फैक्ट चेकर जुबैर की रिहाई का रास्ता साफ, SC ने कहा- अब हिरासत में रखने का कोई मतलब नहीं

संजय शर्मा

• 11:29 AM • 20 Jul 2022

ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक और फैक्ट चेकर जुबैर अहमद की रिहाई का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट…

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ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक और फैक्ट चेकर जुबैर अहमद की रिहाई का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए. अब जुबैर को हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है. जुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश में दर्ज 6 एफआईआर को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर कर दिया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच के लिए गठित यूपी की एसआईटी को भी भंग करने का आदेश दिया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए. अब जुबैर को हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है. सभी सात एफआईआर में बीस हजार रुपए के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत का हकदार होगा जुबैर. इन एफआईआर की जांच की फाइल यूपी पुलिस दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को भेज देगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुबैर अगर चाहे तो दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर एफआईआर रद्द करने की मांग कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने सीएमएम की कोर्ट में बेल बॉन्ड्स दाखिल करने कहा. संभावना जताई जा रही है कि बुधवार शाम छह बजे तक जुबैर की रिहाई हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को भविष्य में उसके खिलाफ दर्ज होने वाली किसी भी एफआईआर में गिरफ्तारी से राहत दी अगर ये इसी मामले में दर्ज किए गए केस हैं तो.

ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की याचिका पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. जांच एजेंसी की ओर से एएसजी एसवी राजू पेश हुए. जुबैर की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर और यूपी सरकार की ओर से गरिमा प्रसाद मामले में पेश हुईं.

सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने दलील देते हुए कहा कि बार-बार ये दावा किया जा रहा है कि जुबैर पत्रकार है, लेकिन वो खुद कह रहा है कि वो फैक्ट चेकर है. इस आड़ में वो संदिग्ध और उकसाने वाले पोस्ट करता है. इन ट्वीट्स के लिए उसे अच्छी खासी रकम भी मिलती है. पोस्ट यानी ट्वीट्स जितने भड़काऊ या उकसाने वाले होते हैं रकम भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है. उसने खुद माना है कि उसे दो करोड़ रुपए मिले हैं. वो कोई पत्रकार नहीं है. उसने पुलिस को बताया है कि भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले भाषणों को उसने फैलाया है. और वो बार-बार लगातार ऐसे भाषणों वाली क्लिप्स और पोस्ट डालता रहा है जिससे सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े.

7 अप्रैल का ट्वीट एक रेप से जुड़ा था- यूपी सरकार

यूपी सरकार की तरफ से बहस की शुरूआत करते हुए गरिमा प्रसाद ने कहा कि यहा केवल एक ट्वीट या दो ट्वीट का मामला नहीं है. 7 अप्रैल को इसका ट्वीट वायरल होता है. ये मामला एक रेप से जुड़ा था. सीतापुर में बड़ी पुलिस बंदोबस्त किया गया. जिले में टेंशन बढ़ गई थी. अब तक कई बार इसके पोस्ट पढ़ या देखकर ही हिंसा को बढ़ावा मिला है. यूपी सरकार ने कहा कि राज्य के गाजियाबाद और लोनी में ऐसी कई घटनाएं इस दावे की पुष्टि भी करती है. एक बुजुर्ग आदमी की पिटाई के वीडियो को इसने किस तरह से रिपोर्ट किया उसे अदालत खुद देख लें. मैं उसे खुली अदालत के सामने पढ़ना नहीं चाहती.

जुबैर के वकील ने दी ये दलील

जुबैर की तरफ से वकील वृंदा ग्रोवर ने दलील देते हुए कहा कि एक नई प्राथमिकी दर्ज की गई है और एक हाथरस मामले को छोड़कर सभी मामलों में ट्वीट ही एकमात्र विषय है. मैं उन ट्वीट्स के बारे में बताना चाहती हूं जो सभी मामलों में अभी जांच का विषय बना हुआ है. दिल्ली में मेरे खिलाफ एक एफआईआर है, जिसमें 2018 के ट्वीट के खिलाफ मुझे नियमित जमानत दी जा चुकी है, जबकि दिल्ली पुलिस ने जांच के दौरान जांच का दायरा बढ़ाकर मेरे आवास पर ले जाया गया और मेरा लैपटॉप जब्त कर लिया गया.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि जुबेर को दिल्ली में दर्ज एफआईआर के तहत गिरफ्तार किया गया था? इसमें उसे जमानत दे दी गई थी? जवाब में यूपी सरकार ने कहा कि सीतापुर प्राथमिकी में हमने जमानत दे दी है, हाथरस मामले में सुनवाई जारी है.

