कहानी हिंदू युवा वाहिनी की, क्या अपने तुरुप के इक्के से दूर हो रहे CM योगी? इनसाइड स्टोरी

अमीश कुमार राय

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एक बार फिर यूपी की राजनीति में हिंदू युवा वाहिनी के चर्चे हैं. पर इस बार चर्चा की वजह इस संगठन का कोई आक्रामक हिंदुत्व वाला पैतरा नहीं बल्कि सीएम योगी आदित्यनाथ का एक फैसला है, जिसने हिंदू युवा वाहिनी को पूरी तरह से भंग कर दिया है. कुछ लोगों के लिए यह फैसला चौंकाऊ है तो कुछ इसके पीछे के नए राजनीतिक कयासों पर चर्चा कर रहे हैं. जाहिर तौर पर लोग यह सोच रहे हैं कि आखिर जिस संगठन की ताकत के बलबूते योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज इस मुकाम पर पहुंचे, उसे भंग करने का फैसला क्यों लिया गया. क्या उन्हें ऐसा करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कहा? या योगी आदित्यनाथ के इस फैसले के पीछे कोई दूसरी रणनीति है?

इस पूरे मामले को समझने से पहले आइए आपको हिंदू युवा वाहिनी की उस कहानी से रुबरू कराते हैं, जिसके बारे में सार्वजनिक चर्चाएं कम ही हुई हैं.

हिंदू युवा वाहिनी यानी योगी को अजेय बनाने वाला संगठन

अगर आपको भारतीय राजनीति में रुचि है, तो पिछले कुछ सालों में गाहे-बेगाहे आपने दो नेताओं की आपसी तुलना के बारे में अलग-अलग कहानियां जरूर सुनी होंगी. ये दो नेता हैं पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ. सोशल मीडिया पर और आम बीजेपी समर्थकों की चर्चाओं में यह विश्लेषण अक्सर सुनने को मिलता है कि मोदी के बाद अब योगी ही वह नेता हैं, जो देश के पीएम बनेंगे. इन दोनों नेताओं में अक्सर लोग साम्य तलाशते हैं. पहला साम्य, हिंदुत्व की राजनीति का पोस्टर बॉय होना. और दूसरा साम्य, राजनीति के मैदान में अजेय.

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इन दोनों नेताओं को सीधे मुकाबले में कभी चुनावी हार का सामना नहीं करना पड़ा है. भारतीय राजनीति में ये अजेय हैं. योगी की अपराजेयता के पीछे तमाम फैक्टर्स हैं और उनमें से सबसे अहम रहा है उनका अपना संगठन यानी हिंदू युवा वाहिनी.

गोरखपुर में योगी की जीत का अंतर घटना और गौ रक्षा मंच का हिंदू युवा वाहिनी में बदलना

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वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र के झा ने 2017 में एक किताब लिखी Yogi Adityanath and The Hindu Yuva Vahini. इस किताब में उन्होंने उस मोमेंट का जिक्र किया है, जब योगी आदित्यनाथ को पहली बार उस आंकड़े से वन टू वन होना पड़ा, जो उनकी घटती राजनीतिक लोकप्रियता की ओर इशारा कर रहा था. हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित बुक रिव्यू आर्टिकल के मुताबिक 1998 में 26 साल के योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से 26000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. पहली जीत के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए अपना पहला गैर राजनीतिक संगठन लॉन्च किया और इसका नाम रखा गया गौ रक्षा मंच.

हालांकि 1999 में योगी आदित्यनाथ जब फिर से गोरखपुर से चुनावी मैदान में उतरे तो इस बार जीत का अंतर सिर्फ 7339 वोटों का रह गया. यह अलार्मिंग स्थिति थी. ऐसा इसलिए क्योंकि 1967 में पहले महंत दिग्विजय नाथ गोरखपुर से सांसद बने और बाद में महंत अवैद्यनाथ ने यहां से सियासी रसूख को कायम रखा. पर 1999 के चुनावी नतीजे में जीत की मार्जिन को घटता देख शायद योगी आदित्यनाथ को पहली बार अपनी सियासी हार की आशंकाएं दिखी होंगी और उन्होंने फौरन इस आशंका को दूर करने के लिए कोशिश शुरू कर दी.

2002 में आ गया वह मौका जब योगी आदित्यनाथ को मिला तुरुप का इक्का

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योगी आदित्यनाथ को समझ में आ गया था कि सिर्फ ‘काउ कार्ड’ से काम नहीं चलने वाला. हिंदू वोटर्स को संगठित करने के लिए नए मौकों की जरूरत थी. 2002 में गुजरात में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए. धीरेंद्र के झा की किताब के मुताबिक योगी आदित्यनाथ ने उसी साल गौ रक्षा मंच का नाम बदलकर न सिर्फ हिंदू युवा वाहिनी कर दिया बल्कि इसके काम के दायरे को बढ़ाकर लव जेहाद, धर्मांतरण जैसे विषयों को भी शामिल कर लिया.

