किस ओर जाएंगे राजभर, ये अब भी साफ नहीं, जानें 2022 के लिए ये क्यों बन गए हैं ‘खास’

यूपी तक

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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने शुक्रवार को लखनऊ में कुछ चौंकाऊ ऐलान किया. उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उनकी मांगें मान लीं तो उन्हें बीजेपी से भी गठबंधन में कोई परहेज नहीं है. यूपी तक के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में उन्होंने विस्तार से इस मामले पर बात की, जिसे यहां नीचे सुना और देखा जा सकता है.

आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर राजभर के बयान में चौंकाऊ क्या है? 2019 में BJP से गठबंधन टूटने के बाद राजभर ने तकरीबन हर मंच से बीजेपी को घेरने का ही काम किया है. लगभग हर कार्यक्रम में राजभर ने बीजेपी को हराने की बात कही है. ऐसे में अब उनका ‘बीजेपी के साथ गठबंधन में कोई दिक्कत नहीं’ वाला रुख चौंकाऊ तो है ही. हालांकि राजभर ने अब भी अपने पूरे पत्ते नहीं खोले हैं और वह 27 अक्टूबर तक इंतजार करने की बात कह रहे हैं.

आखिर राजभर के पास ऐसी कौन सी सियासी ताकत है जो पेंडुलम की तरह उन्हें स्टैंड बदलते रहने का स्पेस दे रही है? राजभर के पास ऐसा कौन सा तिलिस्म है जो उन्हें प्रासंगिक बनाए हुए है? क्या 2022 में राजभर की अनदेखी बीजेपी को भारी पड़ सकती है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो ओम प्रकाश राजभर की हर दिन बदलती सियासत के साथ खड़े हो रहे हैं. यूपी तक ने इन्हीं सवालों को समझने की कोशिश की है.

पूर्वांचल में राजभर की अनदेखी पड़ सकती है भारी?

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का असल वोट बैंक यानी राजभर वोट पूर्वांचल के कई जिलों में प्रभावी भूमिका में है. एक अनुमान के मुताबिक, पूर्वांचल क्षेत्र में 17-18 फीसदी आबादी राजभर समुदाय की है.

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बिहार की सीमा से शुरू करें तो बलिया, मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर, भदोही, देवरिया, गोरखपुर, महराजगंज, श्रावस्ती और बहराइच जैसे जिलों में राजभर वोट अच्छी खासी संख्या में हैं.

राजभर वोट ओम प्रकाश राजभर की मुट्ठी में क्यों हैं?

इस सवाल का जवाब हमें पूर्वांचल केंद्रित ‘पूर्वापोस्ट’ से जुड़े पत्रकार और लेखक अखौरी अवतंस चित्रांश देते हैं.

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अखौरी अवतंस चित्रांश बताते हैं, ”यूपी में अति पिछड़ी जातियों में शामिल दो जातियों ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को अच्छे से समझ लिया है. इनमें निषाद और राजभर शामिल हैं. इन दोनों जातियों ने अपनी पॉलिटिकल लीडरशिप भी तय कर ली है. एक तरफ राजभरों ने लीडर के तौर पर ओम प्रकाश राजभर को स्वीकार कर लिया है तो निषादों ने निषाद पार्टी के संजय निषाद को.”

अवतंस आगे बताते हैं, ”यही वजह है कि आज इन दोनों नेताओं की बारगेनिंग पावर के सामने BJP जैसी बड़ी पार्टियां भी मजबूर नजर आती हैं. BJP को आगामी चुनावों में सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ेगा. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में धर्म का कार्ड फिलहाल उतना प्रभावी नजर नहीं आ रहा. इसी वजह से सारे दलों की सियासत जातिगत जोड़ तोड़ के इर्द गिर्द घूम रही है. ऐसे में ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद दोनों अहम फैक्टर बन गए हैं. BJP ने फिलहाल निषाद से गठबंधन कर लिया है, लेकिन राजभर अभी सख्त बारगेनिंग कर रहे हैं और खुद को ओपन दिखा रहे हैं. पूर्वांचल की राजनीति में यह बात भी शर्तिया कही जा सकती है कि राजभर फैक्टर अहम है और उनकी अनदेखी किसी को भी भारी पड़ सकती है.”

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आपको बता दें कि पिछले दिनों BJP ने संजय निषाद के साथ गठबंधन का ऐलान किया था. हालांकि इनके बीच अभी सीटों का समझौता नहीं हुआ है. पिछले चुनाव में ओम प्रकाश राजभर साथ थे, जो अब थोड़ा सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं. उधर अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) भी सीटों की संख्या को लेकर बीजेपी पर दबाव बना रही है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ओम प्रकाश राजभर को बीजेपी अपने खेमे में लाने में कामयाब हो पाती है या नहीं.

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