इस अवसर पर काशी में गंगा घाट के उस पार रेत पर भी लाखों दिए जलाए गए.
नारायण गुरु ने बताया कि पौराणिक गाथा के अनुसार, “त्रिपुरा नाम के राक्षस का भगवान शिव ने वध किया था, जिसके बाद देवताओं ने स्वर्ग में देव दीपावली मनाई.”
नारायण गुरु ने बताया कि देव दीपावली मानाने की परंपरा ‘लुप्त’ हो गई थी, लेकिन उनके प्रयासों के चलते साल 1985 के बाद इसे फिर से बड़े स्तर पर मनाया जाने लगा.