‘थैंक्यू’ से लेकर ‘आप कौन’ तक, राजा भैया संग अखिलेश की दोस्ती का तल्खी में बदलने का किस्सा

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23 मार्च 2018, उत्तर प्रदेश की सियासत का एक गर्मागर्म दिन था. यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों का फैसला होना था. प्रदेश की सियासत में राजा भैया के नाम से मशहूर प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह और उनके समर्थक MLA का वोट काफी अहम था. अखिलेश और मायावती यह चुनाव साथ में लड़ रहे थे. राजा भैया ने खुला ऐलान किया कि वह अखिलेश के साथ थे, हैं और रहेंगे. मगर उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह बीएसपी के साथ हैं.

जब इस चुनाव के नतीजे आए तो 10 में से 9 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. एसपी कैंडिडेट के रूप में जया प्रदा भी जीत गईं. अखिलेश यादव के वेरिफाइड ट्विटर हैंडल से उनकी और राजा भैया की एक तस्वीर ट्वीट हुई और अंग्रेजी में कैप्शन लिखा गया, ”समाजवादी पार्टी का समर्थन करने के लिए शुक्रिया.”

हालांकि अब अगर आप इस ट्वीट को खोजने जाएंगे, तो यह आपको मिलेगा नहीं, क्योंकि अखिलेश इसे हटा चुके हैं. यूपी के इस सियासी किस्से के तार आज राजा भैया को पहचानने से भी इनकार करने वाले अखिलेश यादव तक आते हैं.

असल में इस ट्वीट को हटाए जाने की कहानी वह प्रस्थान बिंदु है, जहां से राजा भैया और अखिलेश यादव की सियासी दोस्ती अब बेसिक जान-पहचान की भी मोहताज नजर आने लगी है. तभी तो हाल ही में प्रतापगढ़ में राजा भैया से जुड़े सवाल पर अखिलेश यादव ने पलटकर पूछ दिया- ये कौन हैं?

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अखिलेश ने राजा भैया की तस्वीर वाला ट्वीट डिलीट क्यों किया?

असल में 23 मार्च 2018 को राज्यसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक अगले दिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. मायावती ने बेहद स्पष्ट लहजे में कहा कि अखिलेश यादव को ‘कुंडा का गुंडा’ कहे जाने वाले राजा भैया पर भरोसा नहीं करना था. तब मायावती ने कहा कि अगर वह अखिलेश की जगह होतीं, तो उनके कैंडिडेट को हारने नहीं देतीं. हालांकि उन्होंने ‘बड़प्पन’ दिखाते हुए यह भी कहा कि अखिलेश अभी राजनीति में नए हैं और इस घटना के बावजूद उनका गठबंधन ‘अटूट’ है.

मायावती के कहने का असर था, या कुछ और, अखिलेश ने राजा भैया की तस्वीर वाला ट्वीट डिलीट कर दिया. हालांकि यह बात दिगर है कि आज अखिलेश का मायावती के साथ वाला ‘अटूट’ गठबंधन भी नहीं रहा.

गठबंधन धर्म निभाते-निभाते अखिलेश ने राजा भैया से बना ली दूरी?

असल में अखिलेश और मायावती ने 2019 का लोकसभा चुनाव जब साथ में लड़ा, तो कई सारे सियासी कम्प्रोमाइज दोनों तरफ से हुए. संभवतः ऐसे ही एक कम्प्रोमाइज का नाम राजा भैया हैं. अखिलेश यादव ने तब प्रतापगढ़ की अपनी चुनावी सभाओं में राजा भैया पर खुलकर निशाने साधे और उन पर एहसानफरामोशी के आरोप लगाए थे.

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अखिलेश ने तब कहा था कि समाजवादियों की पूर्ण बहुमत की सरकार थी, लेकिन हमने इन्हें (राजा भैया को) मंत्री बनाया. हालांकि राजा भैया की तरफ से तब भी यही बयान आया कि नाराजगी के बारे में पूछना हो तो आप अखिलेश जी से पूछिए, मैं नाराज नहीं हूं.

