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मुलायम वाली बात पर अटकेगा या इस बार पास हो जाएगा महिला आरक्षण विधेयक? इसकी पूरी कहानी जानिए

अमीश कुमार राय

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Women Reservation Bill: एक बार फिर से महिला आरक्षण विधेयक चर्चा में है. चर्चा है कि मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी है और संसद के मौजूदा विशेष सत्र में इसे पेश किया जाएगा. अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या 27 साल बाद इस बार महिला आरक्षण विधेयक को पास करा लिया जाएगा? लोग यह भी जानना चाह रहे हैं कि महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के वादे वाला महिला आरक्षण विधेयक पास भी हो गया तो क्या इसे 2024 के लोकसभा चुनावों में लागू किया जा सकेगा? महिला आरक्षण विधेयक से जुड़े कई सवाल लोगों के मन में घूम रहे हैं और इस लेख में हम इसके अबतक की पूरी टाइमलाइन के साथ इसकी पूरी कहानी बताने जा रहे हैं.

इसी बीच महिला आरक्षण विधेयक को लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव के कुछ पुराने बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. एक बयान मार्च 2010 में तब दिया गया जब यूपीए सरकार इस विधेयक को संसद में पास कराने की कोशिश कर रही थी. इसमें मुलायम, लालू के साथ महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते नजर आ रहे हैं, जबकि दोनों नेताओं की पार्टी यानी सपा और आरएलडी यूपीए के सहयोगी दल थे. इस वीडियो में मुलायम को कहते सुना जा सकता है कि ‘ये ऐसा करना चाहते हैं कि इनका ही राज हमेशा रहे. हमलोग महिला आरक्षण के पक्ष में हैं, लेकिन मुसलमान, दलित, पिछड़े समाज की महिलाओं को पहले दे दीजिए आरक्षण. 20 फीसदी आरक्षण दीजिए इन महिलाओं को.’ इस वीडियो को आप यहां नीचे देख सकते हैं.

हमने थोड़ा और सर्च किया तो हमें मुलायम सिंह यादव का 20 दिसंबर 1999 को भी इसी विषय पर संसद में दिया गया भाषण भी मिला. इस वीडियो के शुरुआत में मुलायम संसद में साफ करते नजर आ रहे हैं कि उनकी पार्टी या आरजेडी महिला आरक्षण की विरोधी नहीं है. इसके बाद मुलायम सिंह को आगे यह कहते सुना जा सकता है कि, ‘यह पूरा का पूरा मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों के खिलाफ पूरा का पूरा षडयंत्र है. जहां तक बीजेपी और कांग्रेस का सवाल है, हमने पहले ही कहा था कि दोनों एक हैं.’ मुलायम सिंह कह रहे हैं कि ऐसे महिला आरक्षण लागू करके दलित, पिछड़े और मुस्लिम समाज से आने वालों को वंचित करने का षडयंत्र किया जा रहा है.’ इस वीडियो को भी यहां नीचे देखा जा सकता है.

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असल में महिला आरक्षण विधेयक का पूरा पेच मुलायम सिंह यादव के इस बयान के संदर्भ में समझा जा सकता है. अब तक के इसके इतिहास में जाएं तो हम पाते हैं कि भाजपा और कांग्रेस ने हमेशा विधेयक का समर्थन किया है लेकिन सपा और आरजेडी जैसे अन्य दलों के विरोध और महिला कोटा के भीतर दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्गों के लिए आरक्षण की कुछ मांगें ऐसी रहीं, जिसके चलते विधेयक पर आजतक सहमति नहीं बन सकी.

इस बीच मायावती ने भी मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मांग कर दी है कि महिलाओं को जो भी आरक्षण दिया जाता है उनमें से SC/ST/OBC वर्गों की महिलाओं का कोटा अलग से सुरक्षित करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो इन वर्गों के साथ नाइंसाफी होगी. हालांकि मायावती ने यह भी कहा है कि अगर ऐसा नहीं भी हुआ तब भी BSP आज पेश होने वाले महिला आरक्षण बिल का समर्थन करेगी.