इधर ग्रोवर ने कहा कि हाथरस मामले में उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया. लखीमपुर खीरी मामले में आज पुलिस रिमांड की अर्जी पर सुनवाई होगी. मेरे ट्वीट की भाषा भी उकसावे की दहलीज पार नहीं करती. मैने अपने ट्वीट पुलिस को कार्रवाई के लिए टैग कर रहा हूं. लेकिन पुलिस ने मेरे खिलाफ जो एफआइआर दर्ज की है वह कहती है कि मैंने वैश्विक स्तर पर मुसलमानों को उकसाया है! जबकि मैंने पुलिस को एक नागरिक के रूप में कार्रवाई करने के लिए टैग किया था.

गाजियाबाद की घटना में सांप्रदायिक एंगल नहीं था- यूपी सरकार

यूपी सरकार ने कहा कि गाजियाबाद की घटना में कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं था, लेकिन उसने अपने ट्वीट्स में ऐसे शब्द जोड़े जो भावनाओं को भड़काते हैं. यह एक स्थानीय मुद्दा है, लेकिन वह अपने ट्वीट्स में पूरे देश के बारे में बात करना शुरू कर देता है. उसने ट्वीट किया और बाद में कानून व्यवस्था गंभीर हो गई. जुबैर ने स्वीकार किया कि यह कोई सांप्रदायिक मुद्दा नहीं था. तो फिर इस भड़काऊ ट्वीट को क्या कहा जाए? वृंदा ग्रोवर ने अपनी दलील में कहा कि जुबैर के खिलाफ हाईकोर्ट में भी पुलिस कोई ठोस सबूत नहीं दे पाई.

कोर्ट ने मामले का बैक ग्राउंडर लिखवाते हुए कहा कि जुबैर के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 153 a और 120 b के तहत मामला दर्ज किया गया. इन धाराओं में आरोप एफआईआर में बताए गए. बाद में एफसीआरए की धाराएं भी लगाई गईं. जुबैर के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने 20 जून को एफआईआर दर्ज की थी. जांच के दौरान पुलिस ने एफसीआरए के तहत भी मुकदमा दर्ज किया. इस मामले में उसे जमानत भी मिल गई है.

दिल्ली पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट जो निचली अदालत में दाखिल किया है उसमें कहा है कि जांच के दौरान पाया की 7 ट्वीट जो याचिकाकर्ता ने किए थे उसकी जांच चल रही है. इस दौरान एफआईआर दर्ज करने का एक सिलसिला चला. एफआईआर लोनी की घटना को लेकर भी दर्ज की गई. दिल्ली पुलिस इस मामले में FCRA के तहत जांच कर रही है. दिल्ली पुलिस के अलावा भी एफआईआर जुबैर के खिलाफ दर्ज की गई है. इनमें गाजियाबाद, मुज्जफरनगर, चंदौली, लखीमपुर, सीतापुर और हाथरस में दर्ज की गई है.

सभी एफआईआर को एक में क्लब करने का आदेश

आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जुबैर ने अपने खिलाफ दर्ज 6 एफआईआर रद्द करने की याचिका दाखिल की है. इसके अलावा उसने सभी एफआईआर को दिल्ली पुलिस की एफआईआर के साथ जोड़ने की मांग की है. सभी मामलों में उसने जमानत और संरक्षण भी मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर के खिलाफ दर्ज सभी छह एफआईआर क्लब करने के आदेश दिए हैं. स्पेशल सेल की ओर से दर्ज एफआईआर के साथ क्लब होंगी. एक ही जांच एजेंसी अब इस मामले की जांच करेगी।

उत्तर प्रदेश में दर्ज 6 एफआईआर को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर क़िया. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल अब मामले की जांच करेगी. साथ ही कोर्ट ने जुबैर के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच के लिए गठित यूपी की SIT भी भंग करने का आदेश दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मुकदमा रद्द करने से इनकार किया है. कोर्ट ने कहा कि सभी मामलों को एक जगह जमा करके कोई एक एजेंसी जांच करे. इसलिए सभी मुकदमों को जांच के लिए दिल्ली पुलिस को दी जाती है.

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