आजम खान को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से 20 जुलाई तक मांगा जवाब

आमिर खान

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सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान की गुहार पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है. आजम खान ने रामपुर जिला प्रशासन द्वारा मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी परिसर में भूमि पर कब्जा लिए जाने की कार्रवाई और तार बाड़ लगाए जाने के विरोध में याचिका लगाई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को 20 जुलाई तक जवाब देने को कहा है.

आजम खान के वकील जुबैर अहमद ने मामले के बारे बताते हुए कहा कहा- क्राइम नंबर 312 में मोहम्मद आजम खान को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जब बेल दी थी तो उसमें यह कंडीशन लगाई थी कि यूनिवर्सिटी के अंदर जो जमीन है जिसको प्रॉसीक्यूशन यह कहता है कि वह कस्टोडियन की जमीन है. उस जमीन को डीएम और जो जिला प्रशासन रामपुर है यह टेकओवर करेंगे और उसके बाद ही उनकी बेल परमानेंट होगी.

जुबैर अहमद ने बताते हुए कहा- इलाहाबाद हाई कोर्ट के आर्डर को हमने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था. जो सारी तमाम कंडीशन लगाई थी, उसको सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि डिस्पर्शनेट है. बेल के लिए जो कंडीशन होती हैं उसमें यह नहीं आता है और इसलिए इन सारी कंडिशंस पर स्टे दे दिया था. अब स्टे के बावजूद जो अथॉरिटी को लिखा गया हमारी तरफ से कि स्टे हो गया है. आप इन तार बंदी को हटा दें जो सील है. उसको अनसील कर दें.

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जिला प्रशासन की तरफ से ऐसा कोई एक्शन नहीं लिया गया. मजबूरी में सुप्रीम कोर्ट में हमने एक पिटीशन लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस स्टे पर जवाब मांगा है.

आपको बता दें कि यह मामला आजम खान की जमानत से जुड़ी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शर्त पर उच्चतम न्यायालय की रोक से जुड़ा है. खान ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उक्त शर्त उनके जौहर विश्वविद्यालय के एक हिस्से को ढहाने से संबंधित है, जिसे कथित तौर पर शत्रु संपत्ति पर कब्जा करके बनाया गया था. जमानत संबंधी शर्त में इस भूमि को कुर्क करने के आदेश दिए गए थे. खान ने आरोप लगाया है कि स्थगन आदेश के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने जौहर विश्वविद्यालय परिसर से कांटेदार तार के बाड़ नहीं हटाए, जिससे उसके संचालन में परेशानियां आ रही हैं।

शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन पीठ ने 27 मई को कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई जमानत संबंधी शर्त प्रथम दृष्टया असंगत और दीवानी अदालत की ‘डिक्री’ की तरह लगती है. इसके साथ ही पीठ ने रामपुर के जिलाधिकारी को विश्वविद्यालय से जुड़ी भूमि पर कब्जा करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों पर रोक लगा दी थी.

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(इनपुट: भाषा)

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