अलग रह रही पत्नी के लिए फैमिली कोर्ट ने 8000 रुपये का भरण-पोषण फिक्स किया पर हाई कोर्ट ने पति के पक्ष में सुनाया गजब फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मेरठ फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द किया जिसमें अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण दिया गया था. हाई कोर्ट ने कहा- बिना ठोस वजह अलग रहने वाली पत्नी हकदार नहीं. जानें CrPC की धारा 125(4) और पूरे मामले की डिटेल.

यूपी तक

• 02:25 PM • 13 Jul 2025

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भरण-पोषण के एक महत्वपूर्ण मामले में एक ऐसा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर कोई पत्नी बिना किसी ठोस वजह के अपने पति से अलग रह रही है, तो वह भरण-पोषण (Maintenance) पाने की हकदार नहीं है. इस फैसले के साथ ही हाई कोर्ट ने मेरठ की एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पत्नी के लिए 8,000 रुपये मासिक भरण-पोषण तय किया गया था.

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क्या था फैमिली कोर्ट का फैसला?

यह मामला विपुल अग्रवाल नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा है, जिसकी पत्नी उससे अलग रह रही थी. मेरठ की फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने 17 फरवरी 2025 को एक आदेश जारी किया था. इस आदेश में पत्नी के लिए 5,000 रुपये प्रति माह और नाबालिग बच्चे के लिए 3,000 रुपये प्रति माह, यानी कुल 8,000 रुपये प्रति माह का भरण-पोषण तय किया गया था. 

हालांकि, फैमिली कोर्ट ने अपने ही फैसले में यह भी माना था कि पत्नी यह साबित करने में विफल रही कि वह पर्याप्त कारणों से पति से अलग रह रही है और पति उसकी उपेक्षा कर रहा है. इसी विरोधाभास को लेकर पति विपुल अग्रवाल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की. 

हाई कोर्ट ने क्यों रद्द किया फैमिली कोर्ट का आदेश?

न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने विपुल अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125(4) का हवाला दिया. इस धारा के अनुसार, 'यदि पत्नी बिना पर्याप्त कारणों के पति से अलग रह रही है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है.'

हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने एक तरफ तो यह पाया कि पत्नी के अलग रहने के पीछे कोई पर्याप्त कारण नहीं है, लेकिन दूसरी तरफ उसने पत्नी के पक्ष में 5,000 रुपये का भरण-पोषण तय कर दिया. हाई कोर्ट ने इसे विरोधाभासी और CrPC की धारा 125(4) का उल्लंघन बताया.

पति की कमाई पर भी नहीं हुआ था विचार

विपुल अग्रवाल के वकील ने हाई कोर्ट में यह भी दलील दी कि फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण की राशि तय करते समय पति की कमाई क्षमता पर विचार नहीं किया था. इसके बावजूद पत्नी और नाबालिग बच्चे के लिए कुल 8,000 रुपये का भरण-पोषण तय कर दिया गया. 

पत्नी के वकील और सरकारी वकील ने तर्क दिया कि वह पति की उपेक्षा के कारण अलग रह रही थी, और इसीलिए फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण की अनुमति दी थी.

मामला फैमिली कोर्ट को वापस, अंतरिम भरण-पोषण जारी रहेगा

हाई कोर्ट ने 8 जुलाई 2025 को अपने फैसले में मामले को दोबारा फैमिली कोर्ट को भेज दिया है. फैमिली कोर्ट अब दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के बाद नए सिरे से इस पर फैसला करेगी. हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक यह मामला फैमिली कोर्ट में लंबित रहेगा, तब तक पति विपुल अग्रवाल को पत्नी के लिए 3,000 रुपये प्रति माह और बच्चे के लिए 2,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देना होगा. यह फैसला उन मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है जहां पत्नियां बिना ठोस वजह के अलग रहती हैं और भरण-पोषण का दावा करती हैं.

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