आजम खान जैसे मुस्लिम नेताओं के बिना सपा को मिलेगा मुसलमान वोट? अखिलेश यादव की नई रणनीति काफी गहरी है

UP News: कभी आजम खान और बर्क जैसे नेताओं के पीछे मुसलमान लामबंद थे और ये समाजवादी पार्टी की मजबूती हुआ करते थे. मगर अब लगता है कि अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति बदल ली है.

Akhilesh Yadav

आमिर खान

01 Apr 2025 (अपडेटेड: 01 Apr 2025, 10:47 AM)

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UP Politics:लोकसभा चुनाव-2024 में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 37 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया और इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी के सामने सपा मुखिया अखिलेश यादव बड़ी चुनौती के तौर पर पेश हो गए. अखिलेश यादव की रणनीति के आगे यूपी में भाजपा की कोई भी रणनीति लोकसभा चुनावों में कामयाब नहीं हुई और भाजपा को यूपी में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. इसी के साथ सपा देश का तीसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनकर भी उभरा.

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सपा का मुख्य वोट बैंक हमेशा से यादव और मुसलमान ही रहा है. मगर सीएसडीएस सर्वे में अब ये भी सामने आ गया है कि हर तीसरा यादव भाजपा को भी वोट देता है. इसका मतलब साफ है कि अब यादव पूरी तरह से सपा को मतदान नहीं करता. भाजपा यादव वोटर्स में अपनी पकड़ बनाने की हर संभव कोशिश कर रही है. ऐसे में सपा की निर्भरता मुसलमान मतदाता के ऊपर और भी अधिक हो गई है. इसी बीच एक बार फिर पश्चिम यूपी के मुसलमानों की चर्चाओं में सपा के कद्दावर नेता रहे आजम खान और संभल सांसद जियाउर्रहमान बर्क का नाम आने लगा है. दरअसल आरोप लग रहे हैं कि अखिलेश यादव आजम खान और सांसद जियाउर्रहमान बर्क की अनदेखी कर रहे हैं.

ऐसे में ये सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या अब अखिलेश यादव को मुस्लिम वोटों को एकजुट करने के लिए आजम खान और बर्क जैसे नेताओं की जरूरत है?

अखिलेश और मुस्लिम वोट

पहले जब-जब आजम खान के परिवार से मिलने आजाद समाज पार्टी के मुखिया और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने रामपुर में कदम रखा, तब-तब अखिलेश यादव की बेचैनी बढ़ जाती थी. चंद्रशेखर रावण सीतापुर जेल में भी आजम खान से मिलने गए और हरदोई जेल में उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान से भी मिलने गए. उस दौरान भी सपा में हलचल होती थी. मगर अब अब्दुल्ला आजम खान जेल से बाहर आ चुके हैं. इसके बाद से चंद्रशेखर आजाद ने ना तो उनसे मुलाकात की है और ना ही उनको लेकर कोई बयान दिया है.

अखिलेश का नहीं आया अब्दुल्ला को लेकर कोई रिएक्शन

बता दें कि जब से अब्दुल्ला आजम जेल से बाहर आए हैं, अखिलेश यादव ने उनको लेकर कोई गर्मजोशी नहीं दिखाई है. उनको लेकर ना कोई बयान है और ना ही कोई ट्वीट किया गया है. इससे पहले जब आजम खान जेल से रिहा हुए थे, तब अखिलेश यादव और सपा ने काफी गर्मजोशी दिखाई थी.

समाजवादी पार्टी के पोस्टरों और बैनरों से भी धीरे धीरे आजम खान बाहर होने लगे हैं. अब्दुल्ला तो पहले ही बाहर थे. दरअसल रामपुर लोकसभा चुनाव और नगर निकाय चुनाव के बाद से आजम खान के राजनीतिक करियर पर सवाल उठने लगे हैं. आजम खान के प्रचार के बाद भी जिस तरह से रामपुर नगर निकाय का चुनाव सपा उम्मीदवार हारा, वह काफी चौंकाऊ था.
 
लोकसभा चुनाव में भी सपा उम्मीदवार मोहिबुल्ला नदवी आजम ख़ान के विरोध के बाद भी सपा से लोकसभा चुनाव जीत गए थे. इन चुनावों से पहले अखिलेश यादव आजम खान के लिए बयान दे देते थे और उनके साथ खड़ा दिखने की कोशिश करते थे. लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही हैं. 

अखिलेश यादव ने रणनीति बदली

दरअसल अब मुसलमान वोटर के पास समाजवादी पार्टी के अलावा कोई मजबूत विकल्प बचा नहीं है. भाजपा के खिलाफ मुसलमानों की एकजुटता को अखिलेश यादव भी ठीक से भुनाना चाहते हैं. अब अखिलेश यादव ऐसी मुस्लिम लीडरशिप उभारने में लगे हैं, जिसमें उनके पिता और उनके पिता के दौर का साया नहीं हो.

माना जा रहा है कि इसीलिए ही मौलाना मोहिबुल्ला जैसे प्रत्याशी उनकी पसंद बनने लगे हैं. इसलिए ही इकरा हसन जैसा युवा चेहरा वो सामने लाए हैं. अब अखिलेश आज़म खान और उन जैसे लोगों की दबाव की रणनीति को नकारने लगे हैं. 

अब तो यही लगता है कि आजम खान, अखिलेश यादव के लिए बीते दौर की बात हो चुके हैं. शायद रामपुर की जनता भी आजम खान को अब इसी नजरिए से देख रही है.

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