ऑपरेशन Tiger! पीलीभीत के जंगलों में जारी है आदमखोर की तलाश, खौफ में जी रहे हजारों लोग

कुमार अभिषेक

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Uttar Pradesh News : पीलीभीत का टाइगर रिजर्व इन दिनों एक अलग ही वजह से चर्चा में है. दरअसल, इस टाइगर रिजर्व के आसपास के गांव में दहशत का आलम दिखाई दे रहा है. लोग खेतों में अकेले काम करने नहीं जा रहे. बच्चे स्कूल नहीं जा रहे और बाहर निकलने वाला हर शख्स ख़ौफ़ज़दा है. शाम ढलने के पहले अपने घर पहुंचने की जल्दी में है. ये कोई लॉ एंड आर्डर की समस्या नहीं बल्कि लोग आदमखोर बनते बाघों की वजह से खौफ में हैं. कई ऐसे टाइगर हैं जो इस वक्त गांव के आसपास खेतों में छुपे बैठे हैं और जो मौका मिलते ही ग्रामीणों और मवेशियों को अपना निवाला बना रहे हैं.

खौफ में जी रहे लोग

पीलीभीत टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द बसे हजारों लोग भी इन दिनों ऐसे ही खौफ में जी रहे हैं. पुलिस और प्रशासन भी लाचार नजर आ रहा है. पिछले दो हफ्तों में दो लोगों को बाघ ने अपना शिकार बना लिया है. गांव वालों को उनकी क्षत विक्षत शव मिले जिसके बाद से दहशत और बढ़ गई. 26 सितंबर – तोताराम जो जमुनिया गांव के रहने वाले थे उन्हें खेत मे ही बाघ ने अपना शिकार बना लिया. वहीं 21 सितंबर को रघुनाथ जो कि माला कालोनी के निवासी थे उन्हें भी बाघ खा गया. यूपीतक उन परिवारों तक पंहुचा जिन्हें बाघ ने अपना निवाला बना लिया.

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ट्रैंकुलाइजर भी नहीं आ रही काम

कभी लोग डर के मारे पेड़ों पर जा चढ़ते हैं. तो कहीं पुलिस और ग्राम प्रधान माइक से लोगों को दूर हटने की हिदायत देते हैं. कहीं ट्रैंकुलाइजर गन यानी नशीली गोली से हालात पर काबू पाने की कोशिश चल रही है. तो कहीं पिंजरानुमा ट्रैक्टर वनकर्मियों का सहारा बने हैं. और कहीं इंसान के पुराने दोस्तों में से एक यानी हाथी इंसानों का सहारा दे रहे हैं. और इन सबके पीछे है, वही शय. जिसके चलते उतर प्रदेश के पीलीभीत जिले के 15 गांवों के करीब 20 हजार लोगों की आबादी बेचैन हो गई है. वहां रहने वाले लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो चुका है. जी हां, वो है टाइगर.

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इतने लोग बन चुके हैं शिकार

बता दें कि पीलीभीत के ये गांव पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बिल्कुल करीब बसे हैं. अब इसे बाघों की बढ़ती आबादी का असर कहें या बाघों के इलाके में इंसानों की दखलअंदाजी का नतीजा. पिछले करीब महीने भर से बाघों ने रिहायशी इलाकों में एंट्री मारने की ऐसी शुरुआत की है कि मवेशियों से लेकर इंसानों तक बाघों का निवाला बनाने लगे हैं. ऐसे में इंसानों की बस्ती में खलबली तो लाजिमी है. लेकिन इससे पहले कि अलग-अलग गांवों में मची खलबली के बीच वन विभाग के इस ऑपरेशन टाइगर का का एक एक सच आपको बताएं, आइए जल्दी से आपको उन लोगों के पहचान बता दें, जो बाघों का शिकार बन कर मौत के मुंह में समा गए.

  • 28 जून 2023
    लालता प्रसाद, गांव रानीगंज
  • 16 अगस्त 2023
    राम मूर्ति, गांव रानीगंज
  • 21 सितंबर 2023
    रघुनाथ, गांव माला कॉलोनी
  • 26 सितंबर 2023
    तोताराम, गांव जमुनिया

फिलहाल, हालत ये है कि अपनों को गंवाने के बाद इन परिवारों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वो करें तो क्या करें और इन मौतों का दोष दें, तो किसे दें. वन विभाग के लोग अपनी तरफ से कार्रवाई करने की बात तो कह रहे हैं, कार्रवाई करते हुए नजर भी आ रहे हैं, लेकिन हो कुछ नहीं रहा है.

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जारी है ऑपेरेशन

रानीगंज गांव के बाद अब बात बांसखेडा गांव की. ये वो गांव है जहां बाघ जंगल से निकल खेतों में आकर बैठा है. चार दिनों से वन विभाग की टीम उस बाघ को बेहोश कर काबू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन नतीजा सिफर है. हालत ये है कि गांव वालों और वन विभाग के लोगों की हिफाजत के उस खेत को चारों ओर से जाल से घेर दिया है, लेकिन बाघ है कि उस पर अपने अलग-बगल चल रही इस हलचल का कोई असर नहीं हो रहा और वो बड़े आराम से खेत में बैठ कर शिकार किए गए मवेशी को खाने में खाने में लगा है. ऑपरेशन से पहले वन विभाग के लोग बाकायदा मुनादी कर लोगों को खतरे का अहसास दिलाते हैं और उन्हें पीछे हटने की हिदायत देते हैं.

सात सालों में गई इतनी जानें

पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पिछले सात सालों में बाघों ने कुल 38 लोगों की जान ली है. और ये सिलसिला कब, कहां और कैसे रुकेगा, ये कोई नहीं जानता. वन विभाग के आंकडों के मुताबिक इस टाइगर रिजर्व कुल 71 बाघ हैं. और इनमें पांच बाघ ऐसे हैं, जो पिछले कई दिनों से इंसानी आबादी के बीच ही घूम टहल रहे हैं.मवेशियों और इंसानों का शिकार कर रहे हैं, ऐसे में इंसानों का बेचैन हो जाना लाजिमी है. हालत ये है कि यहां डर के मारे लोग बाहर नहीं निकल रहे और वन विभाग का रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है.

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