मुख्तार की मौत के बाद अंसारी परिवार की सियासत मिट्टी में मिल जाएगी? जानें माफिया का पूरा इतिहास
मोहम्मदाबाद की गलियों-सड़कों पर यह चर्चा आम है कि क्या शनिवार को मुख्तार अंसारी के सुपुर्द-ए-खाक होते ही अंसारी परिवार की सियासत भी मिट्टी में मिल जाएगी. य
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Mukhtar Ansari News: मोहम्मदाबाद की गलियों-सड़कों पर यह चर्चा आम है कि क्या शनिवार को मुख्तार अंसारी के सुपुर्द-ए-खाक होते ही अंसारी परिवार की सियासत भी मिट्टी में मिल जाएगी. यह चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि पिछले तीन दशकों से गाजीपुर के मोहम्मदाबाद का यह अंसारी परिवार अभेद्य किला बना हुआ था क्या अब मुख्तार की मौत के बाद ये उसके खात्मे की शुरुआत है? अपराध और सियासत का मुख्तार अंसारी एक ऐसा नाम है, जिसका सिक्का अस्सी के दशक से लेकर साल 2017 तक चला. मगर उत्तर प्रदेश में योगी राज आते ही माफिया-डॉन मुख्तार अंसारी पर मुश्किलों का दौर ऐसा चला कि उसके खात्मे की खबर दिनांक 28 मार्च को आ गई. पूर्वांचल के साथ-साथ यूपी के ज्यादातर इलाकों में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी. मगर योगी सरकार ने मुख्तार के आपराधिक साम्राज्य को मिट्टी में मिला दिया.
योगी राज में ही मुख्तार अंसारी को सजा मिलनी शुरू हुई और ये सजाओं का ही सिलसिला था कि ये डॉन जेल की सीखचों के पीछे टूट गया और आखिरकार हार्ट अटैक से उसकी मौत हुई. मुख्तार के साथ सिर्फ उसके अपराध खत्म नहीं हुए बल्कि मुख्तार के साम्राज्य को ही योगी सरकार ने तहस-नहस कर दिया. हजारों करोड़ की संपत्तियां जब्त की गईं. गाजीपुर-मऊ से लेकर लखनऊ तक की संपत्तियों पर बुल्डोजर चले. कब्जे में रखी गईं बड़ी-बड़ी शत्रु संपत्ति छीन ली गईं और सबसे बड़ी बात मुख्तार के सभी बड़े शूटर और सहयोगी या तो गैंगवार में मारे गए या फिर पुलिस एनकाउंटर में.
मुख्तार अंसारी जेल में असहाय अपने साम्राज्य को ढहता हुआ और अपने लोगों को एक-एक कर मरता हुआ देखता रहा. मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हुई. मुकीम काला की चित्रकूट जेल में हत्या हुई और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को लखनऊ की भरी अदालत में गोलियां मार दी गईं और यह सब गैंगवार के नाम दर्ज हो गया. पूरे परिवार पर मामले दर्ज हुए. मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी जेल में है. मुख्तार की पत्नी फरार है. पूरा परिवार आपराधिक और आर्थिक मुकदमों में अदालतों के चक्कर लगा रहा है.
तो क्या इस मौत के बाद अंसारी परिवार की सियासी जमीन दरक जाएगी? अफजाल अंसारी अब भी इस परिवार की सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं और अंसारी परिवार अब अफजाल अंसारी के इर्द गिर्द अपनी सियासत बचाए रखने की कोशिश करेगा. अंसारी परिवार ने यह भांप लिया था अब मुख्तार के दिन नहीं लौटने वाले और बसपा में रहते अफजाल अंसारी के पास कोई सुरक्षा कवर नहीं होगा, इसलिए कुछ वक्त पहले अफजाल अखिलेश यादव के साथ हो लिए.
90 के दशक से लेकर 2017 तक अंसारी बंधुओं का यह परिवार गाजियाबाद, मऊ और बलिया की चुनिंदा सीटों पर दमदार सियासी रसूख रखता था. मगर मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अब अंसारी परिवार बुरी तरीके से टूट चुका है. मुख्तार परिवार की सियासत की मुख्तारी 1996 से शुरू होती है. जब मुख्तार अंसारी पहली बार मउ सीट से बसपा से विधायक बना. मायावती से संबंध खराब हुए तो 2002 में निर्दलीय जीता और 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार के समर्थन में आ गया.
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2009 में मुख्तार अंसारी वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. 2010 में मायावती ने जब इस परिवार को तवज्जो नहीं दी तो मुख्तार अंसारी ने अपनी पार्टी 'कौमी एकता दल' बनाई, जो परिवार की पार्टी थी. जिसमें मुख्तार इस पार्टी से मऊ से विधायक बना और उसके बड़े भाई मोहम्मदाबाद से विधायक बने.
