भाजपा-कांग्रेस के चंदे पर सवाल तो उठा रहे आकाश आनंद पर बसपा की फंडिंग की जानकारी कौन देगा?
एक जनसभा में आकाश आनंद ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी, कांग्रेस को सबसे अधिक चंदा मिला, लेकिन बसपा को कुछ नहीं मिला. क्या आकाश आनंद जितनी ईमानदारी भरी बातें कह रहे हैं, मामला सिर्फ उतना है या कुछ और?
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UP Political News: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने पिछले दिनों अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान कर दिया. एक वक्त ऐसा ही ऐलान बसपा संस्थापक कांशीराम ने मायावती के लिए किया था. इस ऐलान के बाद से आकाश आनंद धुआंधार एक्टिव हैं और फिलहाल यूपी में पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं. इसी क्रम में रैलियों के दौरान आकाश आनंद ने इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी और कांग्रेस को मिले चंदे पर सवाल उठाया है. एक जनसभा में आकाश आनंद ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी, कांग्रेस को सबसे अधिक चंदा मिला, लेकिन बसपा को कुछ नहीं मिला. उन्होंने आगे कहा कि बसपा इन दलों की तरह धन्ना सेठों के सहारे नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के धन-मन-बल के बूते चुनाव लड़ती है.
पर सवाल यह है कि क्या आकाश आनंद जितनी ईमानदारी भरी बातें कह रहे हैं, मामला सिर्फ उतना है या कुछ और? आइए आपको बसपा के चंदे या यूं कहें उसकी आय में झोल-झाल की पूरी तस्वीर समझाते हैं.
बसपा का तो शत प्रतिशत चंदा अज्ञात!
आकाश आनंद चुनावी चंदे पर भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हों, लेकिन सच्चाई तो यही है कि बसपा के मामले में ये पता ही नहीं चलता कि उसे चंदा दिया किसने. यानी पारदर्शिता का न्यूनतम मापदंड का पैमाना तो अभी दूर की कौड़ी है. अब सवाल यह है कि चुनावी चंदे को सार्वजनिक किए जाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक मचे शोर में ऐसा मुमकिन कैसे है? ऐसा एक नियम से संभव हो सका है, आइए इसे समझते हैं.
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असल में चुनावी चंदे में काले धन का खेल हमेशा से रहा है. पिछले दिनों जब चुनावी बॉन्ड का मामला सु्प्रीम कोर्ट सुन रहा था, तो केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि चुनावी बॉन्ड से पहले हर 100 रुपये में से 69 रुपये अज्ञात स्रोत से आते थे. यानी यह पता ही नहीं चलता है कि किसने चंदा दिया है. इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून (द रीप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल ) में ही 'चोर रास्ता' है. इसके मुताबिक पार्टियों को 20 हजार रुपये से नीचे दान देने वाले के नाम सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं है. मान लीजिए किसी पार्टी को एक लाख रुपये कैश मिला और उसने कह दिए कि सारे चंदे 20 हजार रुपये से कम के हैं, तो कानून कुछ कर नहीं पाएगा.
हमें तो 20 हजार से अधिक किसी ने दिए ही नहीं... बसपा 17 सालों से यही कह रही
राजनीतिक दलों के इनकम, खर्चे और उनके नेताओं पर नजर रखने वाली संस्था ADR यानी एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट इस तस्वीर को जरा और साफ करती है. इसकी साइट पर मौजूद रिपोर्ट के मुताबिक बसपा ने यह बताया है कि इसे पिछले 17 वर्षों से 20,000 रुपये से अधिक का कोई चंदा मिला ही नहीं है. यह रिपोर्ट वित्तीय वर्ष 2022-23 तक के लिए अपडेटेड है.
मायावती को 'दौलत की बेटी' जैसे जुमलों से नवाजने वाले नेताओं के बयान बसपा के चंदे पर क्या बताते हैं?