संगठन ने किया कमाल, BJP के अंदर और बाहर, दोनों ओर तेजी से बढ़ा योगी का कद

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी भी अपनी किताब यदा यदा हि योगी में लिखते हैं कि गोधरा कांड से आहत होकर योगी आदित्यनाथ ने उसी साल यानी 2002 में रामनवमी पर हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया. इसके बाद गोरखपु समेत पूर्वांचल में हिंदू हितों की राजनीति शुरू हो गई. किताब के मुताबिक अपने संगठन के माध्यम से योगी ने दोतरफा राजनीति को अपनाया. एक तरफ मुस्लिम सांप्रदायिकता का विरोध और दूसरी तरफ पूर्वांचल में गोरक्षनाथ पीठ पर बीजेपी की निर्भरता बढ़ाने की कवायद. इसका दोहरा फायदा भी हुआ. पूर्वांचल में योगी की स्वतंत्र राजनीतिक छवि बनी और बीजेपी में भी लगातार उनका कद बढ़ने लगा. पूर्वांचल में हिंदू युवा वाहिनी की ताकत बढ़ने लगी और इसके कार्यकर्ताओं पर दंगे भड़काने जैसे आरोप लगे, उन्हें जेल भी हुई.

खुद योगी आदित्यनाथ को 2007 में 11 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. तब जेल से निकलने के बाद सदन में आकर वह तत्कालीन सपा सरकार पर प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए रो तक पड़े थे. हालांकि मुकदमों और विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों को योगी आदित्यनाथ और उनके इस सांस्कृतिक संगठन (जैसा योगी कहते रहे हैं.) ने बखूबी संभाला और इसका असर गोरखपुर के चुनावी नतीजों में भी देखने को मिला. 2004 के चुनाव में योगी की जीत का मार्जिन 1 लाख 42 हजार वोटों का रहा, जो 2009 और 2014 में 3 लाख वोटों को पार कर गया. 2017 में यह ताकत एक बार फिर दिखी और योगी आदित्यनाथ जिनका नाम सीएम के रेस में कहीं नहीं था, अचानक से यूपी के नए मुख्यमंत्री बन गए.

फिर हिंदू युवा वाहिनी को भंग करने की कवायद क्यों?

2 अगस्त को सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के दौरे पर पहुंचे थे. वहां उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को भंग करने का निर्देश दे दिया. इसके बाद से चर्चा शुरू हो गई कि जिस संगठन की ताकत से योगी आदित्यनाथ ने कई सियासी सफलताएं अर्जित की, क्या वह खुद उससे दूर हो रहे हैं? फौरी तौर पर भले लगे लेकिन मामला ऐसा है नहीं. हिंदू युवा वाहिनी को भंग करने के ऐलान से पहले के इसके प्रदेश प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह की मानें तो संगठन को खत्म नहीं किया गया है बल्कि नई कार्यकारिकी के लिए बंद दिया गया है. उनका दावा है कि बैठक के बाद जल्द नए पदाधिकारियों का ऐलान होगा.

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा भी दावा किया जा रहा है कि हिंदू युवा वाहिनी के नाम पर कई अन्य संगठन सक्रिय हो गए थे, जिनपर गलत काम करने का आरोप लग रहा था. इसे देखते हुए संगठन को भंग करने का ऐलान किया गया. अन्य संगठनों का चिन्हित करने के बाद इसका फिर से गठन होगा. पूर्वांचल समेत पूरे देश में हिंदुत्व की राजनीति की समझ रहने वाले लोग नाम न छापने की शर्त पर यह भी कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उनका यह संगठन काफी सक्रिय हो गया था. थानों, जिला प्रशासन के मामलों में इनकी एंट्री होने लगी थी और बीजेपी-संघ कार्यकर्ताओं से अलग ही इनकी धारा चलने लगी थी. 2024 के चुनाव को देखते हुए सबका एक धारा में तैरना जरूरी था और यही वजह है कि सीएम योगी से ही संगठन को भंग करने की बात कही गई है.

इस कहानी का एक दूसरा एंगल भी है

ऐसी ही हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्वी यूपी के बाद अब पश्चिमी यूपी में संगठन का आधार बढ़ाने के उद्देश्य और 2024 के आम चुनावों में बीजेपी की मदद के लिए इसे भंग करने का फैसला लिया गया है. अगर ऐसा होता है तो यह हिंदू युवा वाहिनी और योगी आदित्यनाथ की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स के लिए एक मेजर शिफ्ट होगा. अबतक ऐसा देखने में आया था कि हिंदू युवा वाहिनी एक स्वतंत्र संगठन के रूप में काम करती थी और कई दफा बीजेपी से सियासी टकराव की नौबत देखने को मिली. हालांकि 2017 में सीएम बनने के बाद गोरखपुर क्षेत्र की यूनिट्स को भंग कर दिया गया था और इसका विरोध करने वाले लोगों को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया था. अब फिर एक बार संगठन को भंग करने के बहाने इसे नई ताकत देने जैसी चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं.

विजय त्रिवेदी अपनी किताब यदा यदा हि योगी में बताते हैं कि यूपी के एक लाख में से करीब 25 हजार गांवों में हिंदू युवा वाहिनी का असर है. यह किताब सीएम योगी के एक साल के कार्यकाल के बाद प्रकाशित हुई. यानी यह आंकड़ा 2017 तक का माना जाना चाहिए. वहीं हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 तक हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों का आंकड़ा 15 लाख पार कर गया था.

आने वाले समय में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह संगठन फिर अपना दबदबा दिखाता है या फिर संघ-बीजेपी रूपी समंदर में समा जाता है. यूपी का सीएम बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ की ‘आजाद राजनीति’ को इस संगठन ने काफी रसद मुहैया कराया है. यह भी जानना दिलचस्प होगा कि योगी आदित्यनाथ को अपने भविष्य की राजनीति के लिए ऐसे किसी संगठन की जरूरत भी होगी या नहीं.

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