बदायूं: चूहे की हत्या के चर्चित केस में पुलिस ने दाखिल की 30 पन्नों की चार्जशीट, ये सब लिखा

अंकुर चतुर्वेदी

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Badaun News: उत्तर प्रदेश के बदायूं में ‘चूहे की हत्या’ का केस पिछले साल देशभर में खूब चर्चा का विषय बना रहा. चूहे का पोस्टमार्टम भी हुआ और अब पुलिस ने आरोपी के खिलाफ 30 पन्ने का चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की है. ‘चूहे की हत्या’ केस में नए-नए मुद्दे निकलकर आने से यह मामला और भी ज्यादा रोचक हो गया था और अब चार्जशीट दाखिल होने के बाद एक बार फिर ये मामला चर्चा का विषय बन गया है.

आईवीआरआई में पहली बार हुआ चूहे का पोस्टमार्टम

मामला बदायूं की सदर कोतवाली का है. यहां के पनवाड़ी चौक में रहने वाले मनोज ने 25 नवंबर को एक चूहे को नालें में डूबाकर रखा था. साथ ही चूहे को पत्थर से बांध दिया था. उधर से गुजर रहे पशु प्रेमी विकेंद्र शर्मा ने चूहे को बचाने का प्रयास किया, लेकिन चूहा मर गया. इसके बाद पशु प्रेमी थाने पहुंचे और आरोपी के खिलाफ एफआईआर लिखवा दी. एफआईआर के शव का पोस्टमार्टम कराने की बारी आई तो जिले में चूहे के पोस्टमार्टम की सुविधा ही नहीं थी.

पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन विकेंद्र कड़ी कानूनी कार्रवाई के लिए पोस्टमार्टम कराने की जिद पर अड़े थे. चूहे के पोस्टमार्टम के लिए आइवीआरआई बरेली रेफर किया गया तो विकेंद्र पुलिस के साथ चूहे के शव को बरेली में आवीआरआई तक अपनी एसी कार से ले गए .चूहे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आई , जिसमें कहा गया है कि चूहे का लीवर और फेफड़े पहले से खराब थे.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आई ये बात

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चूहे की मौत नाली के पानी में डूबने से नहीं हुई है. उसकी मौत दम घुटने की वजह से हुई है. वह पहले से कई बीमारियों से ग्रसित था. लिहाजा, उसका बच पाना मुश्किल था. मामले में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन बाद में थाने से ही जमानत दे दी थी. मनोज ने पांच दिन बाद कोर्ट पहुंचकर कहा कि, ‘मैं समर्पण करने आया हूं.’ कोर्ट ने मनोज को कुछ देर बाद अग्रिम जमानत भी दे दी थी.

चूहे की हत्या अपराध नहीं, लेकिन…

इस मामले में वन विभाग के डीएफओ अशोक कुमार सिंह का कहना है कि, ‘चूहे को वन विभाग अधिनियम में 5 के तहत वार्मिंग श्रेणी में रखा गया है और इसको मारने पर कोई अपराध नहीं बनता है लेकिन पशु क्रूरता अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. इसलिए इसको गलत भी नहीं ठहराया जा सकता.’ इन सब तर्क वितर्क के बीच पुलिस ने मनोज को आरोपी मानते हुए 30 पन्नों का आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल कर दिया है. सीओ सिटी आलोक मिश्रा ने बताया कि पुलिस ने आरोप पत्र में एक एक कड़ी को जोड़ा है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मीडिया में जारी किए गए वीडियो, सम्बंधित अलग-अलग विभागों के जानकारों के मंतव्य को भी शामिल करते हुए ये आरोप पत्र तैयार किया गया है.

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विवेचना अधिकारी राजेश यादव ने संकलित साक्ष्यों के आधार पर आरोप पत्र में लिखा है कि मनोज धारा 11(पशुक्रूरता निवारण अधिनियम) और धारा 29 (पशु हत्या या अपाहिज करना) में आरोपित पाया गया है. आरोप पत्र को मजबूत बनाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट को आधार बनाया गया है. जिसमें स्पष्ट किया गया है कि चूहे के फेफड़े ख़राब थे, उनमे सूजन थी, लीवर में भी इन्फेक्शन था. इसके आलावा चूहे की माइक्रोस्कोपीक जाँच में भी ये स्पष्ट किया गया था कि चूहे की मृत्यु दम घुटने से हुई है.

इन आरोपों में कितनी सजा हो सकती है

कानूनी जानकारों के अनुसार पशु क्रूरता अधिनियम के मामले में 10 रूपये से लेकर 2 हजार रूपये तक जुर्माना और तीन साल की सजा का प्रावधान है. धारा 429 के अंतर्गत पांच साल की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है. चूंकि ऐसा मामला इससे पहले प्रकाश में नहीं आया है. पशुक्रूरता के मामले तो दर्ज होते है लेकिन चूहे से सम्बंधित केस और पोस्टमार्टम पहले प्रकाश में नहीं आया है. ऐसे में कोर्ट मनोज को कितनी सजा और जुर्माना डालेगी ये एक नजीर भी बनेगी और लोगों में इसकी रोचकता भी बानी रहेगी.

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इस मामले में एक दूसरा पक्ष भी है जिसकी बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आरोपी मनोज से बात करने की कोशिश की तो उसने बात करने से मना कर दिया लेकिन मनोज के पिता मथुरा प्रसाद ने कहा, ‘चूहा और कौवा को मारा जाना गलत नहीं है. यह नुकसान पहुंचाने वाले जीव हैं. अगर ऐसे मामले में हमारे बेटे को सजा होती है तो उन सब पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जो मुर्गा -बकरा मछली काटते हैं. चूहे मारने वाली दवाई बेचने वालों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए.’

पशु क्रूरता अधिनियम का पालन होना चाहिए- विकेंद्र शर्मा

उधर, इस मामले में पशु प्रेमी विकेंद्र शर्मा भी खुलकर सामने आ गए हैं. उनका कहना है कि चूहा चार पैर और एक पूछ वाला चौपया जीव है. हमने चूहे को मारने के लिए एफआईआर नहीं कराई है, बल्कि उसके साथ क्रूरता करने पर एफआईआर कराई है. जिन जानवरों को काट कर बेचा जाता है, उनकी पहले ब्रेन सेंसेटिव नस काट कर मौत दी जाती है. उनके मरने के बाद शरीर के टुकड़े किए जाते हैं. इसके लिए अलग से कानून है और इसकी लाइसेंसिंग प्रक्रिया है. हम लंबे समय से पशु सेवा में लगे हैं. जब पशु क्रूरता अधिनियम बनाया गया है, तो उसका पालन भी होना चाहिए.

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