IT जॉब कर चुकी किन्नर अखाड़े की साध्वी पार्वती ने किन्नरों की मौत से जुड़े सारे दावों की असलियत बता दी

UP News प्रयागराज महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा भी चर्चाओं में बना हुआ है. किन्नर अखाड़े में UP TAK ने निरंजनी अखाड़े से जुड़ी हुई साध्वी पार्वती से बात की. साध्वी पार्वती भी किन्नर हैं. वह काफी पढ़ी लिखी हैं और प्राइवेट सेक्टर में जॉब भी कर चुकी हैं.

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यूपी तक

• 04:24 PM • 23 Jan 2025

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UP News: प्रयागराज महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा भी चर्चाओं में बना हुआ है. किन्नर अखाड़े में UP TAK ने निरंजनी अखाड़े से जुड़ी हुई साध्वी पार्वती से बात की. साध्वी पार्वती भी किन्नर हैं. वह काफी पढ़ी लिखी हैं और प्राइवेट सेक्टर में जॉब भी कर चुकी हैं.

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साध्वी पार्वती कहती हैं कि उन्होंने एमकॉम तक की पढ़ाई की है और फिर आईटी सेक्टर में जॉब भी की है. मगर वह प्रारंभ से ही काफी धार्मिक रही हैं. यूपी तक से बात करते हुए साध्वी पार्वती ने ये भी बताया कि उनके परिवार ने उनके साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया और उन्हें आम बच्चों की तरह पाला. मगर वह शुरू से ही काफी धार्मिक रहीं. इस दौरान साध्वी पार्वती ने कहा कि उन्होंने साल 2020 में ही संन्यास लिया है और साध्वी बनकर किन्नर अखाड़े से जुड़ गई हैं. अब उन्हें ये जीवन पसंद है. वह शिव-शक्ति की पूजा करती हैं. साध्वी पार्वती ने ये भी कहा कि वह भगवान शिव को अपना पिता और माता पार्वती को अपनी माता मानती हैं.

UP TAK ने साध्वी पार्वती से सवाल किया कि क्या किन्नरों की मृत्यु होने पर उनको चप्पलों से मारकर आखिरी विदाई दी जाती है? इसका जवाब साध्वी पार्वती ने दिया. 

किन्नरों के मृत्यु रिवाज को लेकर साध्वी पार्वती ने ये बताया

क्या किन्नरों की मृत्यु होने पर उनको चप्पलों से मारकर आखिरी विदाई दी जाती है?  इस सवाल का जवाब देते हुए साध्वी पार्वती ने कहा, हिजड़ा कल्चर में ऐसा होता था. जब किसी किन्नर की मौत होती थी तो उसके शव को चप्पलों से मारा जाता था और गाली देकर उसे दफनाया जाता था. ये काफी पुरानी प्रथा थी. प्रार्थना की जाती थी कि ऐसा जन्म फिर कभी मत लेना ये भगवान से अपना गुस्सा जाहिर करने का एक तरीका था. 

साध्वी पार्वती ने आगे बताया, सनातन में ऐसा नहीं होता. सनातन में अगर कोई किन्नर जन्म लेता है, तो उसका सनातन के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया जाता है. हिजड़ा कल्चर में ये काफी पुरानी प्रथा थी. मगर अब ये सब बंद हो चुका है.

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