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महिला आरक्षण विधेयक की पूरी टाइमलाइन: आइए शुरू से समझते हैं इस पूरे मामले को

असल में देश में महिला आरक्षण विधेयक के इतिहास पर नजर डालें तो इसकी कवायद पूर्व पीएम राजीव गांधी के कार्यकाल से ही शुरू हो गई थी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिला आरक्षण विधेयक को लेकर 90 के दशक के बाद की सभी सरकारों ने कवायद की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2010 में महिला आरक्षण विधेयक को राज्य सभा से पास भी करा लिया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी.

राजीव गांधी के कार्यकाल में बनी 14 सदस्यी कमेटी ने निर्वाचित निकाय में की महिला आरक्षण की बात

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 1987 में राजीव गांधी की सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मार्गेट अल्वा की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय एक कमेटी बनाई. इस कमेटी ने महिलाओं के विकास की विस्तृत रणनीति की योजना का मसौदा पेश किया. कमेटी की 353 अनुशंसाओं में से एक अनुशंसा निर्वाचित निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने की भी थी. इन अनुशंसाओं ने संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों की राह खोली. पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में हुए इन संशोधनों के जरिए पंचायती राज चुनावों और शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गईं. कई राज्यों में तब महिलाओं को ये कोटा SC, ST और OBC कोटो के तहत दिया गया.

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देवगौड़ा सरकार में पेश किया गया पहला महिला आरक्षण विधेयक

12 सितंबर 1996 को तत्कालीन एचडी देवगौड़ा सरकार ने पहला महिला आरक्षण विधेयक पेश किया. इसके तहत 81वां संविधान संशोधन बिल पेश किया गया, जिसके तहत महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभा में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया जाना था. तब पिछड़े समुदाय से आने वाले सांसदों ने इसका पुरजोर विरोध किया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में तब खजुराहो से सांसद रहीं उमा भारती को भी कोट किया गया है, जिन्होंने पंचायती राज व्यवस्था जैसे ही इस बिल में भी ओबीसी समुदाय से आने वाली महिलाओं के रिजर्वेशन की मांग की.

देवगौड़ा की सरकार को उस वक्त समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का समर्थन मिला हुआ था. यह बिल तब सीपीआई नेता गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संसद की सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया. इस कमेटी में उस वक्त लोकसभा के 21 सांसद और राज्यसभा के 10 सांसद थे. इनमें शरद पवार, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे नेता शामिल थे. रोचक बात यह है कि आज ये तीनों नेता बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA के खिलाफ बने ‘INDIA’ अलायंस के खास चेहरे भी हैं. इनके अलावा सेलेक्ट कमेटी में उमा भारती और सुषमा स्वराज भी थीं. कमेटी ने पाया कि इस महिला आरक्षण विधेयक में SC/ST कोटा के तहत महिलाओं की सीट तो आरक्षित थीं, लेकिन ओबीसी कोटा के तहत नहीं, क्योंकि तब इसे लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान ही नहीं था. तब कमेटी ने सुझाया था कि सरकार उचित समय पर ओबीसी के लिए भी इसमें आरक्षण देने पर विचार कर सकती है. हालांकि तब यह मामला ठंडे बस्ते में ही चला गया.

गुजराल और वाजपेयी सरकार में भी हुए असफल प्रयास

इस बीच देवगौड़ा सरकार गिर गई तो इंद्र कुमार गुजरात पीएम बने. एक बार फिर मई 1997 में महिला आरक्षण विधायक को लेकर कवायद शुरू हुई. तब नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बना चुके थे. उन्होंने तर्क दिया कि उस समय की 39 महिला सांसदों में सिर्फ 4 ही ओबीसी तबके से आती हैं. उन्होंने कहा कि किसी का ध्यान ओबीसी महिलाओं के हितों पर नहीं है. हम सभी जानते हैं कि गुजराल सरकार भी ज्यादा दिन नहीं टिकी और इसके गिरते ही उस सरकार का प्रयास असफल हो गया. अब बारी थी वाजपेयी सरकार की. यह सरकार बनते ही जुलाई 1998 में ममता बनर्जी और सुषमा स्वराज ने सदन में महिला आरक्षण बिल पेश करने को लेकर हंगामा किया. तत्कालीन कानून मंत्री जब यह बिल पेश करने के लिए खड़े हुए तो राजद सांसद सुरेंद्र प्रकाश यादव ने उनके हाथ से इसे छीन फाड़कर फेंक दिया.

