स्थिति में परिजन इलाज के लिए जिला अस्पताल और बीआरडी लेकर पहुंचे हैं, जहां पर इलाके की स्थिति को देखते जेई की जांच की गई, तो रिपोर्ट पॉजिटिव मिली है. राहत की बात यह है कि आठ मरीज स्वस्थ हो गए हैं. जबकि, एक का इलाज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में चल रहा है.

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झटके की शिकायत पर की गई जांच, जेई पॉजिटिव मिले

मझघाट के रहने वाले पांच वर्ष के बालक को अचानक झटका आना शुरू हुआ। परिजन बीआरडी लेकर गए, जहां पर जांच की गई तो उसे बुखार नहीं आ रहे थे. न ही जेई का लक्षण था. लेकिन, जेई पीड़ित इलाके की वजह से डॉक्टरों ने जांच कराई तो जेई की पुष्टि हुई. कुसम्ही के 10 साल के बालक और फुलवरिया की एक साल की मासूम में भी जेई के कोई भी लक्षण नहीं थे. परिजन झटका आने पर बीआरडी में भर्ती कराएं, जांच में दोनों बच्चे जेई पॉजिटिव निकले. खोराबार के जंगल चौरी का रहने वाला 12 साल का बच्चा सीढ़ी से गिरा गया. इस बीच उसे झटके आने लगे. परिजन इलाज के लिए सीएचसी ले गए, जहां से डॉक्टरों ने बीआरडी रेफर कर दिया. एहतियात के तौर पर जांच कराई गई तो जेई की पुष्टि हुई है.

संचारी रोग अभियान में ढूंढे जाएंगे हाईग्रेड फीवर के मरीज

सीएमओ डॉ. आशुतोष कुमार दूबे ने बताया कि जेई और एईएस के मरीजों की जांच के लिए संचारी रोग अभियान में हाईग्रेड फीवर के मरीज ढूंढे जाएंगे. इसके लिए एक अप्रैल से अभियान की शुरुआत की जाएगी. हाईग्रेड फीवर के मरीजों की इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) पर जांच कराई जाएगी.

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जेई और एईएस के जो भी मरीज पूर्वांचल में मिल रहे हैं, उनमें 60 फीसदी कारण स्क्रबटाइफस हैं, जिसके वाहक चूहा छछूंदर है. इसके अलावा 15 फीसदी कारण लेप्टोस्पायरोसिस के हैं, जिनके कारण कुत्ते, बिल्ली से पनपने वाले बैक्टीरिया है.

बुखार के साथ आ रहा झटका तो कराएं जेई जांच

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अमरेश सिंह ने बताया कि जेई और एईएस के मरीजों में सबसे सामान्य लक्षण तेज बुखार है. अगर यह लक्षण नहीं मिल रहे हैं, तो ज्यादा खतरनाक है. बताया कि बुखार के साथ अगर बच्चों को झटका आ रहा है तो जेई जांच जरूर कराएं. तेज बुखार आना (हाइग्रेड फीवर), गर्दन में अकड़न, सिर में दर्द, ठंड के साथ कंपकपी, कभी-कभी मरीज कोमा में चला जाना.

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