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कृत्रिम बारिश कराने कानपुर से मेरठ के लिए निकला सेसना एयरक्राफ्ट... जानिए क्लाउड सीडिंग को लेकर क्या है प्लान

यूपी तक

उत्तर प्रदेश में क्लाउड सीडिंग कराने की तैयारियों के बीच एक बड़ा अपडेट सामने आया है. क्लाउड सीडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला सेसना एयरक्राफ्ट कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हो गया है.

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उत्तर प्रदेश में क्लाउड सीडिंग कराने की तैयारियों के बीच एक बड़ा अपडेट सामने आया है. क्लाउड सीडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला सेसना एयरक्राफ्ट कानपुर से मेरठ के लिए रवाना हो गया है. अधिकारियों के मुताबिक बादलों की अनुकूल स्थिति होने पर अगले तीन दिनों के भीतर कभी भी क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. इसके बाद ही इसकी जानकारी सार्वजनिक की जाएगी.

कैसे होगी क्लाउड सीडिंग?

कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग का तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है.इसके लिए सेसना एयरक्राफ्ट को खासतौर से मॉडिफाई किया गया है. एयरक्राफ्ट के दोनों विंग्स के नीचे 8 से 10 पॉकेट्स (पाइरोटेक्निक फ्लेयर्स) रखी गई हैं जिनके माध्यम से क्लाउड सीडिंग को अंजाम दिया जाएगा. एयरक्राफ्ट में मौजूद एक बटन के माध्यम से इन पॉकेट्स में रखे केमिकल्स को बादलों के नीचे ब्लास्ट किया जाएगा. यह तकनीक पाइरोटेक्निक कहलाती है. इससे निकलने वाले फ्लेयर्स यानी की लौ नीचे से ऊपर की ओर बादलों के साथ रिएक्ट करेंगी जिससे कृत्रिम बारिश होगी. अधिकारियों के अनुसार, इस क्लाउड सीडिंग का असर लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में देखने को मिलेगा.

सबसे जरूरी बात ये है कि क्लाउड सीडिंग के लिए बादल होना जरूरी है. बारिश हवा में से नहीं बनाई जा सकती. बादल में पर्याप्त पानी के कण होने चाहिए. ऐसे में बादल होने की स्थिति में कल से लेकर अगले तीन दिन में कभी भी क्लाउड सीडिंग हो सकती है. इस प्रक्रिया के सफल होने के बाद ही इसकी जानकारी डिटेल में दी जाएगी. इस पहल का उद्देश्य मौसम की विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करना है.

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क्या होती है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक 75 साल पुरानी तकनीक है, जिसमें विशेष 'बीज' कणों (generally सिल्वर आयोडाइड) का उपयोग करके उपयुक्त बादलों को संशोधित किया जाता है ताकि बारिश कराई जा सके. ये बीज कण पानी की भाप को आकर्षित करते हैं. इसके चारों ओर पानी संघनित होता है और भारी होकर बारिश के रूप में गिरता है.

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