इंजेक्शन के डर से बच्चे ने उठाया ऐसा कदम कि हैरान रह गया परिवार, गोरखपुर में आया अजीबोगरीब वाकया
Gorakhpur News: गोरखपुर जनपद से अजीबो-गरीब मामला सामने आया है. गोला क्षेत्र के भडसड़ा गांव में ननिहाल आए चार साल के मासूम को घरवालों ने…
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Gorakhpur News: गोरखपुर जनपद से अजीबो-गरीब मामला सामने आया है. गोला क्षेत्र के भडसड़ा गांव में ननिहाल आए चार साल के मासूम को घरवालों ने इंजेक्शन से डरा दिया. इस बात से मासूम इतना डर गया कि उसने खुद को अलमारी में बंद कर लिया. उधर, मासूम के नहीं मिलने पर परिजनों ने उसके नाना को जानकारी दी. इसके बाद सूचना मिलने पर एसडीएम गोला रोहित कुमार मौर्य, सीओ गोला अजय कुमार सिंह फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस अपहरण मानकर तलाश में जुट गई, लेकिन इसी बीच एक दरोगा घर में तलाश करते पहुंचा तो उसकी नजर अलमारी पर पड़ी. खोला तो बच्चा उसी में छिपा था, जिसके बाद घरवालों ने राहत की सांस ली.
जानकारी के मुताबिक, भडसड़ा निवासी गोला तहसील के वरिष्ठ अधिवक्ता रविंद्र नाथ दुबे का नाती हनु मिश्रा गुरुवार की सुबह दरवाजे पर छोटी साइकिल चलाते समय गिर पड़ा और रोने लगा. परिजन ने उसे डराया कि साइकिल मत चलाओ, नहीं मानोगे तो डॉक्टर के यहां इंजेक्शन लगवा देंगे. इसके थोड़ी देर बाद हनु अचानक गायब हो गया. परिजन परेशान हो गए.
आपको बता दें अधिवक्ता रविंद्र ने काफी खोजबीन की, लेकिन घर के अलमारी पर उनकी नजर नहीं पड़ी. घटना कि सूचना एसडीएम गोला रोहित कुमार मौर्य और सीओ गोला अजय कुमार सिंह को दी गई. गोला पुलिस तत्काल हरकत में आ गई. करीब एक घंटे बाद घर में बनी आलमारी को खोला गया तो बच्चा उसी में खड़ा था. हनु मिश्रा मूल रूप से चैनपुर जिला बलिया का रहने वाला है.
विशेषज्ञों ने क्या कहा?
गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग प्रो. धनंजय ने कहा कि बचपन में हर किसी को किसी न किसी बात से डर लगता है. किसी को छिपकली तो किसी को ऊंचाई से. इसे फोबिया कहा जाता है. अक्सर घर वाले बच्चे जिस बात से डरते हैं, उसी का इस्तेमाल कर डराते हैं. ताकि, बच्चा उस काम को न करे. लेकिन इसका बच्चे के दिमाग पर दुष्प्रभाव पड़ता है और फिर वह उसके दिमाग में घर कर जाता है. इसे ट्रॉमा कहा जाता है. इस स्थिति में आने के बाद बच्चा किसी भी हद तक जा सकता है. यह संयोग अच्छा है कि बच्चे ने घर में खुद को बंद किया, नहीं तो कई बार ट्रॉमा के मरीज छत से कूदने जैसी वारदात को भी कर देते हैं.
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गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग डॉ. मनीष पांडेय ने कहा कि समाज में सामान्य रूप से असहनशीलता बढ़ी है, जिसका प्रभाव बच्चों पर भी दिख रहा है. छोटे बच्चे भी असामान्य रूप से प्रतिक्रियावादी हो रहे हैं. परिवार का स्वरूप एकल होने से वे कई प्रकार की सहानुभूति से वंचित हैं. बच्चे में दुख और डर को समझना और पहचानना अभिभावक के लिए मुश्किल भरा हो गया है. हर बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से ट्रॉमा पर अलग तरह से रिएक्ट करता है और यहीं पर परिवार की भूमिका और समाजीकरण कमजोर होने से समस्याएं खड़ी हो रही हैं.
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