गुस्से में अब्दुल्ला आजम सड़क पर बैठ गए थे और चली गई विधायकी, विस्तार से जानिए वो पूरी घटना

रजत सिंह

• 06:25 PM • 02 May 2023

रामपुर की स्वार विधानसभा सीट पर भले ही 10 मई को वोटिंग और 13 मई को रिजल्ट आना वाला हो. लेकिन इस पर असली फैसला…

UPTAK
follow google news

रामपुर की स्वार विधानसभा सीट पर भले ही 10 मई को वोटिंग और 13 मई को रिजल्ट आना वाला हो. लेकिन इस पर असली फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करने वाला है.

यह भी पढ़ें...

दरअसल, इस मामले में सपा नेता और आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला को तुरंत तो कई राहत नहीं दी, लेकिन दोषसिद्धि रद्द करने की अपील पर नोटिस जारी किया. साथ ही साथ कोर्ट ने ये भी कहा कि चुनाव में जो भी फैसला आए, इसका अंतिम निर्णय तो कोर्ट में फैसले पर ही निर्भर करेगा.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या था अब्दुल्ला आजम की विधायकी चली गई थी. सबसे पहले बात कर लेते हैं कि आखिर वो कौन-सी घटना थी, जिस पर अब्दुल्ला आजम को सजा हुआ.

13 फरवरी को मुरादाबाद की कोर्ट अब्दुल्ला आजम और आजम खान को छजलैट मामले में 2-2 साल की सजा सुनाई गई. अगर छजलैट मामले की बात करें, तो छजलैट पुलिस ने 29 जनवरी 2008 को सपा के पूर्व मंत्री और रामपुर के पूर्व विधायक आजम खान की कार को चेकिंग के लिए रोका था.

इस दौरान गुस्सा होकर सपा नेता आजम खान सड़क पर बैठ गए थे. वहीं आजम खान और उनके साथियों पर सड़क जाम करने और सरकारी कार्य में बाधा डालने, भीड़ को उकसाने आरोप लगे थे और यह कार्रवाई इसी मामले में ही हुई है.

खास बात ये है कि इस केस में अमरोहा के सपा विधायक महबूब अली, पूर्व सपा विधायक हाजी इकराम कुरैशी, जो अब कांग्रेस में हैं, बिजनौर के सपा नेता मनोज पारस, सपा नेता डीपी यादव, सपा नेता राजेश यादव और सपा नेता रामकुंवर प्रजापति आरोपी थे, लेकिन इन सबको बरी कर दिया गया और आजम खान और अब्दुल्ला आजम को सजा दी गई.

लेकिन इन सबके इतर अब्दुल्ला आजम का अपना दावा है, जो उन्होंने अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को भी बता चुके हैं.

घटना के बारे में बताते हुए अब्दुल्ला आजम ने कहा कि मैं अपने पिता आजम खान के साथ रामपुर के पास एक गांव में गया था. स्थानीय लोगों के साथ पिता बातचीत कर रहे थे. तभी पुलिस उनकी गाड़ी की तलाशी लेने लगी. समर्थक नाराज हो गए. तब मैं सड़क किनारे खड़ी गाड़ी में बैठा था. मेरा किसी चीज में कोई रोल नहीं था.

इसके अलावा अब्दुल्ला आजम का एक और दावा है. वो ये कि जब ये सब घटना हो रही थी, तब वह नाबालिग थे और केस की सुनवाई जुवेनाइल एक्ट के तहत ही होनी चाहिए. दरअसल, इसके पीछे अब्दुल्ला की दलील है कि पहली बार जब 28 फरवरी 2020 में उनकी विधायकी गई थी, तब उम्र को मुद्दा बनाया गया था. कोर्ट ने 2017 के विधानसभा चुनाव में नामांकन के वक्त अब्दुल्ला आजम की उम्र 25 साल नहीं मानी थी. इसको मुद्दा बनाते हुए अब्दुल्ला कह रहे हैं कि अगर कोर्ट के फैसले को माना जाया, तो घटना के वक्त उनकी उम्र 15 साल थी. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठा रहा है कि क्या किसे धरने में शामिल होने या गाड़ी में बैठकर उसे देखने के लिए विधायकी जा सकती है. फिलहाल, इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.

    follow whatsapp
    Main news