यूपी निकाय चुनाव में नए आरक्षण से बदले सियासी समीकरण, जाने किसका फायदा, किसे नुकसान

अभिषेक मिश्रा

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश में नगर विकास विभाग ने गुरुवार को नगरीय निकाय प्रमुखों का अनंतिम आरक्षण जारी कर दिया. इस बदलाव का सीधा असर लखनऊ समेत 17 नगर निगमों, नगर पंचायत और नगर परिषद की सीटों पर पड़ता नजर आ रहा है. सबसे अधिक फेरबदल लखनऊ, अयोध्या और देवी पाटन मंडल में नगर पालिका परिषदों की सीटों पर हुआ है. अधिकतर सीटों का 5 दिसंबर 2022 को किया गया पुराना आरक्षण बदल गया है. इसके चलते चुनाव की तैयारियों में जुटे नेताओं के हाथ मायूसी लगी है. आरक्षण का सीधा असर अब क्षेत्रीय समीकरणों पर भी पड़ता नजर आ रहा है.

यूपी नगर विकास मंत्री एके शर्मा ने प्रस्तावित आरक्षित सूची जारी करने के बाद इस संबंध में बात की. उन्होंने कहा कि 6 अप्रैल को शाम छह बजे तक आपत्तियां दर्ज करवाई जा सकती हैं. ये आपत्तियां नगरीय निकाय निदेशालय भेजी जा सकती हैं. आपत्तियों को निस्तारित करने के बाद नगर विकास विभाग अंतिम आरक्षण जारी करेगा. इसे राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपा जाएगा. इसके बाद ही आयोग चुनाव की तारीखें घोषित करेगा.

इन दो जगहों पर नहीं होगा चुनाव

आपको बता दें कि महराजगंज की सिसवा नगर पालिका परिषद और बस्ती की भानपुर नगर पंचायत में कानूनी अड़चन की वजह से चुनाव नहीं होगा. दूसरी तरफ आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लोगों की शिकायत थी कि कई जगहों पर एक जैसा ही आरक्षण लागू रहता है. जिसकी वजह से सभी को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा था जिसमें बदलाव के लिए आयोग ने सिफारिश की थी.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

इसमें रोचक है कि आयोग ने कहा कि नगर निगमों को तो एक इकाई मानकर पहले भी रोटेशन के हिसाब से आरक्षण तय किए जाते थे अब नगर पालिका परिषदों को मंडल स्तर पर एक इकाई मानकर और नगर पंचायतों को जिला स्तर पर एक इकाई मानकर आरक्षण तय किया जाए. इसी सिफारिश को लागू करने के लिए अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश लाया गया है.

ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर नए सिरे से आरक्षण होने का सबसे ज्यादा फायदा अनुसूचित जाति और महिलाओं को मिला है. इनकी संख्या पिछली बार को तुलना में बढ़ी है. इसका असर दावेदारों में दिखेगा. सभी नगर निकायों में मिलाकर 380 सीटों पर आरक्षण की स्थिति बदली है. महिला आरक्षित पदों की संख्या 255 से बढ़कर 288 हो गई है. एससी के लिए आरक्षित पदों की संख्या 102 से बढ़कर 110 हो गई है. ओबीसी को जितनी सीटें पहले मिली थीं, उतनी ही अब भी हैं. यानी पिछड़ों को लेकर कोई बदलाव नहीं हुआ.

ADVERTISEMENT

नगर निगम से लेकर पंचायत तक कहां पर क्या बदला?

लखनऊ की बात की जाए, तो वह फिर महिला मेयर चुनेगा जहां सयुक्ता भाटिया फिलहाल वर्तमान में मेयर हैं. प्रदेश में इस बार 17 नगर निगम में चुनाव होंगे. शाहजहांपुर में पहली बार चुनाव होगा. बाकी 16 में से 10 नगर निगमों में आरक्षण की वही स्थिति है, जो साल 2017 में थी. प्रदेश में 762 शहरी निकाय हैं, लेकिन चुनाव 760 में ही होंगे. नगर निगम की कुल 17 मेयर सीट में से 8 सामान्य वर्ग, 3 महिला, दो महिला ओबीसी, दो पिछड़ा वर्ग, एक एससी और एक एससी महिला के आरक्षित की गई हैं.

