50 सालों से चली आ रही वर्चस्व की जंग में हुआ तिहरा हत्याकांड? बदायूं पुलिस पर उठ रहे सवाल

अंकुर चतुर्वेदी

• 11:01 AM • 05 Nov 2022

Badaun News: बीते दिनों बदायूं में हुए तिहरे हत्याकांड ने 50 सालों से चली आ रही रंजिश के उसूल तक तोड़ दिए. दो परिवारों की…

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Badaun News: बीते दिनों बदायूं में हुए तिहरे हत्याकांड ने 50 सालों से चली आ रही रंजिश के उसूल तक तोड़ दिए. दो परिवारों की रंजिश में इस घटना से पहले 5 लोगों की जान जा चुकी थी. ऐसा पहली बार हुआ कि किसी महिला को निशाना बनाया गया हो, अब तक इस खूनी रंजिश में 8 लोग जान गवा चुके हैं.

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मृतक राकेश गुप्ता के भाई राजेश गुप्ता की तहरीर पर पुलिस ने 6 लोगों को अभियुक्त बनाया है. इसमें रविंद्र दीक्षित और उसका बेटा सार्थक दीक्षित को मुख्य अभियुक्त बताया गया है. साथ ही रविंद्र के दूसरे बेटे अर्चित दीक्षित को षड्यंत्र रचने का आरोपी बनाते हुए, गांव के ही युवक विक्रम, जो कि रविंद्र का ड्राइवर भी है, का नाम भी FIR में दर्ज है. इन चारों के साथ 2 अज्ञात लोगो सहित 6 लोगों के खिलाफ अभियोग पंजीकृत किया गया है. तहरीर में राजेश गुप्ता ने बताया है कि जब गोलियों कि आवाज सुनकर वह घर की तरफ भागे तब उन्होंने रविंद्र दीक्षित और उसके बेटे व अन्य 2 लोगों को बाइक से भागते हुए देखा था.

पुलिस ने राजेश गुप्ता के बयान के आधार पर रविंद्र दीक्षित और उसके बेटे को गिरफ्तार कर किया है. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ. ओपी सिंह ने बताया कि जब गिरफ्तार किए गए आरोपी रविंद्र और उसके बेटे से घटना का मकसद पूछा गया तो रविंद्र ने बताया कि ‘मृतक राकेश और उसके परिवार से हम लोगों के परिवार का सन 1972 से राजनीतिक मतभेद और वर्चस्व को लेकर विवाद चला आ रहा है. तथा प्रत्येक प्रधानी, ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में एक दूसरे के विरुद्ध रहते थे.

डॉ. ओ पी सिंह ने बताया कि पूर्व में भी इन लोगों में आमने सामने कई बार विवाद हो चुका था. आरोप है कि मृतक के पिता रामकिशन गुप्ता की हत्या अभियुक्त रविंद्र दीक्षित ने ही 1979 में की थी, जिसके चलते आपसी तनाव काफी ज्यादा बढ़ गया था. 1981 में राकेश के पक्ष के एक व्यक्ति की हत्या और कर दी जाती है, उपरोक्त विवादों के चलते न्यायालय में मृतक कड़ी पैरवी कर रहा था. इस कारण रविंद्र दीक्षित ने साथियों सहित योजनाबद्ध तरीके से इस घटना को अंजाम दिया.

राकेश गुप्ता की राजनीतिक महत्वाकांशा का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि उसने 1999 में निर्दलीय लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे महज 4892 वोट मिले थे. 2006 में राकेश पहली बार ब्लॉक प्रमुख बना, मां ग्राम प्रधान बनी. बसपा सरकार आने के बाद राकेश बसपा में शामिल हो गया. 2007 में राकेश गुप्ता के भाई की हत्या हुई थी. हत्या की वजह गांव का जमीनी विवाद था. लेकिन उस समय भी राकेश ने उसमे रविंद्र या उसके परिवार की संलिप्तता का आरोप लगाया था. मगर पुलिस ने रविंद्र का नाम मुकदमे में नहीं लिखा जबकि राकेश का परिवार इन्हीं को दोषी मानता था.

इसके चलते रंजिश और गहरी हो गई. 2016 में राकेश ने अपने भाई राजेश की पत्नी को ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया और खुद जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़कर जीत गया. 2017 के लिए विधायक के टिकट के लिए प्रयास करने लगा. रविंद्र के पिता की हत्या कर दी गयी थी, जिसमें राकेश गुप्ता का नाम सामने आया था. दोनों परिवारों पर कई मुकदमे हो गए थे और राजनीतिक शरण के लिए दोनों अलग अलग पार्टियों समाजवादी और भाजपा से जुड़ गए. रविंद्र दीक्षित बीजेपी में मंडल अध्यक्ष है.

पुलिस की थ्योरी पर क्यों उठ रहे सवाल?

इसके बाद रविन्द्र और उसका परिवार दुश्मनी के चलते गांव छोड़कर बरेली रहने लगा था और कभी कभी ही गांव आता था. 8 दिसंबर को रविंद्र के बड़े बेटे सार्थक दीक्षित का विवाह होना था, जिसके चलते घर में रंग-रोगन का काम चल रहा था. सूत्रों के अनुसार, रविंद्र घटना के वक्त कासगंज जिले के कयामगंज तहसील पेंट का सामान लेने गया हुआ था. इस संबंध में एक CCTV फुटेज भी सामने आया है. जिसमें रविंद्र एक मोबाइल की दुकान पर 31 अक्टूबर को शाम 6.14 बजे किसी से मोबाइल पर बात करते हुए दिखाई दे रहा है.

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ. ओपी सिंह ने बताया कि रविंद्र दीक्षित बहुत शातिर व्यक्ति है उसने अभी तक अज्ञात दो लोगों के बारे में भी कोई सटीक जानकारी नहीं दी है. रविंद्र के ड्राइवर विक्रम के गिरफ्तार होने के बाद पुरी कहानी से पर्दा हटेगा.

वहीं, CCTV फुटेज सामने आने पर कई सवाल उठ रहे हैं. मृतक के भाई राजेश ने तहरीर में लिख कर पुलिस को बताया है कि उसने रविंद्र और सार्थक को घर से भागते हुए देखा था. अब अगर CCTV फुटेज जो कि गांव से 50 मिनट दूर कयामगंज का है और घटना से 20 min पहले का है. रविंद्र दीक्षित की घटना के वक्त गैरमौजूदगी का ये मतलब बिलकुल नहीं हो सकता है कि उसकी घटना में कोई संलिप्तता नहीं है. घटना स्थल को देखकर साफ लग रहा है कि हत्यारे प्रोफशनल थे और उनको घर के अंदर की पूरी जानकरी थी. सभी को गोली बहुत पास से मारी गई है.

अचंभित करने वाली बात ये भी है कि 24 घंटे से पहले मुख्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर घटना का खुलासा करने वाली पुलिस घटना के 4 दिन बाद तक दो अज्ञात लोगो के नाम तक नहीं जान पाई है. अभी तक 4 आरोपी फरार हैं.

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