UP की सियासत में सुनील बंसल के वो 8 साल, जानिए कैसे बन गए कार्यकर्ताओं के दुलारे

कुमार अभिषेक

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राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए सुनील बंसल अपने कार्यकर्ताओं से अब उत्तर प्रदेश में विदाई ले रहे हैं. कार्यकर्ता इस बात से खुश जरूर हैं कि अब सुनील बंसल का कद राष्ट्रीय हो गया है. उनकी दृष्टि राष्ट्रीय रहेगी, लेकिन कार्यकर्ताओं की आंखों में आंसू भी हैं. वजह भी साफ है कि 8 सालों में कार्यकर्ताओं को जो मिला, वह पिछले 70 सालों में कभी नहीं मिला. इन 8 सालों में कार्यकर्ता जीत के लिए जी-तोड़ मेहनत करते रहे और बंसल उन्हें झोली भरकर सम्मान पद और प्रतिष्ठा दिलाते रहे.

uptak.in ने जब सुनील बंसल से यह पूछा कि यूपी में बिताए इन 8 सालों को आप कैसे देखते हैं तो उन्होंने कहा, “इन आठ सालों में मैंने पूरी जिंदगी जी ली.”

राष्ट्रीय महामंत्री बनाए जाने के बाद जब से सुनील बंसल दिल्ली से लखनऊ लौटे हैं, तब से मिलने वाले कार्यकर्ताओं का रेला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. हर कार्यकर्ता सुनील बंसल से मिलकर अपनी भावनाओं के चंद शब्द जरूर बोल दे रहा है और ये महज विदाई की औपचारिकता के शब्द नहीं बल्कि उनकी भावनाएं हैं.

सुनील बंसल के कायल तो उनके विरोधी भी हैं. जैसे ही सुनील बंसल को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया तो उन्हें बंगाल, तेलंगाना और उड़ीसा का प्रभार दिया गया और यह तय हो गया कि अब सुनील बंसल उत्तर प्रदेश से विदाई ले रहे हैं. तो कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी ट्वीट कर यह कहा गया कि “सुनील बंसल के साथ उत्तर प्रदेश में बीजेपी आई थी और सुनील बंसल के विदाई के साथ ही बीजेपी की विदाई भी हो जाएगी.”

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अगर सुनील बंसल के 8 सालों के काम पर नजर डाली जाए तो उन्होंने संगठन महामंत्री रहते हुए कार्यकर्ताओं से जमकर काम लिए और उन्हें इनाम भी खूब बांटा. 2014 से लेकर 2022 तक इन्हीं कार्यकर्ताओं के बूते बीजेपी चुनाव दर चुनाव जीतती रही और सुनील बंसल अपने कार्यकर्ताओं को मेहनत का इनाम देते रहे.

कम ही लोग इस बात को जानते होंगे है कि इन 8 सालों में देशभर में तकरीबन 18000 सरकारी, गैर सरकारी और संस्थागत लाभ के पदों पर यूपी बीजेपी के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हुई और यहां सुनील बंसल ने चुनचुनकर अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति कराई. 108 से ज्यादा यूपी के कार्यकर्ता देशभर के अलग-अलग देश की बड़ी सरकारी और अर्धसरकारी संस्थाओं में डायरेक्टर के पद पर नियुक्त हुए. बड़े नेताओं को छोड़ दिया जाए तो कई ऐसे जिलाध्यक्षों है, जो सीधा जिला अध्यक्ष रहते हुए एमएलसी बनाए गए. किसी जिलाध्यक्ष का सीधा MLC बनना कोई सोच भी नहीं सकता था. मगर संगठन के क्षेत्रिय अध्यक्षों को ऊपरी सदन में भेजने की परंपरा सुनील बंसल ने ही डाली.

जितने भी सह संगठन मंत्री पिछले 8 सालों में यूपी में हुए यानि जितने सह संगठन मंत्रियों ने बंसल के नेतृत्व में काम किया सभी आज किसी न किसी प्रदेश के संगठन मंत्री बन गए हैं.

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2014 के पहले अलग-अलग गुटों में बंटी हुई बीजेपी, 2014 के बाद एक चट्टान की तरह की ऐसी पार्टी बन गई जिस के कार्यकर्ताओं को भेदना दूसरी पार्टियों के लिए लगभग असंभव हो गया.

2014 के पहले टिकट बंटने पर पार्टी दफ्तर में विरोध, नेताओं के खिलाफ नारेबाजी आम बात थी. संगठन मंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और बड़े नेताओं के पुतले फुक जाने जैसी बातें खूब देखने को मिलती थीं, लेकिन बंसल के कमान संभालने के बाद विरोध की ये परंपरा खत्म हो गई.

सुनील बंसल ने सबसे पहले गुटबाजी पर लगाम लगाई. कार्यकर्ता पार्टी और संगठन के वफादार सिपाही के तौर पर खड़े हो गए. नेता आए और कई नेता गए भी, लेकिन बीजेपी के कार्यकर्ता और संगठन के पदाधिकारियों ने कभी भाजपा नहीं छोड़ी. जब स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे बड़े कद्दावर नेताओं ने भी पार्टी छोड़ी, तब एक भी मंडल अध्यक्ष जिलाध्यक्ष ने बीजेपी नहीं छोड़ी. ये बंसल की संगठन पर पकड़ का नतीजा था, जिसने बीजेपी कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिरने नहीं दिया.

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8 सालों में उत्तर प्रदेश में रहते बीजेपी में जो बदलाव सुनील बंसल ने किए, ये देश की किसी भी पार्टी के लिए किए गए काम को लेकर एक नजीर बन गया. किसी प्रदेश के संगठन मंत्री को इतना जानने और समझने की मीडिया ने भी कभी कोशिश नहीं की, जितना यूपी को जीत की मशीन बनाने वाले सुनील बंसल के संगठन कौशल को समझने में मीडिया ने दिलचस्पी दिखाई.

अनौपचारिक बातचीत में सुनील बंसल ने कहा संघ परिवार में बदलाव एक सतत प्रक्रिया है और चाहे बीजेपी हो या ABVP जहां से वो निकले हैं, उसमें वक्त-वक्त पर होने वाले बदलावों ने इन दोनों संगठनों को जीवंत बना रखा है.

8 सालों में अपने संगठन कौशल के जरिए सिर्फ जीत लिखने वाले सुनील बंसल ने यूपी में बीजेपी संगठन को जो नया आयाम दिया है वो एक बेंचमार्क की बन गया है, जो बीजेपी को बनाए रखना बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.

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