वह मौका जब ममता बनर्जी ने पकड़ लिया था सपा सांसद का कॉलर

पिछले तीन दशकों में महिला आरक्षण बिल ने कई तरह की सियासत देखी है. कुछ सियासत ऐसी भी हुईं जब मामला ज्यादा ही गर्मा गया. आपको बता दें कि जब वाजपेयी सरकार में इस बिल को पेश करने की कोशिश हो रही थी तब आरजेडी, सपा और बीजेपी के कुछ ओबीसी सांसद इसका विरोध कर रहे थे. इसके अलावा IUML और बीएसपी के सांसदों की तरफ से इसमें मुस्लिम महिलाओं के प्रतिनिधित्व की मांग भी की गई. इसी क्रम में दिसंबर 1998 में एक मौका ऐसा आया जब सदन में विवाद इतना बढ़ा कि ममता बनर्जी, जो कि तब इस बिल के समर्थन में थीं, उन्होंने सपा सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कॉलर ही पकड़ लिया. तब सपा सांसद स्पीकर के चेयर की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे.

बाद में जयललिता ने वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस ले लिया. ऐतिहासिक घटना में वाजपेयी सरकार एक वोट से अल्पमत में आकर गिर गई और महिला आरक्षण बिल धरा का धरा रह गया. 1999 में वाजपेयी फिर पीएम बने तो महिला आरक्षण बिल को लेकर फिर से गहमागमी शुरू हुई. हालांकि यह सरकार 2004 में हार गई और बिल पेश नहीं ही हो पाया.

अब बारी थी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए की, तब राज्यसभा में पास हुआ महिला आरक्षण विधेयक

जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि 1990 के दशक के बाद हर सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक की कोशिश की. अगस्त 2005 में सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण बिल पर सहमति बनाने के लिए बैठक बुलाई. बाद में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह एनडीए के नेताओं से भी मिले. तब यह फैसला हुआ कि महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का बिल फिर से पेश होगा, लेकिन सदन का संख्याबल भी बढ़ाया जाएगा. इसके अलावा ‘एमएस गिल फॉर्म्युला’ को भी अपनाने की बात की, जहां चुनाव आयोग के उस प्रस्ताव को अपनाने की बात थी कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए राज्यों और लोकसभा के चुनावों में निश्चित संख्या में महिलाओं को उतारना अनिवार्य हो. 6 मई 2008 को यूपीए सरकार 108वां संविधान संसोधन बिल लेकर आई. बाद में 9 मार्च 2010 को यह बिल राज्यसभा से पास भी हो गया, लेकिन तमाम विरोधों की वजह से यह कभी लोकसभा में पेश ही नहीं हो पाया.

अब मोदी सरकार की कवायद के असल मायने समझिए

2014 में कांग्रेस की सरकार गई और मोदी प्रधानमंत्री बने. इसके बाद पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2019 का भी चुनाव जीता. दोनों ही चुनावों के मेनिफेस्टो में बीजेपी ने संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण का वादा किया. अब जब 2024 के चुनाव नजदीक हैं, तो सरकार इसे संसद के मौजूदा खास सत्र में पेश कर सकती है.

महिला आरक्षण विधेयक पास हो गया तो क्या 2024 के चुनाव में ही मिल जाएगा आरक्षण?

इस सवाल का जवाब फिलहाल ना है. असल में इसे लेकर अभी भी कुछ पेच हैं. ऐसा ही एक पेच है निर्वाचन क्षेत्रों में परिसीमन की कवायद. यह कवायद 2026 में होने की संभावना है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जबतक यह कवायद पूरी नहीं हो जाती, व्यवहारिकता में महिला आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता. ऐसे में अगर मोदी सरकार महिला आरक्षण विधेयक को पास कराने में कामयाब भी रही तो, इसे 2029 से पहले लागू करना फिलहाल मुमकिन नहीं लगता.

हालांकि, इस बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि नए विधेयक में महिलाओं के लिए कितने प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव किया जा सकता है. इससे पहले के विधेयक में लोकसभा और प्रत्येक राज्य विधानसभा की सभी सीटों में से महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षित करने का प्रस्ताव था. यह देखना भी रोचक होगा कि कोटा में कोटा वाली क्षेत्रीय दलों की मांगों को साधने की कोई कोशिश नजर आएगी या इसी बहाने एक बार फिर आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर निकलेगा.

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