2016 में अखिलेश यादव ने इस अंसारी परिवार से दूरी बनानी शुरू कर दी थी. जबकि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव चाहते थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए. और इस परिवार को मन मुताबिक उसे इलाके में सीटें दी जाएं. लेकिन अखिलेश यादव ने इसका खुला विरोध किया, जिससे नाराज होकर 2017 में यह परिवार बसपा के साथ चला गया.
मुख्तार ने बसपा से घोसी से चुनाव लड़ा और विधायक बन गया. 2019 में अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा से चुनाव लड़े और सांसद हो गए. अखिलेश यादव भी ज्यादा देर तक इस परिवार का विरोध नहीं कर सके और 2022 में अंसारी परिवार एक बार फिर समाजवादी पार्टी की तरफ झुका. अखिलेश यादव ने मुख्तार के बेटे को अपने सहयोगी दल सुभासपा से टिकट देकर सदन में पहुंचाया, तो मुख्तार के भतीजे शोएब अंसारी को मोहम्मदाबाद से सपा का टिकट देकर विधायक बना दिया. 2019 में बसपा से सांसद अफजाल अंसारी भी 2023 में समाजवादी पार्टी में वापस आ गए. ऐसे में अंसारी परिवार के लिए समाजवादी पार्टी छत्रछाया की तरह फिलहाल बनी हुई है.
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बता दें कि मुख्तार अंसारी पर पहली हत्या का मुकदमा साल 1986 में मोहम्मदाबाद कोतवाली में दर्ज हुआ. मकनू सिंह, साधू सिंह गैंग में शामिल हरिहरपुर गांव के दबंग ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के बाद सुर्खियों में आए मुख्तार अंसारी के नाम कई दर्जन आपराधिक मुकदमे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बाहर के प्रदेशों में भी दर्ज किए गए. जिसमें रूंगटा, अपहरण और हत्याकांड, अवधेश राय हत्याकांड प्रमुख रहे.
साल 2005 में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों के हत्याकांड से पूरा पूर्वांचल दहल गया था. लेकिन इस बीच क्राइम की दुनियां से मुख्तार खुद भी राजनीति में प्रवेश कर चुका था. साल 1992 में गाजीपुर सदर सीट से निर्दल प्रत्याशी के रूप में हारने के बाद मुख्तार अंसारी ने मऊ सदर सीट, जो मुस्लिम बाहुल्य सीट है. उसपर जीत हासिल की और लगातार पांच बार जीता. वहां भी उसके नाम दर्जन भर आपराधिक मुकदमें दर्ज हुए. जेल में रहने के बावजूद मुख्तार मऊ से और उसके भाई अफजाल मोहम्मदाबाद से लगातार जीतते रहे.
मोहम्मदाबाद सीट अंसारियो के प्रतिष्ठा की सीट बन गई और साल 2002 में अफजाल अंसारी कृष्णानंद राय से चुनाव हार गया. लेकिन 2004 में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अफजाल अंसारी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़े और मनोज सिन्हा से जीत गए. हालंकि इस चुनाव में मुख्तार गैंग के ऊपर खून खराबे का भी आरोप लगा, लेकिन 2005 के मऊ दंगे के बाद मुख्तार अंसारी जेल में जो बंद हुआ तो फिर उसके जीवन में जेल एक अहम हिस्सा बन गया.
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अब माफिया डॉन के रूप में मुख्तार अपने गैंग से कई आपराधिक कांड कराने में सफल रहा और उसके ऊपर ये आरोप लगने लगा कि वो अपराध की कमाई से अपने शुभचिंतकों और क्षेत्रीय लोगों की आर्थिक मदद कर रहा है. रोबिनहुड के साथ गरीबों का मसीहा जैसी छवि बनने लगी. बता दें कि एक जमाने में मुख्तार को जेल में तमाम सुविधाएं मिलती थीं. मगर योगी सरकार में मुख्तार को जेल मैन्युअल के हिसाब से रखा गया. मुख्तार अंसारी जिसकी पूर्वांचल के साथ राजनीतिक गलियारों में तूती बोलती थी, वो अंत में बिल्कुल कमजोर हो गया और जज से पेशी में शिकायत करने लगा.
मुख्तार की मौत के बाद अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या अफजाल अंसारी और उनके परिवार के राजनीतिक रसूख पर इसका क्या असर पड़ेगा? तो जाहिर है कि सामंतवाद के खिलाफ गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने का दम भरने वाले अंसारी परिवार को मुख्तार के नहीं होने का खामियाजा तो उठाना पड़ेगा, लेकिन फिलहाल 2024 के चुनाव में सहानुभूति वोट मिलने की बात को नकारा नहीं जा सकता.
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