क्या अखिलेश-मायावती के फैसलों से निरहुआ राह हुई आसान? जानिए आजमगढ़ का सियासी समीकरण

कृपा शंकर झा

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा उपचुनाव के लिए आजमगढ़ से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दिनेश लाल यादव को बीजेपी ने आजमगढ़ सीट से उतारा था, लेकिन वह एसपी चीफ अखिलेश यादव से चुनाव हार गए थे. जानकारों की मानें तो निरहुआ को उतार कर बीजेपी ने एक जबरदस्त चाल चल दी है. खबर में आगे जानिए क्या है आजमगढ़ सीट का सियासी समीकरण?

दरअसल, आजमगढ़ में मुस्लिम से ज्यादा दलित वोटर हैं और ओबीसी वोटर उससे भी ज्यादा हैं. आंकड़ों के अनुसार, आजमगढ़ लोक सभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटर 16 फीसदी, दलित वोटर 25 फीसदी और करीब 40 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. वहीं, आजमगढ़ में सवर्ण वोटर 17 फीसदी हैं. आंकड़ों की मानें तो 16 फीसदी मुस्लिम वोटर और 19% यादव वोटर की वजह से आजमगढ़ लोकसभा सीट पर एसपी का दबदबा कायम रहता है. मगर इस उपचुनाव में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने गुड्डू जमाली को उतार कर एसपी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है.

वहीं, डिंपल यादव को आजमगढ़ सीट से उतारने के कयासों के बीच अखिलेश यादव ने एसपी की टिकट पर सुशील आनंद को मैदान में उतार दिया है. सुशील आनंद बामसेफ और बीएसपी के संस्थापकों में से एक रहे बलिहारी बाबू के बेटे हैं. बामसेफ के संस्थापक होने का मतलब कांशीराम के साथी के तौर पर समझा जाना चाहिए.

बीएसपी की तरफ से राज्यसभा सांसद रहे बलिहारी बाबू 2020 में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. वहीं अप्रैल, 2021 में कोविड इंफेक्शन की वजह से बलिहारी बाबू का निधन हो गया था.

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आपको बता दें कि सुशील आनंद 2010 में फूलपुर के ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं और एमए, एलएलबी, बीएड की डिग्री उनके पास है. यानी अखिलेश यादव ने मायावती के गुड्डू जमाली वाले दांव पर सुशील आनंद का दांव दे मारा है, ताकि आजमगढ़ सीट के गैर मुस्लिम और यादव वोट बैंक में सेंध लगा सकें.

सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि इन सब के बीच सबसे फायदे में निरहुआ ही लग रहे हैं. निरहुआ की अपनी एक फैन फॉलोइंग है और ऊपर से वे खुद यादव परिवार से आते हैं. इसके अलावा योगी-मोदी की छवि और बीजेपी की ग्राउंड लेवल मेहनत से भी निरहुआ को बहुत फायदा मिल सकता है.

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वहीं, आजमगढ़ की जनता क्या फैसला लेती है, वो तो 26 जून को ही पता लगेगा. मगर इतना तय है कि आने वाले दिनों में सूबे के राजनीति में कई दिलचस्प घटनाएं जरूर देखने को मिलेंगी.

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