आज भी राजा भैया यूपी के सबसे ताकतवर सियासी परिवार में से एक यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार से नजदीकी की कोशिश करते नजर आते दिख रहे हैं. पिछले दिनों जन्मदिन की बधाई देने और मुलायम सिंह यादव से ‘आशीर्वाद’ लेने के लिए उनके घर जाने की राजा भैया की कवायद को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा था. चर्चा यहां तक उठ गई कि राजा भैया कहीं समाजवादी पार्टी के साथ न हो लें, कि तब तक अखिलेश यादव ने उनको लेकर ऐसा बयान दे दिया कि मानों सियासी बम ही फूट गया.

राजा भैया पर अखिलेश के हालिया बयान के कई सियासी मायने

राजनीति में कोई स्थाई दुश्मन या दोस्त नहीं होता, और यह बात यूपी के राजनेता हर दिन साबित करते रहते हैं. रविवार, 28 नवंबर को जब अखिलेश यादव ने प्रतापगढ़ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राजा भैया को पहचानने से ही इनकार कर दिया, तो इसके पीछे कई तरह की सियासत छिपी होने के संकेत मिले.

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1- स्थानीय संगठन को संदेश देने की कोशिश: ऐसा कहा जा रहा है कि राजा भैया ने प्रतापगढ़ में समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं और संगठन को काफी नुकसान पहुंचाया है. खासकर एसपी के जिलाध्यक्ष छविनाथ यादव को यहां काफी परेशान किया गया है. इसके अलावा एसपी के दलित चेहरे इंद्रजीत सरोज के कार्यक्रमों में भी बाधा पहुंचाने की कोशिश की गई है, जिसे राजा भैया से जोड़ा जा रहा है. ऐसे में अखिलेश यादव ने राजा भैया को लेकर सख्ती दिखाते हुए संगठन को स्पष्ट संदेश दिया है कि उन्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं.

2- चुनाव से पहले समीकरण और छवि को लेकर सचेत हैं अखिलेश: 2022 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए एक बड़ी चुनौती है. सियासी रसूख को कायम रखने के लिए अखिलेश यादव को सत्ता में वापसी चाहिए और इसके लिए इस बार उन्होंने गैर यादव ओबीसी और दलित वोटों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग सियासी गठबंधन किए हैं. पूर्वांचल की राजनीति में राजा भैया की छवि सवर्ण बाहुबली राजपूत नेता की है और अखिलेश नहीं चाहते होंगे कि यह छवि उनके साथ चिपके. इसलिए मुलायम सिंह यादव से राजा भैया की मुलाकात के तुरंत बाद ज्योंही अखिलेश को मौका मिला, उन्होंने पूरी कोशिश कर दी कि उनका नाम राजा भैया से ना जुड़े.

3- शिवपाल यादव ‘इफेक्ट’: राजा भैया और समाजवादी पार्टी की करीबी तब से रही है जब पार्टी की कमान अखिलेश के पास नहीं बल्कि मुलायम और शिवपाल के पास थी. ऐसे में राजा भैया को अखिलेश की तुलना में शिवपाल यादव का ज्यादा करीबी समझा जाता है. अखिलेश अभी अपने चाचा शिवपाल को लेकर ही किसी अंतिम फैसले पर नहीं पहुंच पाए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि उनके खेमे से आने वाली किसी भी ‘सशक्त’ आवाज को लेकर अखिलेश अभी ‘संदेह वाले मोड’ में चल रहे हैं.

राजा भैया के विजय रथ के लिए खतरा है अखिलेश का बयान?

अब जबकि अखिलेश यादव ने राजा भैया को पहचानने से इनकार कर दिया है, तो प्रतापगढ़ की सियासत के आने वाले दिनों में और भी रोचक होने की उम्मीद है. राजा भैया 1993 से ही अपनी विधानसभा सीट जीतते आ रहे हैं. इस बार अखिलेश का रुख बता रहा है कि राजा भैया के लिए ‘वॉक ओवर’ जैसी स्थिति तो नहीं ही होने जा रही है. ऐसा में यह देखना काफी अहम होगा कि आने वाले दिनों राजा भैया को लेकर अखिलेश यादव की तल्खी क्या रंग दिखाती है.

जब राजा भैया से जुड़े सवाल पर अखिलेश बोले- ‘ये कौन हैं?’, देखिए क्या है पूरा मामला

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