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यूपी में SIR बीजेपी के लिए बन गया सिरदर्द... इस एक बात ने उड़ा दिए होश और बढ़ गया चैलेंज!

कुमार अभिषेक

उत्तर प्रदेश में चल रहे मतदाता सूची शुद्धिकरण (SIR) कार्यक्रम ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. डुप्लीकेट वोटरों पर सख्ती के कारण बड़ी संख्या में शहरी मतदाताओं ने शहर के बजाय पुश्तैनी गांव की वोटर लिस्ट में नाम रखने को प्राथमिकता दी है. ऐसे में बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने अब शहरी वोटरों को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

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उत्तर प्रदेश समेत देशभर के 12 राज्यों में मतदाता सूची का शुद्धिकरण कार्यक्रम यानी SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) चल रहा है. इस बीच यूपी का SIR बीजेपी के लिए सिरदर्द बनता नजर आ रहा है. शहरी पार्टी के तौर पर पहचान रखने वाली बीजेपी के लिए SIR में शहरी मतदाताओं को रोकना कठिन चुनौती बन गया है. ऐसा देखने को मिला है कि शहर के मतदाता वोटर लिस्ट के लिए गांव को प्राथमिकता दे रहे हैं. 

दरअसल जबसे SIR की शुरुआत उत्तर प्रदेश में हुई तो डुप्लीकेट वोटरों पर सख्ती शुरू हुई है. हर मतदाता को सिर्फ एक जगह अपना नाम रखना अनिवार्य किया गया है. तब से बड़ी तादाद में शहरों के वोटरों ने अपना नाम गांव की मतदाता सूची में ही रखने को प्राथमिकता दी है. यही बीजेपी के लिए मुसीबत बन गया है क्योंकि बड़ी तादाद में मतदाताओं ने गांव के वोटर लिस्ट में अपने नाम को प्राथमिकता दी है और शहरों में  अपने SIR फॉर्म है जमा नहीं किए हैं. यानी शहर के गणना फॉर्म में उन्होंने अपना नाम दिया ही नहीं.

शहरी वोट ज्यादा कट सकते हैं?

बीजेपी इस चुनौती को समझ रही है. शहरों में जो उसे थोक के वोट मिल रहे थे, उसमें भारी कमी आ सकती है. लोगों ने जमीन जायदाद और पंचायत चुनाव जैसे मामलों को देखते हुए शहर के बजाय अपने पुश्तैनी गांव का वोटर रहना ही पसंद किया है.यही वजह है कि लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, नोएडा, आगरा, मेरठ और 2 टायर सिटी में भी शहरी वोट कटने की आशंका बढ़ गई है. ऐसे में बीजेपी की चिंता स्वाभाविक है.

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अभी तक प्रदेश भर में 17.7 फ़ीसदी SIR फॉर्म वापस चुनाव आयोग को नहीं आए हैं और  अनुमान के मुताबिक यह संख्या तकरीबन 2.45 करोड़ है. सूत्रों के मुताबिक अयोध्या में 4100, लखनऊ में करीब 2.2 लाख, प्रयागराज में 2.4 लाख, गाजियाबाद में करीब 1.6 लाख और सहारनपुर में लगभग 1.4 लाख वोट इस चक्कर में कट सकते हैं. 

गांव की पुश्तैनी जमीन और पंचायत चुनाव की ललक बनी वजह!

पिछले 20 सालों में मतदाता पुनरीक्षण का काम इतने गहन तरीके से नहीं हुआ है. ऐसे में माना जा रहा है कि बड़ी तादाद में पिछले दो दशकों में लोगों का यूपी से बाहर पलायन हुआ है. बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई. इसी तरह डुप्लीकेट वोटर और फर्जी वोटरों के बाहर होने की वजह से बड़ी संख्या में नाम कट सकते हैं. इसी में बीजेपी को एक चिंता अपने शहरी वोटरों को लेकर हो गई है. शहरी वोटर पुश्तैनी की गांव में अपना मूल वोट रखने की ललक भी परेशान कर रही है. वोटरों को लग रहा है कि जब एक ही स्थान पर वोट अनिवार्य है तो अपने गांव में ही अपना वोट क्यों न रहने दिया जाए जहां पुश्तैनी जमीन है और जहां पंचायत जैसे  चुनाव सबके लिए जरूरी हैं. 

शहर में जब एसआईआर के फॉर्म कम आने लगे तो इस चिंता को यूपी बीजेपी के शीर्ष नेता भी भांपने लगे हैं. यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री ने सभी विधायक सभी सांसद एमएलसी और सभी संगठन के पदाधिकारी को शहरी वोटर को बचाने की मुहिम में लगा दिया है. इसकी स्ट्रांग मॉनिटरिंग हो रही है. बड़ी संख्या में गणना पत्र वापस आता नहीं देख चुनाव आयोग भी अब SIR को एक हफ्ता और बढ़ाने के संकेत दे रहा है ताकि छूटे हुए वोटर किसी तरीके से अपना एसआईआर फॉर्म जमा कर सकें. उत्तर प्रदेश में 15 से 18 फीसदी वोटर्स (करीब 2.45 करोड़) का एसआईआर फॉर्म का नहीं आना बीजेपी के लिए चिंता का सबब तो जरूर बन गया है.

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