बसपा की चुनावी फंडिंग पर कभी उसके खास रहे नेता, मायावती के एक जमाने के करीबी तक सवाल उठा चुके हैं. कुछेक करीबी तो मायावती को 'दौलत की बेटी' तक कह चुके हैं. चाहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी हों, बाबू सिंह कुशवाह या स्वामी प्रसाद मौर्य, सभी एक समय मायावती के काफी करीबी बताए गए. मगर जब उन्होंने बसपा का दामन छोड़ा तो उन्होंने यही आरोप लगाया कि मायावती अपनी पार्टी के नेताओं से चंदे के नाम पर वसूली करती हैं. वहीं, एक समय बसपा में रहे पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता इमरान मसूद ने यह आरोप लगाया था कि बसपा लुटेरों की पार्टी है. उन्होंने मायावती पर आरोप लगाते हुए कहा था बसपा में बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता है.
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बसपा की इस चुनावी फंडिंग को और समझने के लिए हमने 'बहनजी: आ पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती' लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजोय बोस से बात की. अजॉय बोस कहते हैं, "एक चीज यह है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड ज्यादातर बड़ी कंपनी के लोग देते हैं. मायावती अब पावर में नहीं हैं, उनकी पार्टी कमजोर होती जा रही है, तो फिर कौन बिजनेसमैन उन्हें पैसे देगा? इसलिए उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं मिलता है. वहीं, मायावती जिन कैंडिडेट का चुनाव करती हैं, वो उन्हें पैसा देते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जो सबसे ज्यादा पैसा देता है, मायावती उसे टिकट दे देती हैं. लेकिन आजतक इसका कोई सबूत नहीं मिला."
चार दशकों से यूपी की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी एक अलग नजरिया देते हैं. हेमंत तिवारी के मुताबिक, "यह सही बात है कि बसपा को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से कोई पैसा नहीं मिला. मगर दूसरी तरफ मायावती देश की ऐसी राजनेता हैं जिनपर समय-समय पर यह आरोप लगता यही कि वह अपनी पार्टी के कार्यकताओं से सहयोग राशि के नाम पर वसूली करती हैं. मायावती के जन्मदिन पर छोटे से लकर बड़ा कार्यकर्ता चंदा देता है. टिकट बंटवारे के नाम पर पैसों की वसूली का आरोप भी मायावती पर लगता है."
हेमंत तिवारी ने आगे बताया कि मायावती पर यह आरोपी किसी और ने नहीं बल्कि उन नेताओं ने लगाया है जो उनके काफी करीबी रहे हैं. उन्होंने कहा कि मायावती बेशक देश की बड़ी दलित नेता हैं, लेकिन इन आरोपों की वजह से उनकी छवि खराब होती है.
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बसपा की कमाई कितनी?
ऐसे में सवाल ये बनता है कि फिर बसपा की इनकम कितनी है? इस सवाल का जवाब भी ADR की रिपोर्ट में मिला है. ADR की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में बसपा को अन्य ज्ञात स्त्रोतों से कुल 29.27 करोड़ रुपये हासिल हुए हैं. इसमें बैंक ब्याज से 15.0487 करोड़ रुपये और सदस्यता शुल्क से 13.73 रुपये मिले. वहीं, अचल संपत्ति की बिक्री पर लाभ से रु 28.49 लाख रुपये और निर्धारण वर्ष 2021-22 के आयकर रिफंड पर ब्याज से 20.65 लाख रुपये शामिल हैं.
साल-दर साल बसपा को हुई कमाई का लेखा-जोखा
साल |
कुल संपत्ति |
कर्जा |
इनकम |
खर्चा |
2021-22 |
69,071.76 लाख रुपये |
69,071.76 लाख रुपये |
8,517.78 लाख रुपये |
8,517.78 लाख रुपये |
2020-21 |
73,279.05 लाख रुपये |
73,279.05 लाख रुपये |
5,246.79 लाख रुपये |
5,246.79 लाख रुपये |
2019-20 |
69,833.65 लाख रुपये |
69,833.65 लाख रुपये |
9,505.47 लाख रुपये |
9,505.47 लाख रुपये |
2018-19 |
73,800.27 लाख रुपये |
73,800.27 लाख रुपये |
6,979.05 लाख रुपये |
6,979.05 लाख रुपये |
2017-18 |
71,672.37 लाख रुपये |
71,672.37 लाख रुपये |
5,169.43 लाख रुपये |
5,169.4 लाख रुपये |
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