वाराणसी, प्रयागराज, अलीगढ़, बरेली, मुरादाबाद, गोरखपुर, अयोध्या और मथुरा की मेयर सीट अनारक्षित हैं. कानपुर, गाजियाबाद मेयर सीट महिला के लिए आरक्षित की गई है. शाहजहांपुर और फिरोजाबाद की मेयर सीट पिछड़ा वर्ग महिला तो सहारनपुर और मेरठ मेयर सीट पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित की गई हैं. वहीं झांसी मेयर सीट एससी और आगरा मेयर सीट एससी महिला के लिए आरक्षित है. आरक्षण के हिसाब अब चुनाव में बीजेपी और सपा को अपने उम्मीदवारों को लेकर अब नए सिरे से तैयारी करनी होगी.

ADVERTISEMENT

अब नगर पंचायतों में आरक्षण की स्थिति को समझिए

प्रदेश के नगर पंचायतों के लिए जारी किए गए आरक्षण रोस्टर के तहत 269 सीटों पर स्थिति बदली है. 49 जिलों में पहले अनुसूचित जनजाति का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था और नगर पंचायत में केवल एक सीट आरक्षित थी, जो अब दो हो गई हैं. महिलाओं के लिए 182 सीटें आरक्षित थीं, अब इनकी संख्या 209 हो गई है. ऐसे ही यूपी नगर पालिका परिषद की 100 सीटों पर बदलाव हुए हैं. नए आरक्षण रोस्टर से बड़ा बदलाव हुआ है. महिलाओं के लिए पहले 67 पद आरक्षित थे, अब इनकी संख्या बढ़कर 73 हो गई.

कहीं बीजेपी तो कही सपा को सियासी नुकसान

निकाय चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने मुखर तरीके से ओबीसी आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज की थीं. इसके बाद जिस तरीके से तस्वीर बदलने की उम्मीद थी, उसके नतीजे में फिलहाल समाजवादी पार्टी को कोई बड़ा फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा. जिन ओबीसी सीटों को लेकर पार्टी आस लगाए बैठी थी, अब नए आरक्षण के बाद भी ओबीसी की सीटों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. हालांकि इसका मिलाजुला असर बीजेपी और सपा, दोनों पार्टियों के लिए साबित होगा.

निकाय चुनाव की सियासी समीकरणों को देखा जाए तो इसका थोड़ा बहुत असर जमीनी उम्मीदवार पर पड़ता हुआ नजर आएगा. कई सीटों पर प्रत्याशी पहले से ही तैयारी कर रहे थे. पहले नोटिफिकेशन के बाद उनकी तैयारियों पर थोड़ा असर पड़ा. अब नए आरक्षण के तौर पर तस्वीर पूरी बदलती हुई नजर आती है. जैसे सहारनपुर की मेयर सीट महिला से बदलकर ओबीसी के लिए आरक्षित हो गई है. इसके चलते बसपा नेता इमरान मसूद की पत्नी का मेयर पद चुनाव लड़ने का सपना अधूरा रहेगा.

बीजेपी से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे नेताओं के हाथ भी निराशा लगी है. हालांकि ओबीसी नेताओं के हौसले बुलंद हो गए हैं. 2017 में मेयर बने संजीव वालिया के चुनाव लड़ने की उम्मीद फिर जाग गई है. प्रयागराज सीट के ओबीसी से सामान्य हो जाने पर योगी सरकार की मंत्री नंद गोपाल नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता की दावेदारी मजूबत हो गई है. अभिलाषा दो बार से मेयर हैं. इसी तरह से मथुरा और अलीगढ़ सीट ओबीसी के लिए आरक्षित थीं, लेकिन अब अनारक्षित हो जाने से सामान्य वर्ग के नेता भी टिकट के दावेदार हो गए हैं.

ऐसे ही कांग्रेस के गढ़ रायबरेली नगर पालिका सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे पूर्व अध्यक्ष इलियास मन्नी और मौजूदा अध्यक्ष पूर्णिमा श्रीवास्तव दौड़ से बाहर हो गई हैं. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है. इसके चलते अपने भाई को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे सपा के दिग्गज नेता मनोज पांडेय की उम्मीदों को झटका लगा है. साफ है कि सीटों के बदलाव के साथ ही सियासी समीकरण भी बदले हैं. आपत्तियों के बाद आने वाली अंतिम आरक्षण सूची मौजूदा तस्वीर को पूरी तरीके से साफ कर देगी.

    Main news
    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT